पाकिस्तान में बंदूक की नली से निकलती है सत्ता

punjabkesari.in Saturday, Feb 25, 2023 - 05:05 AM (IST)

भारत सरकार कथित तौर पर सामान्य स्थिति के संकेतों की ओर देखते हुए कश्मीर घाटी के भीतरी इलाकों से भारतीय सेना को चरणबद्ध तरीके से वापस लेने पर विचार कर रही है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर में कई राजनीतिक दल सेना की पूरी तरह वापसी की मांग कर रहे हैं। सुरक्षा प्रतिष्ठान के अधिकारियों के अनुसार कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना की वापसी पर करीब 2 वर्षों से चर्चा चल रही है। बताया जा रहा है कि यह अभी अपने शुरूआती चरण में है।

यह सुझाव दिया गया है कि सी.आर.पी.एफ., जे.एंड के. पुलिस को घाटी में  कानून-व्यवस्था और आतंकवाद विरोधी अभियानों की चुनौतियों का सामना करने के लिए सेना के जवानों की जगह लगाया जाएगा। अंत में राजनीतिक प्रक्रिया इस मामले पर निर्णय लेगी। मेरा मानना है कि जल्दबाजी में कुछ नहीं करना चाहिए। नई दिल्ली को अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर तनाव कम करने के लिए अंतिम आह्वान करने से पूर्व सुरक्षा और राजनीतिक विचारों के सभी पहलुओं को ध्यान में रखना होगा।

इस संदर्भ में हमें इस्लामाबाद के बारे में बुनियादी सच्चाई को नहीं भूलना चाहिए। पाकिस्तान में सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। सामान्य समय में भी पाक सेना को स्थिति संभालनी पड़ती है। लोकतंत्र हो या न हो सैन्य ढांचा पाकिस्तान में जीवन की एक सच्चाई है। सेना वहां समाज के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को निर्धारित करती है। नई दिल्ली को भी लगातार याद रखना चाहिए कि पश्चिमी दुनिया को उप-महाद्वीप की बहुत सीमित समझ है।

यह हर चीज को उप-महाद्वीप के परमाणुकरण और ज्वलंत कश्मीर मुद्दे के संदर्भ में देखता है। हाल ही में अमरीकियों ने कुछ हद तक पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद से निकलने वाले खतरों के संकेतों की सराहना करनी शुरू कर दी है। असल मुद्दा यह है कि क्या पश्चिमी दुनिया पाकिस्तानी प्रतिष्ठान को छद्म युद्ध खत्म करने के लिए कहेगी ताकि भारत-पाक सार्थक संवाद के लिए सही माहौल बनाया जा सके? पश्चिमी रवैये के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर सैनिकों की मात्र वापसी दोनों देशों के बीच संबंधों के सामान्यीकरण के लिए शायद ही अनुकूल हो सकती है। समस्या की जड़ पाकिस्तान प्रशासन द्वारा छेड़ा गया छद्म युद्ध है जो अक्सर इस देश में अमन-चैन के साथ खेला जाता है। जो भी हो पाकिस्तान आज राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर है। भारतीय दृष्टिकोण से वास्तविक खतरा पाकिस्तान में तालिबान और अन्य इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों के बढ़ते जाल से है। हम मानें या न मानें, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान अपने ही बुने हुए जाल में फंसा हुआ है।

यह एक ऐसे राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान की मांग कर रहा है जो पारम्परिक उप-महाद्वीप के परिवेश में सबसे अलग हो। इस उद्देश्य की पूॢत के लिए पाकिस्तानी शासकों ने लोगों की लम्बी परम्पराओं के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और  ऐतिहासिक लोकाचार को ध्यान में रखे बिना देश के इस्लामीकरण का विकल्प चुना है। हालांकि मेरा विचार है कि पाकिस्तान के शासकों को अपनी आतंक उन्मुख मानसिकता बदलनी चाहिए अन्यथा वे खुद को एक शासक के साथ लगातार युद्ध में पाएंगे।

इस्लामाबाद कई दशकों से अमरीकी सैन्य गठबंधन का हिस्सा रहा है। प्रायोगिक स्तर पर यह साम्यवाद के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे रहा है। इसने इसे अफगान संकट में उलझा दिया। यह तालिबानीकरण की प्रक्रिया की शुरूआत थी जिसका असर अमरीकी भी महसूस कर रहे हैं। वैसे भी पाकिस्तान में जो कुछ भी किया गया है वह काफी परेशान करने वाला है। धार्मिक आतंकवाद और इस्लामी कट्टरवाद की ताकतों के लिए कोई और प्रोत्साहन दीर्घावधि में प्रति उत्पादक होगा।

अभी इस्लामाबाद के सामने बड़ी समस्या अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है। निरक्षरता और अल्प विकास के खिलाफ लड़ाई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।बहुचर्चित इस्लामिक बम आतंक का संतुलन तो बना सकता है लेकिन यह लोगों को बुनियादी सुविधाएं जैसे भोजन, पानी, आश्रय और कपड़ा नहीं दे सकता। यह अफसोस की बात है कि सत्ता को बनाए रखने और दृश्यमान तथा अदृश्य विरोधियों को खत्म करने के लिए पाकिस्तान के शासकों ने लोगों को इस्लाम और धार्मिक आतंकवाद के नाम पर उलझा कर रखा है।

अब समय आ गया है कि पाकिस्तान के नेताओं को यह एहसास हो जाए कि कट्टरता एक घातक खेल है। जब सत्ता हथियाने के लिए उन्मुक्त किया जाता है तो यह भयावह संकेत प्राप्त करता है। हालांकि भूृ-राजनीतिक वास्तविकताओं की अधिक व्यावहारिक समझ इस्लामाबाद को भारत के प्रति अपनी सोच और रुख को तर्कसंगत बनाने में मदद कर सकती है। इसलिए भारतीय शासकों के लिए यह आवश्यक है कि वे अपने पहरे पर रहें और सामान्य स्थिति के लिए आधे-अधूरे इशारों में खुद को बहकाने की अनुमति न दें। -हरि जयसिंह


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