‘पोहा बनाम समोसा’

Saturday, Feb 01, 2020 - 02:26 AM (IST)

इंदौर के निवासियों को झटका लगा है। उनके राज्य मध्य प्रदेश के मशहूर राजनेता जोकि इंदौर का प्रतिनिधित्व भी करते हैं, ने कहा था कि उनकी पसंदीदा ब्रेकफास्ट आइटम पोहा देसी नहीं बल्कि विदेशी व्यंजन है। उन्होंने इस पर बंगलादेश की मोहर लगाई है। कैलाश विजयवर्गीय जोकि अपने बेतुके बयानों के लिए चर्चा में रहते हैं, ने न केवल इंदौर वासियों के सम्मान को ठेस पहुंचाई है बल्कि इंदौरी मिठाई तथा नमकीन निर्माता विक्रेता व्यापारी संघ द्वारा पोहा पर ज्योग्राफिकल इंडीकेशन (जी.आई.) टैग प्राप्त करने के प्रयासों को भी ठेस लगाई है। पोहा बंगाल के रसगुल्ले तथा धारवाड़ के पेड़े जैसा मशहूर है। मगर पोहा का इतिहास पुराना है। 

बिहार में कन्हैया कुमार की 2019 की चुनावी मुहिम के दौरान बेगूसराय में दही के साथ चिड़वा खाया गया था। पोहा को बंगलादेशी व्यंजन बताकर विजयवर्गीय ने पश्चिम बंगाल के लोगों को क्रोधित किया है। यदि पोहा बंगलादेशी व्यंजन है तब समोसे के बारे में उनका क्या विचार है। समोसा सबसे पहले इथोपिया में बनाया गया। हम सभी सायं की चाय के साथ समोसा खाते हैं। क्या हमारे समोसा खाने से हम इथोपियन बन जाते हैं? या फिर हम यूं कहें कि असदुदीन ओवैसी ने एक बार प्रसन्नतापूर्वक कहा था कि हलवा भारतीय व्यंजन नहीं है। यह तो तुर्की से आया था। मतलब अगर हम हलवा खाते हैं तो फिर हम तुर्की के नागरिक हो गए। क्या भारत में खाए जाने वाले व्यंजन पूरी तरह 100 प्रतिशत भारतीय हैं? क्या बटर चिकन भारतीय है? चिकन टिक्का मसाला या बटर चिकन ब्रिटेन में भी खाया जाता है। लाल मिर्च हमारे यहां मध्य तथा दक्षिण अमरीका से वाया पुर्तगाल के रास्ते आई। 

भारतीय आलू के बारे में भी रहस्य बरकरार है। व्यंजन इतिहासकार सलमा हुसैन का कहना है कि आलू मुगल सम्राट शाहजहां के भोजन में शामिल नहीं था। भारत अपने आप में कई राष्ट्रों की संस्कृति संजोए हुए है। अगर हम पोहा या जलेबी ब्रेकफास्ट में खाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हमारे पूर्वज पूर्वी बंगाल से आए हैं या फिर बंगलादेशी हैं। हिन्दुस्तान की मिट्टी में सभी का खून शामिल है। यह किसी एक की जागीर नहीं। 

जिनकी मांएं रोतीं 
गैरों पर जुल्म ढहाने वाले, अब खुद मरने से डरते,
अपनी जान बचाने खातिर, रह-रह फरियादें करते।
अबलाओं पर जुल्म ढहाते, भयानक हंसी थे हंसते,
अपने प्राण संकट में देख, अब उनके आंसू बहते।
जिनके अपने बिछुड़ गए और जिनकी मांएं रोतीं,
अपने ही नयनों के नीर से, दिल के घावों को धोतीं।
उन मांओं की आंहें दुष्टों पर ढहाएंगी कहर जरूर,
जल्दी मिले या मिले देर से, उनको मिलेगा दंड जरूर।—कुलदीप अविनाश भंडारी
    

Advertising