‘पुलिस का राजनीतिकरण न हो’

Thursday, Dec 17, 2020 - 03:40 AM (IST)

जैसा कि वर्ष 2020 समाप्ति के निकट है, मेरे जैसे पुलिसकर्मी को पुलिस के राजनीतिकरण की गति का संज्ञान लेना चाहिए जोकि प्रत्येक नागरिक के लिए चिंता का विषय है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नागरिकों को राजनीतिकरण की गति का पीछा करने के लिए ‘गति’ शब्द के इस्तेमाल के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रशासन के लिए पुलिस एक महत्वपूर्ण तंत्र है। प्रत्येक नागरिक को यह जानना जरूरी है कि ऐसा राजनीतिकरण अच्छे प्रशासन के कानून के नियम की अनदेखी करना है।

हमें दिल्ली पुलिस को देखना होगा। यह उस समय समाचार में थी जब जे.एन.यू. और बाद में जामिया मिलिया के छात्रों ने गलतियों, वास्तविकता या कल्पना के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए कुछ हिंसा या आंदोलन किया। दिल्ली पुलिस दक्षिणपंथी हिंदुत्व की हरकतों के प्रति बेहद सहनशील थी। वहीं इसके विपरीत छात्रों और वामपंथी यूनियनों पर बहुत कठोर रवैया रखती थी। कानून व्यवस्था के प्रति पुलिस को अपना रवैया ऐसा नहीं रखना चाहिए लेकिन संवैधानिक रूप से राजनीतिकरण का स्तर एक या दो पायदान ऊपर चला गया। पुलिस से निष्पक्षता अपेक्षित है तभी पुलिस के प्रति जनता का सम्मान बढ़ता है। 

वामपंथी छात्रों के खिलाफ पुलिस तेजी से आगे बढ़ी। वामपंथी छात्र यूनियन के अध्यक्ष को चेहरा छिपाए हुए व्यक्तियों का कैमरे पर स्वागत करते देखा गया जो कैंपस में प्रवेश कर गए और उन्होंने दक्षिणपंथियों की पिटाई की। उसके बाद पुलिस ने दक्षिणपंथियों को कैंपस में घुसने की अनुमति दे दी। पुलिस के चक्रव्यूह को तोड़ते हुए उन्हें आगे बढऩे दिया और तबाही मचाने की अनुमति दे दी। पुलिस द्वारा ऐसा रुख अपनाना कभी भी अपेक्षित नहीं है मगर फिर भी पुलिस ने एक पक्ष लिया। कोई भी स्वतंत्र निष्पक्ष पर्यवेक्षक यह निष्कर्ष निकालेगा कि इसके लिए आदेश ऊपर से आए थे। भारत में विभिन्न राज्यों के पुलिस प्रमुख तथा मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई के पुलिस आयुक्त राज्य के गृह मंत्रालय के मंत्रियों को सीधे रिपोर्ट करते हैं।  

दिल्ली में कमिश्नर उप राज्यपाल को रिपोर्ट सौंपते हैं जो बदले में केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं। नियुक्तियों तथा तबादलों की शक्तियां संबंधित गृह मंत्रालयों के पास होती हैं। गृह मंत्रालय द्वारा इन शक्तियों का दुरुपयोग ही राजनीतिकरण की उत्पत्ति है। राजनीतिकरण पूरे सिस्टम में समा चुका है। राजनीतिकरण के लिए योगदान कारक अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति है। अधीनस्थ पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति उनके वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों में होती है। जब राजनेताओं का निवेदन माना जाता है तब प्रशासन के आगे वरिष्ठ अपना आत्मसमर्पण कर देते हैं। इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है और संवेदनशील मामलों में जांच तथ्यों और कानून पर आधारित नहीं होती बल्कि सत्ताधारी नेता के हितों तथा उसकी आशाओं के अनुरूप होती है। 

दिल्ली पुलिस के राजनीतिकरण का प्रमाण उस समय उपलब्ध हुआ जब इसने भाजपा नेताओं जिन्होंने सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनकारियों पर जहर उगला, के खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से मना कर दिया। उनकी धमकियों को उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी 2020 में साम्प्रदायिक दंगों के दौरान जीवंत देखा गया। मगर दिल्ली पुलिस ने दंगों के सही कारणों का कोई संज्ञान नहीं लिया। इसके स्थान पर पुलिस ने छात्रों जिसमें ज्यादातर महिलाएं थीं और जिन्होंने सी.ए.ए. विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया था, पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। 

दिल्ली पुलिस को राष्ट्रीय स्तर पर पेशेवर रूप से सक्षम बल माना जाता है। इसने निर्भया दुष्कर्म और मर्डर केस की जांच का अद्भुत काम किया। उनके वर्तमान प्रमुख को एक सक्षम अधिकारी के रूप में भी जाना जाता है। दिल्ली पुलिस राजनीतिकरण का शिकार हुई है। राजनीतिक नेतृत्व के साथ व्यवहार करते समय यह नपुंसक प्रतीत होती है। भविष्य के वर्षों में इसके परिणाम गिरावट का संकेत देंगे। दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिकरण की प्रक्रिया को अधिक रूप से चिन्हित किया गया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अपराधियों की एक संख्या को संक्षेप में निष्पादित करना शुरू किया ताकि मध्यम वर्ग को कुछ खुश किया जा सके लेकिन अपराधिकता का माहौल सर्वव्याप्त है। पुलिस द्वारा जज और जल्लाद  की भूमिका अदा करने के बावजूद भी अपराधियों में खौफ नहीं देखा जाता। 

गैंगस्टरों से निपटने के लिए पुलिस बहुत छोटे तरीके का इस्तेमाल करती है। वर्तमान में यू.पी. पुलिस मुस्लिम दूल्हों को घेरने की कोशिशों में जुटी हुई है जो हिंदू लड़कियों के साथ शादी के बंधन में बंधने का हौसला रखते हैं। ऐसी शादी हिंदूवादी लोगों के लिए बहुत ही अप्रिय है। पुलिस को ऐसी शिक्षा दी जाती है कि वह निष्पक्ष होकर कानून को लागू करे मगर यह बहुत कम देखा गया है। पुलिस के राजनीतिकरण ने भारत में सभी हदों को पार कर लिया है। यदि इस पर समय सिर अंकुश नहीं लगाया गया तब विश्व में इसकी साख घटेगी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)

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