गर्भवती महिलाओं, शिशुओं का दम घोंटती जहरीली हवा

punjabkesari.in Monday, Jul 15, 2024 - 05:41 AM (IST)

हवा में घुले जहर में गर्भवती महिलाओं और नवजातों का दम घुट रहा है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले 2 सालों में दिल्ली-एन.सी.आर. में घनी धुंध और भारी वायु प्रदूषण की अवधि 4 महीने से बढ़कर 6 हो गई है। नवजात शिशुओं में जन्म के साथ सांस संबंधी परेशानियां सामने आ रही हैं। जहरीली हवा से गर्भवती महिलाओं के प्रसव में दिक्कतें बढ़ी हैं। लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने से गर्भावस्था में महिलाओं कें ऑक्सीजन लैवल घटने के कारण तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। 

कनाडा में हुए एक हालिया अध्ययन में यह खुलासा हुआ है कि हवा में पी.एम. का स्तर बढऩे से गर्भवती महिलाओं और नवजातों पर सीधा असर पड़ता है। अध्ययन में देखा गया कि जो महिलाएं गर्भकाल में ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र में रहीं उनसे जन्मे बच्चों की सांस में भारीपन, अविकसित फेफड़े और जन्मजात टी.बी. पाई गई है। इन महिलाओं को भी अन्य गर्भवतियों से ज्यादा दिक्कतें झेलने पड़ी हैं। जबकि प्रदूषण रहित हवा में समय गुजारने वाली मांओं, बच्चों की सेहत तंदुरूस्त निकली। अध्ययन से पता चला है कि प्रसव के दौरान मां के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से नवजात में जन्म के तुरंत बाद सांस संबंधी समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है। यह अध्ययन कनाडा स्वास्थ्य विभाग ‘हैल्थ कनाडा’ और पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मैडीसिन से जुड़े शोधकत्र्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल एनवायरनमैंटल हैल्थ पर्सपैक्टिव्स (ई.एच.पी.) में प्रकाशित हुए हैं। 

पूरी दुनिया में नवजातों में जन्म के फौरन बाद सांस से जुड़ी दिक्कतों और जल्दी मृत्यु का एक अहम कारण सांस से जुड़ी परेशानियां हैं। लेकिन क्या दूषित हवा इसके लिए जिम्मेदार है और वह इसे कैसे प्रभावित करती है। इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी कहीं उपलब्ध नहीं है। चिकित्सकों की मानें तो गर्भावस्था के दौरान मांओं के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से उनके बच्चों में अस्थमा जैसी सांस से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। यह समस्याएं कई दफा काफी लम्बे समय में सामने आती हैं। भारत में नवजातों पर वायु प्रदूषण के पड़ते प्रभावों को लेकर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में ओजोन प्रदूषण का संपर्क जन्म के समय नवजातों के वजन में कमी की वजह बन रहा है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इन प्रदूषक तत्वों की वजह से भ्रूण को इतना नुकसान पहुंचता है कि समय से पहले बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। 

2 साल पहले लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट में सामने आया था कि वायु प्रदूषण का गर्भपात से सीधा संबंध है। अगर सरकारें दिल्ली-एन.सी.आर. समेत देशभर में वायु गुणवत्ता स्तर को सुधार लें तो 7 प्रतिशत तक प्रैगनैंसी लॉस को रोका जा सकता है। वायु प्रदूषण पेट में पल रहे बच्चे तक पहुंचता कैसे है, इस पर विशेषज्ञों के अनुसार वायु प्रदूषण की स्थिति में जब गर्भवती महिला सांस लेती है तो प्रदूषण के कण शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जो महिला के पेट में पल रह बच्चे को नुकसान पहुंचाते हैं। वायु प्रदूषण मां और बच्चे को जोडऩे वाली गर्भनाल को क्षतिग्रस्त करके भ्रूण तक को नुकसान करता है। दरअसल, गर्भवती मां जो भी खाती है वह सीधा बच्चा भी ग्रहण करता है। डाक्टरों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं में वायु प्रदूषण के कारण प्री-मैच्योर डिलीवरी का खतरा भी रहता है। कुछ मामलों में गर्भ में पल रहा बच्चा अस्थमा से भी पीड़ित हो सकता है। यह भी संभव है कि बच्चा जीवन भर फेफड़ों की समस्या से ही पीड़ित रहे। 

डाक्टरों के अनुसार हवा में घुले पीएम2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि जन्म के समय कम वजन होने के जोखिम में 11 फीसदी का इजाफा कर सकती है। इसी तरह प्रदूषण की वजह से नवजात के समय से पहले जन्म लेने का जोखिम भी 12 फीसदी बढ़ जाता है। भारत में वायु प्रदूषण के प्रभाव से बच्चों की मृत्यु, गंभीर श्वसन संक्रमण, समय से पहले और मृत जन्म, स्टंटिंग, अनीमिया, एलर्जिक राइनाइटिस (हे फीवर) और दिमागी विकास जैसी बीमारियों के पुख्ता प्रमाण बढ़ रहे हैं। 

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि वायु प्रदूषण के चलते बच्चे की आंत के स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। जीवन के पहले 6 महीनों के दौरान सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करने वाले प्रदूषक आंत के रोगाणुओं पर विपरीत प्रभाव डालते हैं, जिससे एलर्जी, मोटापा और मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है, यहां तक कि दिमागी विकास पर भी इसका असर पड़ सकता है। इसकी वजह से भूख, इम्युनिटी और मनोदशा प्रभावित होती है। साथ ही बच्चे हृदय रोग, अस्थमा, टाइप 2 मधुमेह और अन्य पुरानी बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। वायु प्रदूषण के प्रभाव के चलते भारत के साथ पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रत्येक वर्ष 3.49 लाख गर्भपात हो रहे हैं।  

डाक्टरों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं में वायु प्रदूषण के कारण प्री-मेच्योर डिलीवरी का खतरा भी रहता है। वायु प्रदूषण की स्थिति में जब गर्भवती महिला सांस लेती है तो प्रदूषण के कण शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जो महिला के पेट में पल रह बच्चे को नुकसान पहुंचाते हैं। अब बात वायु प्रदूषण से भावी पीढ़ी पर बढ़ते संकट से निपटने पर हो तो इसके लिए न केवल ठोस नीतियों की जरूरत है, बल्कि इन नीतियों का कड़ाई से पालन किया जाए उस पर भी ध्यान देना जरूरी है। गर्भवती महिलाओं को खुद को प्रदूषण से दूर रखना होगा। ऐसे इलाकों में रहें जहां पर कम प्रदूषण हो। अगर भारत वायु प्रदूषण को कम कर लेता है तो हर साल गर्भपात के मामलों में 7 फीसदी की कमी आ सकती है।-सीमा अग्रवाल  
 


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