नया नहीं है अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण

punjabkesari.in Monday, Mar 04, 2024 - 05:42 AM (IST)

पश्चिम बंगाल के संदेशखाली में महिलाओं से यौन उत्पीडऩ और जमीन हड़पने का आरोपी तृणमूल कांग्रेस का नेता शेख शाहजहां जिस तरह कोर्ट में पेश होता हुआ दिखाई दिया उससे उसको मिल रहे राजनीतिक संरक्षण से कोई इंकार नहीं कर सकता। इस कारण टी.एम.सी. नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी आरोपों के घेरे में हैं। परंतु यहां सवाल उठता है कि ऐसी क्या मजबूरी होती है कि बिना अपवाद के सभी राजनीतिक पाॢटयों को कुख्यात अपराधियों को संरक्षण देना पड़ता है? यह बात नई नहीं है कि भोले-भाले वोटरों के बीच भय पैदा करने के उद्देश्य से सभी राजनीतिक दल स्थानीय अपराधियों और माफियाओं को संरक्षण देते हैं। लोकतंत्र की दृष्टि से क्या यह सही है?

जैसे ही संदेशखाली के आरोपी शेख शाहजहां के मामले ने तूल पकड़ा उसे टी.एम.सी. ने 6 साल के लिए पार्टी से निलंबित कर दिया है। पार्टी के इस फैसले का ऐलान करते हुए टी.एम.सी. नेता डेरेक ओ’ ब्रायन ने अन्य राजनीतिक दलों पर तंज कसते हुए कहा कि ‘एक पार्टी है, जो सिर्फ बोलती रहती है। तृणमूल जो कहती है, वो करती है।’ परंतु यहां सवाल उठता है कि यह काम पहले क्यों नहीं किया?

क्या कोर्ट में पेश होते समय शेख शाहजहां की जो चाल-ढाल थी उससे इस निष्कासन का कोई मतलब रह गया है? पश्चिम बंगाल की पुलिस शेख शाहजहां के साथ अन्य अपराधियों की तरह बर्ताव क्यों नहीं कर रही थी? क्या शेख शाहजहां का निलंबन केवल एक औपचारिकता है और असल में उसे भी अन्य राजनीतिक अपराधियों की तरह जेल में वे पूरी ‘सेवाएं’ दी जाएंगी जो हर रसूखदार कैदी को मिलती हैं?

जहां तक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का सवाल है उन पर यह आरोप अक्सर लगते आए हैं कि वे अपने प्रदेश में अल्पसंख्यक वर्ग के अपराधियों को संरक्षण देती आई हैं। इतना ही नहीं कई बार तो वह ऐसे अपराधियों को अपनी पार्टी का कार्यकत्र्ता बताते हुए उसे पुलिस थाने से छुड़ाने भी गई हैं। यहां सवाल उठता है कि जब भी कभी आप अपने घर या कार्यालय में किसी को काम करने के लिए रखने की सोचते हैं तो उसके बारे में पूरी छान-बीन अवश्य करते हैं। ठीक उसी तरह जब कोई राजनीतिक दल अपने वरिष्ठ कार्यकत्र्ता या नेता को कोई जिम्मेदारी देता है तो भी वह इसकी जांच अवश्य करते होंगे कि वह व्यक्ति पार्टी और पार्टी के नेताओं के लिए कितना कामगार सिद्ध होगा। यदि ममता बनर्जी जैसी अनुभवी नेता से ऐसी भूल लगातार होती आई है तो इसे भूल नहीं कहा जाएगा।

वहीं अगर दूसरी ओर देखा जाए तो विपक्षी दलों का आरोप है कि भाजपा भी अपराधियों को संरक्षण देने में किसी से पीछे नहीं है। मामला चाहे महिला पहलवानों के साथ दुव्र्यवहार करने वाले नेता बृजभूषण शरण सिंह का हो या किसानों पर गाड़ी चढ़ाने वाले गृह राज्यमंत्री के बेटे का हो या बलात्कार करने वाले कुलदीप सिंह सेंगर का हो। मणिपुर में हुई ङ्क्षहसा और बलात्कार की दर्जनों घटनाएं हों। भाजपा शासित राज्यों में ङ्क्षहसा, बलात्कार और अन्य अपराधों में लिप्त भाजपा के नेताओं की लिस्ट भी काफी लंबी है।

चुनाव सुधार पर काम करने वाले संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफॉम्र्स’ (ए.डी.आर.) की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत मौजूदा सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से 25 प्रतिशत हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आपराधिक मामलों में लिप्त हैं। बावजूद इसके उन्हें सांसद या विधायक बनाकर सदन में बिठा दिया जाता है।

इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 763 मौजूदा सांसदों में से 306 सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं। इनमें से ही 194 सांसदों ने खुद पर गंभीर आपराधिक मामले होने की घोषणा अपने नामांकन प्रपत्र में की है। देश में अपराधियों को मिल रहे राजनीतिक संरक्षण पर आज तक अनेकों रिपोर्टें बनीं और उनमें इस समस्या से निपटने के लिए कई सुझाव भी दिए गए। परंतु अपराधियों, नेताओं और नौकरशाही के इस गठजोड़ के चक्रव्यूह को अभी तक भेदा नहीं जा सका। यदि कोई भी राजनीतिक दल ठान ले कि वह आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को अपने दलों में संरक्षण नहीं देगा तो इस समस्या का समाधान अवश्य निकल सकता है।

जो भी राजनीतिक दल यदि केंद्र या राज्य में सत्ता में हों और यदि उसके समक्ष उसी के दल के किसी सदस्य या नेता के खिलाफ संगीन आरोप लगते हैं तो उन्हें इस पर उस दल के बड़े नेताओं को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए। देश की अदालतों के हस्तक्षेप का इंतजार नहीं करना चाहिए। यदि कोई भी ऐसा दल अपने किसी कार्यकत्र्ता या नेता के खिलाफ कड़ा रुख अपनाएगा तो मतदाताओं की नजर में उस दल का कद काफी ऊंचा उठेगा। इसके साथ ही वह दल दूसरे दलों पर अपराधियों को संरक्षण देने के मामले में बढ़-चढ़ कर शोर भी मचा सकेगा। 
इसके साथ ही भारतीय पुलिस तंत्र में भी ठोस सुधार किए जाने चाहिएं। देश के तमाम राजनीतिक दल भारत को अपराध मुक्त करने का दावा तो अवश्य करते हैं पर क्या इसे आचरण में लाते हैं?

क्या अपने-अपने दलों में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करना और जनता के सामने अपराध मुक्ति के बड़े-बड़े दावे करना विरोधाभास नहीं है? यदि चुनाव आयोग या देश की सर्वोच्च अदालत कुछ कड़े कदम उठाए और राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों पर पूरी तरह रोक लग जाए तो यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। परंतु ऐसा कब होगा देश के मतदाताओं को इसका इंतजार रहेगा। -विनीत नारायण


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