शक्ति प्रदर्शन कई बार शांतिपूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त कर देता है

Sunday, Oct 02, 2016 - 01:57 AM (IST)

(करण थापर) वही किया जो हमें करना चाहिए था और हर तरह से अच्छा किया। नियंत्रण रेखा के पार आतंकवाद विरोधी हमला कुशलतापूर्वक किया गया हालांकि पाकिस्तान इस बात पर जोर दे रहा है कि ऐसी कोई स्ट्राइक नहीं हुई। कूटनीतिक तौर पर हमने पाकिस्तान को शर्मिन्दा करने के लिए कड़े कदम उठाए और सार्क समिट को स्थगित करने को बाध्य कर दिया। ये दोनों उपाय अच्छी तरह से सोचे-समझे थे। 

यद्यपि हमें सैन्य कार्रवाई के पुष्ट ब्यौरों के बारे में नहीं पता, हम दो चीजें जानते हैं। यह कार्रवाई एक साथ 7-8 जगहों पर हुई जिसका मतलब यह हुआ कि यह अच्छी तरह से सुनियोजित तथा बड़े पैमानी पर की गई थी। दूसरे, यदि पाकिस्तान चाहता तो ये हमले नहीं होते, हमें यह भी आशा करनी चाहिए कि वे पलटवार नहीं करेंगे। आखिरकार आप उस चीज के खिलाफ बदले की कार्रवाई नहीं कर सकते जो हुई ही नहीं!

हालांकि मूल प्रश्न एक अलग तरह का है। अब क्या होगा? जहां उड़ी आतंकी हमले की प्रतिक्रिया में उठाया गया कदम समझ आता है और यहां तक कि अपरिहार्य था, हमें अभी भी आगे देखने और इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि कैसे हम भारत-पाकिस्तान की समस्या सुलझा सकते हैं।

क्या उड़ी को लेकर हमारी कड़ी प्रतिक्रिया से यह सुनिश्चित होगा कि लश्कर अथवा जैश और आतंकवादी कार्रवाइयां नहीं करेंगे? या क्योंकि कश्मीर दोबारा कार्रवाई करने के लिहाज से अत्यंत खतरनाक बन गया है, हमें काबुल, जलालाबाद अथवा हेरात में सुगम लक्ष्यों पर हमले देखने को मिलेंगे? जब तक ऐसा होता है हमें अपनी सांसों को थाम कर बैठना होगा।

हमारी आशा आवश्यक तौर पर बहुत साधारण होनी चाहिए। एक बार यदि लश्कर-ए-तोयबा तथा जैश को  पता चल गया कि हम पलटवार करेंगे तो इससे पैमाना इतना ऊंचा हो जाएगा कि उन्हें दोबारा हमला करने में हिचकिचाहट हो सकती है और इससे उनके पाकिस्तानी आकाओं पर भी दबाव पड़ सकता है। यह जानते हुए कि भारत तेजी से, कड़ी अथवा प्रभावपूर्ण प्रतिक्रिया करेगा, इससे वे संभवत: इन समूहों की नकेल कस देंगे। निश्चित तौर पर यह संभव है कि यह संदेश उन तक 2 या 3 बार पहुंचाया जाए जब तक कि इसे सही तरीके से सुना और इस पर विश्वास किया जाए मगर मुझे आशा है कि ऐसा नहीं होगा।

बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हमारी कड़ी प्रतिक्रिया से कश्मीर समस्या का समाधान ढूंढना आसान हो जाएगा?  ऐसा तभी हो सकता है यदि हम अपने पत्ते सही खेलें। अपने दुश्मन के सामने खड़े होने तथा यह दिखाने से कि आपके पास पलट कर युद्ध करने की हिम्मत तथा दृढ़निश्चय है, इससे संभवत: कोई पारस्परिक स्वीकार्य समझौता हो सकता है। इसका परिणाम हमेशा युद्ध के रूप में ही नहीं निकलता।

इसलिए हां, मैं आतंकी हमलों तथा उसके बाद हमारी सेना द्वारा निर्णायक प्रतिक्रियाओं के लिए मानसिक रूप से तैयार हूं। यदार्थवादी होने के नाते हमें अपनी मनोशक्ति को मजबूत करना और यह स्वीकार करना होगा कि यह संभव है। मगर यह भूलना नासमझी होगी कि बड़ी समस्या को एक समाधान की जरूरत है और वर्तमान आतंकी तथा सैन्य प्रतिक्रिया वह समाधान नहीं है। एक उचित अंतराल के बाद हमें इस्लामाबाद को यह जान लेने के लिए समय देना चाहिए कि यदि वह हमारे संदेश पर ध्यान देते हैं तो हम बैठकर बात करने के इच्छुक हैं।

यह मिस्टर मोदी के लिए एक ऐसा पल होगा कि वह सार्वजनिक तौर पर पाकिस्तान से कहें कि भारत में एक परिवर्तन आया है और उसे यह अवश्य स्वीकार करना होगा। हम हर बार पलटवार करेंगे जब भी आप हम पर वार करोगे। यदि यह दृढ़ता तथा मजबूती का परीक्षण है, जो आप चाहते हैं तो हम आपका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। मगर यदि आप आतंक को एक ओर रखने के इच्छुक हैं तो हम एक उचित राजनीतिक समाधान तलाशने के लिए बैठ कर बात करने को तैयार हैं। निर्णय आपको करना है।

हम परेशान करने वाले अपने पड़ोसी के साथ संबंधों के एक नए तथा अशांत चरण में प्रवेश कर गए हैं, इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता मगर मिथ्याभास यह है कि वर्तमान तनाव के बीच समाधान की आशा कहीं नजर नहीं आती।

यह मिथ्याभासी दिखाई देता है मगर जीवन विरोधाभासों से भरपूर है। इतिहास ने साबित किया है कि ताकत का प्रदर्शन कई बार एक शांतिपूर्ण समाधान का मार्ग प्रशस्त करता है।   

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