राजनीतिज्ञों को अपनी आलोचना स्वीकार करना सीखना होगा

Sunday, Jan 06, 2019 - 03:54 AM (IST)

नए वर्ष 2019 का आगाज हो चुका है और हम अभी भी एक ऐसे बिंदू पर हैं जहां आशा कर सकते हैं कि नया साल बीते साल से बेहतर होगा। हालांकि कुछ सप्ताहों में ऐसी आशाएं निराशाजनक साबित होंगी, वास्तविकता हमारे सामने होगी तथा हमारी अपेक्षाएं छटपटाने लगेंगी। मगर आज मैं एक प्रश्र पूछूंगा, जो मैंने नववर्ष की पूर्व संध्या पर भी पूछा था-आप भारत के राजनीतिज्ञों से क्या आशा करते हैं? 

मेरा उत्तर साधारण है। उन्हें आलोचना स्वीकार करना सीखने दें। यह गलत हो सकता है तथा पक्षपाती भी लेकिन हम भारत के लोगों को उन लोगों की आलोचना करने का अधिकार है, जिन्हें हमने चुना है। चुनावों के बीच उन्हें जमीन पर लाने का यही एकमात्र तरीका है। अन्यथा वे ऊपर उड़ते हुए हमें दासता में रखेंगे। मगर गत वर्ष के अंतिम दिनों में दो अलग लेकिन महत्वपूर्ण घटनाक्रमों ने मुझे यह मानने पर बाध्य कर दिया कि यह एक ऐसी चीज है जिसे हमारे नेता स्वीकार नहीं कर सकते। 

घटनाक्रमों के उदाहरण 
दिसम्बर में मणिपुर सरकार ने 29 वर्षीय किशोरचंद्र वांगखेम को राज्य के मुख्यमंत्री की आलोचना करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (पहले देशद्रोह के कानून के अंतर्गत गिरफ्तारी के बाद) के तहत गिरफ्तार किया। उसने ऐसा क्या कहा था जो इतना अस्वीकार्य था? उसने मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री की कठपुतली बताया था। और उसने यह क्यों कहा? इसलिए क्योंकि उसने सरकार के रानी झांसी के सम्मान में समारोह मनाने के निर्णय का विरोध किया था, जिसके बारे में उसका मानना था कि अंग्रेजों के खिलाफ मणिपुर के अपने संघर्ष में रानी का कोई लेना-देना नहीं था। इसके लिए उसे बिना मुकद्दमा चलाए 1 2 महीनों तक हिरासत में रखा जा सकता था। 

इससे पहले कोणार्क मंदिर की आलोचना करने, रसगुल्ले के ओडिशा मूल का होने पर प्रश्र उठाने तथा राज्य के विधायकों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करने का दुस्साहस दिखाने के लिए अभिजीत अय्यर-मित्रा को अक्तूबर में गिरफ्तार कर ओडिशा में जेल में डाल दिया गया। यहां तक कि इस विशेष घटना में सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी समानुपात की भावना खो दी। जब अय्यर-मित्रा ने यह तर्क देते हुए अदालत में याचिका दी कि जेल में उसके जीवन को खतरा है, तो अदालत की प्रक्रिया यह थी कि इस मामले में जेल से बेहतर स्थान कोई नहीं। 

कांग्रेस सरकारें भी भिन्न नहीं थीं
अपने समय में कांग्रेस सरकारें भी भिन्न नहीं थीं। असीम त्रिवेदी, जो मात्र 25 वर्ष का था, को केवल इसलिए मुम्बई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया क्योंकि उसने अपने कार्टूनों में संसद को एक शौचालय के रूप में दिखाया था। तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी ने कहा था कि कार्टूनिस्टों को ‘संवैधानिक मानदंडों के दायरे में रहना चाहिए’। उन्होंने यह भी कहा कि ‘उन्हें राष्ट्रीय प्रतीकों को अपने कार्टून की वस्तु नहीं बनाना चाहिए।’ 

क्यों नहीं? हम अपने नेताओं पर तंज कस सकते और उनका उपहास उड़ा सकते? निश्चित तौर पर, हम उनके प्रति रूखे क्यों नहीं हो सकते? ब्रिटिश अपनी रानी का मजाक उड़ाते थे तथा यूनियन जैक (ब्रिटेन का राष्ट्रीय ध्वज) को जुराबों तथा कच्छे पर पहनते थे और इसे एक अच्छे हास्य में लिया जाता था। डोनाल्ड ट्रम्प के प्रति अपने व्यवहार में अमरीकी निर्दयी हैं और राष्ट्रपति इसे पसंद नहीं करते लेकिन वह उन्हें जेल की धमकी देने की हिम्मत नहीं करते। परंतु अपने आडम्बरी नेताओं या अधिकारियों पर चुटकुला सुनाएं, उनका मजाक उड़ाएं तो आप खुद को सलाखों के पीछे पा सकते हैं।

राजनीतिज्ञों को सहनशील होना चाहिए 
‘राजनीतिज्ञों को अवश्य सहनशील होना चाहिए,’ मार्कंडेय काटजू चिल्लाए थे, जब वह प्रैस कौंसिल के अध्यक्ष थे, ‘यह तानाशाही नहीं है।’ तब उन्हें किसी ने नहीं सुना था और निश्चित तौर पर आज भी नहीं। फिर भी हम विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का दावा करते हैं। आकार के लिहाज से नि:संदेह हम हैं लेकिन यदि भावना की बात करें तो हम यह एहसास किए बिना कि हम क्या कर रहे हैं, खुद से धोखा करेंगे। 

इसलिए मैं अपने राजनीतिज्ञों से कहता हूं, चाहे वे कांगे्रस के हों या भाजपा के, राष्ट्रीय अथवा क्षेत्रीय, बहुत बड़े या छोटे, कि मेरे लोकतंत्र को महान बनाएं। अगली बार देशवासी जब आपकी निंदा करें, आपके चेहरे पर हंसें तो यदि आपके दांत अच्छी तरह से भिंचे भी हों तो अच्छे से मुस्कुराना सीखें। कोई भी चीज भारतीय लोकतंत्र को इतना खोखला नहीं बनाती जितनी कि आलोचना के प्रति आपकी असहनशीलता। दूसरी ओर यदि आप हास्य की भावना पा सकें तो आपके और अधिक मित्र होंगे।-करण थापर

Pardeep

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