अधीर रंजन चौधरी की नियुक्ति से पश्चिम बंगाल में नए राजनीतिक अवसरों की सम्भावना

Saturday, Jun 22, 2019 - 03:38 AM (IST)

स्वतंत्रता के बाद पहले कांग्रेस ने और फिर माकपा के नेतृत्व में बने वाम मोर्चा ने पश्चिम बंगाल में लगातार क्रमवार 30 तथा 34 साल शासन किया है। इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद इस राज्य में जहां कांग्रेस हाशिए पर पहुंच गई है, वहीं वाम मोर्चा शून्य हो गया है। इसका क्या कारण है? इस प्रश्र का उत्तर ढूंढने के लिए न तो कांग्रेस ने आत्ममंथन किया है और न ही वाम मोर्चा ने, बल्कि इन दोनों पार्टियों की इस कमजोरी ने पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के लिए स्थान बना दिया है। 

कांग्रेस तथा वाम मोर्चा को इस बार हुए लोकसभा चुनावों में भारी कीमत चुकानी पड़ी है। दोनों पाॢटयों में आपसी सूझबूझ न होने के कारण माकपा के हाथों से रायगंज की सीट तथा कांग्रेस के हाथों से जंगीपुर तथा मुर्शिदाबाद की सीटें छिन गईं। 2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के समय कांग्रेस तथा वाम मोर्चा ने आपसी गठजोड़ बनाया था, जिसका उस समय दोनों पार्टियों को ही लाभ हुआ था। उस समय प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रधान थे अधीर रंजन चौधरी। इस गठजोड़ ने कांग्रेस के अब्दुल मनन को काफी समय बाद विधानसभा में विरोधी पक्ष का नेता बनने में मदद की थी। दोनों पार्टियां एकजुट होकर विधानसभा में काम करती रहीं। 

शारदा-नारदा घोटालों को लेकर तो कई बार इन्होंने विधानसभा में शासक दल तृणमूल कांग्रेस के पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी थी। अधीर रंजन चौधरी ने इस बार बहरामपुर से तृणमूल तथा भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले विजय प्राप्त की। इसमें कोई संदेह नहीं कि अंदरखाते वाम मोर्चा ने भी चौधरी की मदद की। इस हलके में जहां अधीर रंजन चौधरी को विजय हासिल हुई, वहीं 18 सीटें जीतने वाली भाजपा के उम्मीदवार की इस हलके में जमानत जब्त हो गई। इस जीत ने यह साबित कर दिया कि चौधरी आम लोगों के नेता हैं। दूसरी ओर उनकी संगठनात्मक शक्ति का भी विरोधियों को पता लग गया है। 

पार्टी ने बड़ा विश्वास जताया
अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में कांग्रेस दल का नेता बनाया गया है। चौधरी की इस नई नियुक्ति ने पश्चिम बंगाल कांग्रेस के उनके समर्थकों में नया उत्साह पैदा किया है। उनमें आशा जागी है कि इससे जहां कांग्रेस में नई जान फूंकने का मौका मिलेगा, वहीं कांग्रेस विधायकों तथा पार्षदों के सत्ताधारी तृणमूल में जाने पर रोक लगेगी। सितम्बर 2018 में अधीर रंजन चौधरी को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया गया था। अब उन्हें लोकसभा में कांग्रेस दल का नेता बनाया गया है। इस तरह पार्टी ने उन पर बहुत बड़ा विश्वास जताया है। चौधरी की इस नियुक्ति से पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ आने की सम्भावना भी बनी है। 

लोकसभा चुनावों से पहले ही अधीर रंजन चौधरी ने कांग्रेस तथा वाम मोर्चा के बीच आपसी सूझबूझ बनाने की कोशिश की थी मगर सत्ताधारी धड़े ने ऐसा नहीं होने दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि जहां माकपा ने अपनी वोटें भाजपा की झोली में डाल दीं, वहीं कांग्रेस को अकेले ही मैदान में उतरना पड़ा और अपने बल पर उसने दो सीटों पर जीत हासिल की। चौधरी के लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता बनने से पश्चिम बंगाल में कांगेस तथा वाम मोर्चा के बीच नजदीकियों के आसार बने हैं। चौधरी को जहां लोकसभा में विरोधी दल को महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने साथ चलने का कत्र्तव्य निभाना होगा, वहीं पश्चिम बंगाल में 2021 में होने वाले विधानसभा चुनावों की रोशनी में समान विचारधारा वाले दलों को साथ लेकर चलना पड़ेगा।-बचन सिंह लाल

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