जनसंख्या नियंत्रण कानून वास्तविकता नहीं, कल्पना पर आधारित
punjabkesari.in Saturday, Jul 03, 2021 - 03:54 AM (IST)

संसार के सभी विकसित देशों के सामने आबादी की तुलना में संसाधन कम होने की समस्या रही है। उनके यहां भी यह परेशानी थी कि आमदनी कम और खर्चा ज्यादा और उन्होंने असलियत समझकर उपाय किए और सफलता प्राप्त की। यदि इन देशों की कार्य प्रणाली पर नजर डालें तो यही देखने को मिलेगा कि इन देशों ने कानून बनाने से ज्यादा उन चीजों को महत्व दिया जिनसे जिंदगी खुशहाल हो, जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का भरपूर इंतजाम और आज वे सबसे आगे हैं। इन देशों ने सीमित परिवार का फार्मूला इतना अधिक अपनाया कि आज उनमें आबादी बढ़ाने की होड़ लगी है।
कानून नहीं, सुविधाएं चाहिएं : जहां तक हमारे देश की बात है, अक्सर इस बात पर बहस होती रहती है कि आबादी को काबू में करने के लिए दो बच्चों का कानून हो और जो दो से ज्यादा बच्चे पैदा करे, उसे सरकारी और गैरसरकारी सुविधाओं से वंचित कर दिया जाए। ऐसा कहने वाले भूल जाते हैं कि संतान का होना या न होना प्रत्येक व्यक्ति की दुखती रग है जिसे छेडऩा या कुरेदना ऐसे घाव दे सकता है जो नासूर बनकर हमेशा रिसते रहते हैं। यदि दो बच्चों का कानून बिना किसी तैयारी के लागू किया गया, इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
वास्तविकता यह है कि हमारी भावनाएं, संवेदनशीलता और संतान के प्रति हमारी कामनाएं जन्म से मिले संस्कारों से बंधी हैं। हालांकि हमारे देश में ऐसे माता-पिता की सं या तेजी से बढ़ रही है जो एक या ज्यादा से ज्यादा दो बच्चों से अधिक संतान चाहते ही नहीं, जबकि उनकी आॢथक स्थिति एेसी नहीं है कि अगर ज्यादा संतान हो जाए तो वे उसे पाल-पोस नहीं सकते। मतलब यह कि उनकी सोच ऐसी हो गई है कि उन्हें एक या दो बच्चे ही चाहिएं। इस सोच की वजह कोई कानून नहीं, बल्कि उनका पढ़ा-लिखा होना, अच्छा खासा रोजगार या नौकरी होना और इतनी आमदनी होना है कि वे यह प्लान बना सकें कि उन्हें कहां घूमने जाना है, कैसी जगह रहना है और बाकी जिंदगी कैसे हंसते मुस्कुराते बितानी है, बजाय इसके कि ज्यादा बच्चे पैदा कर उन्हें बड़ा करने में ही अपनी खुशियों का बलिदान देते रहें।
सोच बदलने की जरूरत : इसका मतलब यह हुआ कि सरकार और समाज को ऐसी व्यवस्था बनानी है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की दिशा में कोई कमी न रहे और जिन क्षेत्रों, जिलों, प्रदेशों में आबादी बिना रोक-टोक बढ़ती रहती है, उनके लिए ऐसी योजनाएं बनाकर अमल में लाना सुनिश्चित किया जाए कि लोगों की सोच बदले और वे बच्चे पैदा करने से ज्यादा जरूरी यह समझें कि कैसे उन लोगों की कतार में शामिल हों जो संपन्न हैं? सबसे पहले तो यह मान लीजिए कि आबादी को बढऩे से रोकना कोई रॉकेट साइंस नहीं है बल्कि साधारण सा मनोविज्ञान है, जिसे हर कोई आसानी से समझ सकता है और ऐसा नहीं है कि यह देश में हुआ नहीं है, बल्कि अनेक जिलों में सफलतापूर्वक पूरा हुआ है।
जिस समाज की आबादी बेरोकटोक बढ़ती है, वहां कंडोम या अन्य गर्भनिरोधक पहुंचाने और उनका इस्तेमाल करने को इस तरह से बताना होगा कि जिस तरह रोटी खाना जरूरी है उसी तरह यह भी है। पुरुषों और विशेषकर महिलाओं को यह कहने के लिए तैयार करना होगा कि अगर यह नहीं तो फिर समागम नहीं। जिन क्षेत्रों में ज्यादातर गरीबी रेखा से नीचे की आबादी रहती है जिनमें खेतों, कंस्ट्रक्शन प्रोजैक्टों में दिहाड़ी मजदूरी करने वाले, घरों, कारखानों में मामूली वेतन पाने वाले, मनरेगा में कुछ काम पा जाने वाले और इसी तरह का काम करने वाले हैं, जिनके लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना ही लक्ष्य है, यह आबादी ही जनसं या वृद्धि का मूल कारण है क्योंकि इनके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सही रोजगार के बारे में कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं गया। इनमें ज्यादा बच्चे होने को बुरा भी नहीं समझा जाता क्योंकि बड़े होने पर वे आमदनी का जरिया बन जाते हैं क्योंकि पढ़ाई-लिखाई से इन्हें परहेज रहता है।
सबसे पहले तो इस विशाल वर्ग के एम्प्लॉयर के लिए इस तरह का नियम बनाया जाए कि उसके यहां काम करने वाली महिला यदि गर्भवती है तो उसके स्वस्थ रहने, प्रसव के समय पूरी देखभाल और नवजात शिशु के पौष्टिक भोजन तथा एक महीने तक शिशु गृह में रहने का खर्च उसे उठाना होगा। दिहाड़ी मजदूरी करने वाली गर्भवती महिला के प्रसव और उसके बाद उसकी और नवजात शिशु की देखभाल का इंतजाम स्वास्थ्य केंद्रों, अस्पतालों में मुक्त होना सुनिश्चित किया जाए। यह काम कुछ राज्यों में पूर्ण सफलता के साथ किया जा चुका है।
यह काम हमारे यहां आंगनबाड़ी, स्व-सहायता समूह और ऐसे ही संगठनों का जो एक विशाल और मजबूत तंत्र है, उसे आर्थिक सहायता और उनके कार्यकत्र्ताओं को प्रोत्साहन राशि देकर बड़ी आसानी से किया जा सकता है। प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं प्रदान करने वाले तंत्र को मजबूत करना होगा ताकि बच्चा जब पालने से बाहर आए तो सीधा स्कूल में जाए न कि उसे घर में बिठा लिया जाए। यह कानून बन सकता है कि जो परिवार बच्चों को पढ़ाने के बजाय उनसे मजदूरी कराते हैं उन्हें सजा मिले।
जिन धर्मों, सामाजिक व्यवस्थाओं में एक से अधिक विवाह करने को मान्यता प्राप्त है जैसे कि मुस्लिम समाज, उनके प्रमुखों से संवाद स्थापित कर इस तरह की योजना बनानी होगी कि बहु विवाह परंपरा पर अंकुश लग सके। वैसे आज की हकीकत यह भी है कि मुस्लिम समाज का शिक्षित, संपन्न तबका ज्यादा संतान होने का हिमायती नहीं है। यदि सरकार वास्तव में चाहती है कि आबादी की तेज रफ्तार पर लगाम लग जाए तो उसे दो बच्चों के कानून को लागू करने के स्थान पर लोगों की बुनियादी सोच बदलने के कार्यक्रम बनाने होंगे। एक बार सोच बदलने का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर किसी कानून की जरूरत नहीं पड़ेगी और हमारे संसाधनों के अनुसार ही आबादी बढ़ेगी।-पूरन चंद सरीन