राजनेता चुनावों को धर्म के आधार पर न लड़ें

punjabkesari.in Thursday, Jul 08, 2021 - 05:06 AM (IST)

आर. एस.एस. के मोहन भागवत ने कहा है कि, ‘‘हम सब भारतीयों का डी.एन.ए. एक ही है, फिर चाहे वे किसी भी धर्म के हों।’’ हम जैसों के लिए ऐसे शब्दों को उठाना कितना आसान है कि सभी भारतीय मेरे भाई और बहनें हैं और हम में से अलग तौर पर पूजा कर रहे कुछ लोगों से हम अपनी पीठ मोड़ लेते हैं। मगर जब एक राष्ट्रीय नेता अपने सच्चे मन और जोरदार ढंग से कहता है कि, ‘‘हमारा सबका डी.एन.ए. एक है तो निश्चित ही यह बात प्रभाव छोड़ती है।’’ 

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एक घटना घटी जो मेरे दिमाग में आ रही है। फ्रांसीसी बलों में लियोंस का रबी एक यहूदी पादरी था। एक बार खाइयों में से निकल कर एक व्यक्ति ने रबी को कहा कि एक रोमन कैथोलिक मरने की कगार पर है और उसे एक कैथोलिक पादरी चाहिए जो उसके मृत्यु स्थल पर एक क्रॉस लेकर आए। कोई भी कैथोलिक पादरी मिल नहीं पाया। यहूदी रबी ने एक काम चलाऊ क्रॉस प्राप्त किया और मरते हुए व्यक्ति की आंखों के समक्ष उसे दिखाया। उसके बाद तत्काल ही कैथोलिक पादरी और यहूदी को गोलियां लगीं और दोनों एक साथ मृत पाए गए। 

एक अन्य कहानी भी है। सैंकड़ों साल पहले सिखों और मुसलमानों में एक युद्ध चल रहा था। गर्मी से तड़प रहे और घायल मुस्लिम सैनिकों को घनैया नाम का एक सिख पानी पिला रहा था। उसे सिखों के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के समक्ष लाया गया और उस पर एक गद्दार होने का आरोप लगा। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने घनैया पर लगे आरोपों को सुना और उसे उनका जवाब देने को कहा। घनैया ने कहा कि जब वह युद्ध के मैदान में से गुजरा तो मैंने किसी को मुसलमान या फिर सिख के तौर पर नहीं देखा। प्रत्येक व्यक्ति में मुझे आपका चेहरा नजर आया। 

गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा कि आप एक सच्चे सिख हैं। अपना अच्छा कार्य करते रहें और ज मों पर लगाने के लिए यहां कुछ मरहम है जो उन पर लगाएं। आज से आपको ‘भाई घनैया’ के नाम से पुकारा जाएगा। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का कहना था कि मानवता को पहचानें फिर चाहे कोई ङ्क्षहदू हो या मुसलमान। सब एक हैं। एक ही पिता सबका पालन करता है और सबका पोषण करता है। लोगों में भेदभाव न करें। मंदिर और मस्जिद सब एक हैं। इसलिए हिंदू पूजा करते हैं और मुसलमान इबादत। सभी व्यक्ति एक हैं।

आज हम एक ऐसे देश में रहते हैं जो सभी धर्मों के प्रति वास्तव में सहनशीलता रखता है। स्कूल के दिनों के दौरान मैंने शायद ही दोस्तों में कोई फर्क समझा हो, चाहे ईसार्ई हो या फिर किसी अन्य धर्म को मानने वाले मेरे अच्छे मित्रों में कुछ मुस्लिम भी शामिल थे और कालेज के अंतिम दिनों के दौरान मेरे कई दोस्त गैर-ईसाई थे और किसी ने भी मुझे विचलित नहीं किया। हमारा भारत देश ऐसा ही है। 

मोहन भागवत जैसे राष्ट्रीय नेता यदि एक के बाद एक इस तरह से अपनी अनुभूति प्रकटाएंगे और राजनीतिक नेता चुनावों को भोजन, घर तथा कपड़े जैसे मुद्दों पर लडेंग़े तो उनके मतदाता उनकी पूजा ही करेंगे। उन्हें धर्म के नाम पर नहीं लडऩा चाहिए क्योंकि आखिरकार हम सबका डी.एन.ए. एक है।-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैट्स


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