राजनीतिक दलों को क्या चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं

Sunday, Apr 07, 2019 - 04:02 AM (IST)

जहां सुप्रीम कोर्ट 21 विपक्षी दलों द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई कर रहा है, जिसमें यह मांग की गई है कि इलैक्ट्रानिक वोटिंग मशीन्स (ई.वी.एम्स) के साथ-साथ कम से कम 50 प्रतिशत वोटर वेरीफिएबल आडिट ट्रेल मशीन्स (वी.वी. पैट) की भी गणना की जाए, वहीं यह पूछा जाना भी उचित है कि यह राजनीतिक मांग तर्कसंगत है अथवा अनावश्यक। 

विशेषज्ञों की राय 
शुरूआत करते हैं कि विशेषज्ञ क्या मानते हैं। इस बारे सलाह देने के लिए चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त एक समिति ने निष्कर्ष निकाला है कि कुल 10.35 लाख में से महज 479 वी.वी. पैट्स तथा ई.वी.एम्स का सत्यापन ‘99.9936 प्रतिशत का विश्वास स्तर प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है।’ मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति पूछेंगे कि कैसे 0.046 प्रतिशत की जांच आप को लगभग 100 प्रतिशत विश्वास दे सकती है लेकिन इसका उत्तर सांख्यिकीय नमूनों के गणितीय तर्क में निहित है, जो न तो समझने में और न ही समझाने में आसान है। मैं जानबूझ कर इससे बचूंगा। इसकी बजाय मैं यह कहूंगा कि यह गणितीय तर्क का मामला अधिक है। इसके केन्द्र में यह प्रश्र है कि हम भारतीय लोगों को कैसे अपनी मतदान प्रणाली में विश्वास दिला देते हैं? इसके लिए क्या हमें एक बड़े नमूने की जांच की जरूरत नहीं है? अधिकतर लोग कहेंगे कि आप ऐसा करो। 

पहले से ही बड़ा नमूना
दरअसल सच्चाई यह है कि चुनाव आयोग पहले ही उल्लेखनीय रूप से एक बड़े नमूने की गणना कर रहा है। जैसा कि आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है, वे प्रत्येक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक विधानसभा खंड में एक वी.वी. पैट की जांच करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि 4,125 ई.वी.एम्स तथा वी.वी. पैट्स। यह वास्तव में विशेषज्ञों द्वारा सुझाई गई संख्या से 8.6 गुणा अधिक है। एक अन्य बिंदू : 2017 से लेकर, जब वी.वी. पैट्स को लागू किया गया था, 1500 मशीनों का परीक्षण किया गया है और गलती का एक भी मामला नहीं पाया गया। प्रथम दृष्ट्या यह कहने के लिए यह एक अच्छा तर्क है कि गणना को आयोग द्वारा निर्धारित संख्या से बढ़ाने की जरूरत नहीं है। 

यद्यपि आयोग को यदि ऐसा करने के लिए बाध्य किया जाता है तो इसकी स्पष्ट कीमत चुकानी होगी। यदि 50 प्रतिशत वी.वी. पैट्स की गणना की जाए तो इससे परिणाम घोषित करने में 6 दिन की देरी होगी। और चूंकि वी.वी.पैट्स की गणना हाथ से की जानी है तो गलतियां व विवाद हो सकते हैं तथा बार-बार गणना अपरिहार्य है। इसके प्रभाव स्वरूप हम वापस पुरानी कागजी मत प्रणाली की ओर लौट जाएंगे। इसे देखते हुए कि विशेषज्ञ यह मानते हैं कि हमारे पास पहले ही वी.वी. पैट की इतनी गणना है जो 99.9936 प्रतिशत विश्वास देती है, क्या हम वास्तव में इसे परिणाम में 6 दिन की देरी की कीमत पर बढ़ाना चाहते हैं? लगभग निश्चित तौर पर नहीं। दरअसल मुझे विश्वास है कि विपक्षी दल भी सहमत होंगे। 

ई.वी.एम्स को लेकर चिंता
फिर भी यदि चिंता इतनी बड़ी है कि ई.वी.एम्स के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है, चाहे यह केवल विपक्षी दलों तक ही सीमित हो, इसे दूर किया जाना चाहिए। अत: सम्भवत: केवल इस चुनाव के लिए, एक नियम के तौर पर नहीं, सभी ई.वी.एम्स में से 5 प्रतिशत की गणना की जा सकती है? यह फिर से जरूरी आश्वासन देने के लिए पर्याप्त हो सकता है। इसके साथ ही इससे परिणाम में केवल 12 घंटों की देरी होगी। इन परिस्थितियों में यह स्वीकार्य हो सकता है। 

हालांकि मैं एक अन्य प्रश्र उठाऊंगा। ई.वी.एम्स बारे शिकायतें तथा यह मान्यता कि उनसे छेड़छाड़ की जा सकती है, उन पाॢटयों द्वारा की जाती हैं, जो चुनाव हार जाती हैं। यह 2009 में भाजपा के बारे में भी उतना ही सच था जितना आज 21 दलों के बारे में है। क्या अब यह इतना अधिक इसलिए है क्योंकि राजनीतिक दलों को अयोग में नियुक्त लोगों में विश्वास नहीं है? 2009 में भाजपा को नवीन चावला को लेकर संदेह थे। आज विपक्ष को नरेन्द्र मोदी द्वारा नियुक्त लोगों को लेकर संशय है। निश्चित तौर पर इसका उत्तर आयोग की नियुक्ति के तरीके में बदलाव है? इसे सरकार पर छोडऩे की बजाय, यह एक कालेजियम द्वारा किया जाना चाहिए जिसमें विपक्ष का नेता तथा देश के चीफ जस्टिस जैसे लोग शामिल हों। क्या आप सहमत हैं?-करण थापर

Advertising