प्रदूषित होती नदियां एक बड़ा खतरा

punjabkesari.in Tuesday, Mar 08, 2022 - 05:22 AM (IST)

इंसानों द्वारा इस्तेमाल की गई रासायनिक दवाओं, कीटनाशकों व अन्य कारणों से दुनिया भर की नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है, जो हमारी पारिस्थितिकी व लोगों के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक है। दुनिया के सभी महाद्वीपों के 104 देशों की 258 नदियों पर एक बड़ा वैज्ञानिक शोध किया गया, जिसमें भारत की नदियों में दवा से जुड़े तत्वों का स्तर ज्यादा पाया गया। 

दुनिया भर के 86 संस्थानों के 127 वैज्ञानिकों द्वारा नदियों में प्रदूषण पर अब तक का यह सबसे बड़ा शोध है। इंगलैंड की यॉर्क यूनिवर्सिटी के शोधकत्र्ताओं द्वारा नदियों में दवा प्रदूषण के स्तर का पता लगाने के संबंध में किए गए शोध संबंधी रिपोर्ट अमरीका की प्रोसीडिंग्स ऑफ द नैशनल एकैडमी ऑफ साइंसेज ने प्रकाशित की है। 

शोधकत्र्ताओं ने दुनिया भर में 1052 स्थानों से पानी के नमूने एकत्र किए, जिसमें उन्होंने 61 सक्रिय दवाओं के अंश (ए.पी.आई.) का परीक्षण किया। रिपोर्ट के अनुसार 104 देशों की नदियों के 19 फीसदी ऐसे स्थान हैं, जिनमें वैज्ञानिकों ने एंटीबायोटिक्स का स्तर अधिक पाया। इससे जीवाणुओं में रेजिस्टैंस बनने की आशंका बढ़ गई है। 

नदियों के 5 में से 1 स्थल पर एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी खतरनाक स्तर तक पाई गई। नदियों में सबसे ज्यादा मिर्गी रोधी दवा कार्बमेजपाइन पाई गई, क्योंकि यह दवा जल्दी टूटती नहीं। इसके अलावा नदियों में मधुमेह की दवा मेटफॉर्मिन और कैफीन की बड़ी मात्रा पाई गई। नदियों में ये तीनों दवाएं आधे से अधिक शोध स्थलों पर मिली हैं। अधिकतर शोध स्थलों पर किसी न किसी एक दवा का कोई न कोई तत्व मिला है। दवा बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली सामग्री या तत्वों को एक्टिव फॉर्मास्यूटिकल्स इन्ग्रेडिएंट्स (ए.पी.आई.) कहते हैं। 

इस अध्ययन में कार्बामाजेपाइन, मेटफॉर्मिन और कैफीन जैसी 61 दवाओं की उपस्थिति मापने के लिए आकलन किया गया है। अध्ययन की गई इन नदियों में से 36 देशों की नदियों पर पहले कभी भी फार्मास्यूटिकल्स की निगरानी नहीं की गई। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान के लाहौर, बोलिविया के ला पाज और इथियोपिया के आदिस अबाबा में नदियों के जलस्तर में ए.पी.आई. का स्तर अधिक मिला है। इसी तरह ब्रिटेन, ग्लासगो, डलास (अमरीका) में यह स्तर 20 फीसदी है। स्पेन का मैड्रिड शीर्ष 10 स्थानों में शामिल है, जहां नदी में सभी तरह की दवाओं के ए.पी.आई. का मिश्रण सबसे अधिक पाया गया। 

शोध के अनुसार आइसलैंड और वेनेजुएला में 2 गांव हैं, जो आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करते, वहां नमूनों में कुल सक्रिय दवाओं के अंश या फार्मास्यूटिकल इन्ग्रीडिएंट्स (ए.पी.आई.) की औसत सांद्रता शून्य पाई गई। यानी वहां की नदियां दवाओं से प्रदूषित नहीं हैं। जबकि लंदन में नदियों में दवाओं की मात्रा 3,080 नैनोग्राम प्रति लीटर, दिल्ली में 46,700 और लाहौर में सबसे अधिक 70,700 तक पाई गई है। 

दरअसल इंसानों द्वारा प्रयोग की गई दवाएं गंदगी के रूप में सीधे सीवर के जरिए औक दवा कंपनियों में दवाओं के निर्माण के दौरान निकलने वाले तत्व भी सीधे नदियों के पानी में मिल जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर की नदियों के पानी में दवाओं से जुड़े तत्वों का स्तर बढ़ता जा रहा है। नदियों में दवाओं का यह प्रदूषण दवा निर्माण संयंत्रों से निकलने वाले दूषित जल, बिना उपचार के सीवेज के पानी, शुष्क जलवायु, नदी के किनारे कचरा जमा करने या डंपिंग करने, अपशिष्ट निपटान की बुनियादी सुविधाओं के अभाव और अवशिष्ट सैप्टिक टैंक के कचरे को नदियों में डालने से पैदा हो रहा है। 

असल में इन देशों में दूषित जल और उद्योग से निकले प्रदूषित जल के निपटान के कानून तो बने हैं, लेकिन उन पर सही अमल नहीं हो पाता। सरकारों को इस पर सख्ती से काम करना और इन कानूनों को ठीक से लागू करना चाहिए, तभी नदियों को प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। जिन इलाकों में सीमित मानव जनित प्रभाव है, आधुनिक दवाओं का इस्तेमाल कम होता है, अत्याधुनिक दूषित जल उपचार ढांचा है और नदियों में पर्याप्त बहाव है, वहां की नदियों में दवाओं का अंश कम पाया गया है। 

दवा से होने वाला प्रदूषण वन्यजीवों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इससे मछलियों के साथ-साथ दूसरे जलीय जीवों के लिए भी खतरा बढ़ता जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नदियों में दवाओं के कारण बढ़ रहा प्रदूषण करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता है। दवा उद्योग एक ओर जहां गंभीर बीमारियों में इलाज के लिए इंसानों को दवाएं उपलब्ध कराता है, वहीं दूसरी ओर इंसानों और पर्यावरण दोनों के लिए बड़ा वैश्विक खतरा भी बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि सुरक्षित भविष्य के लिए एंटीबायोटिक समेत अन्य दवाओं का इस्तेमाल बहुत संभल कर करने की आवश्यकता है। खासकर वहां, जहां बिना डॉक्टरी सलाह के दवाएं बेची जाती हैं, क्योंकि लापरवाही भविष्य के लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। 

किसी देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और उसकी नदियों में दवाओं के अधिक मात्रा में प्रदूषण के बीच सीधा संबंध है। निम्न-मध्यम आय वाले देशों की नदियां इससे सर्वाधिक प्रदूषित पाई गई हैं। दवाओं के प्रदूषण का उच्च स्तर अधिक औसत आयु के क्षेत्रों के साथ-साथ उच्च स्थानीय बेरोजगारी और गरीबी दर के साथ भी जुड़ा पाया गया है। अध्ययनकत्र्ताओं का मानना है कि ऐसा शायद इसलिए है, क्योंकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपशिष्ट जल के उपचार के बुनियादी ढांचे सीमित हैं। लेकिन कम आय वाले देशों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी के पास दवाओं तक पहुंच अधिक है। 

इस शोध में भारत के नमूनों में कैफीन और निकोटीन जैसी उत्तेजक सहित अन्य दवाओं के अलावा एनाल्जेसिक एंटीबायोटिक्स, एंटी-कॉन्वेलसेंट्स, एंटी-डिप्रेसेंट्स, एंटी-डायबिटिक, एंटी-एलर्जी दवाएं और बीटा ब्लॉकर्स नामक काॢडयोवैस्कुलर दवाएं पाई गई हैं। हालांकि इस तरह के प्रदूषण से इंसानों को होने वाले नुक्सान का अभी तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला, लेकिन वैज्ञानिकों को चिंता है कि अगर भोजन के लिए लोगों द्वारा उपयोग में लाए गए जलीय जीवों के शरीर में दवा की मात्रा लोगों द्वारा आवश्यक चिकित्सीय सांद्रता के स्तर तक पहुंच जाती है तो इससे इंसानों पर प्रभाव पड़ सकता है।-रंजना मिश्रा 
 


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