‘गौरक्षकों’ के हमलों का खात्मा पी.एम. मोदी कैसे करेंगे

Monday, Jul 03, 2017 - 12:24 AM (IST)

गौरक्षकों की हिंसा यानी गौमांस के मुद्दे पर भारतीयों की हत्या क्या भारत में ही एक समस्या है? यदि ऐसा है तो इसका समाधान कैसे किया जा सकता है? नॉन-प्रॉफिट डैटा जर्नलिज्म वैबसाइट ‘इंडिया स्पैंड’ ने रिपोर्ट दी है कि 97 प्रतिशत गौरक्षा हिंसा मोदी सरकार के गठन के बाद ही शुरू हुई है।

जैसे ही महाराष्ट्र, हरियाणा और अन्य राज्यों में भाजपा नियंत्रित सरकारों ने गौमांस पर प्रतिबंध का सिलसिला शुरू किया, तभी हत्याएं शुरू हो गईं। तथ्य काफी हद तक स्वत: स्पष्ट हैं। उदाहरण के लिए हम गत कुछ सप्ताहों पर दृष्टिपात करेंगे और देखेंगे कि देश भर में क्या हुआ। 

झारखंड, 29 जून: पशु व्यापारी अलीमुद्दीन अंसारी पर रांची के समीप रामगढ़ में एक भीड़ ने हल्ला बोल दिया। यह घटना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा यह बयान देने के कुछ ही घंटों के बाद हुई कि वह हिंसा के विरुद्ध हैं। झारखंड, 27 जून : उस्मान अंसारी नामक एक डेयरी किसान को लगभग 100 लोगों की भीड़ ने पीटा और बाद में उसके घर का एक हिस्सा जला दिया। रिपोर्टों के अनुसार ऐसा तब हुआ जब उसके घर के बाहर एक मृत गाय देखी गई। पुलिस अधिकारियों ने पत्रकारों को बताया कि भीड़ ने उन पर भी हल्ला बोला और पत्थर फैंके जिससे 50 पुलिस कर्मी घायल हो गए।

पश्चिम बंगाल, 24 जून: नसीरुल हक, मोहम्मद समीरुद्दीन और मोहम्मद नासीर नामक 3 कंस्ट्रक्शन मजदूरों को पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले में गाएं चुराने के आरोप में भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला। इस मामले में अभी तक 3 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और उन पर हत्या का मामला दर्ज किया गया है। हरियाणा, 22 जून: 15 वर्षीय जुनैद खान को रेल यात्रा के दौरान मार दिया गया। उसे ‘गौ भक्षक’ करार दिया गया था और उस पर जानलेवा प्रहार करने से पूर्व उसकी खोपड़ी उड़ा दी गई थी। उसका भाई भी गंभीर रूप में घायल हुआ था। जो लोग इस हमले में जिंदा बच गए हैं, मीडिया रिपोर्टों में उनकी आप बीती की कहानियां छपी हैं जिनमें बताया गया है कि हमलावरों की संख्या कम से कम 20 थी। राज्य पुलिस अभी तक इनमें से एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकी है।

महाराष्ट्र, 26 मई: गौमांस रखने के संदेह में दो मुस्लिम मीट व्यापारियों पर मालेगांव में एक गौरक्षक दस्ते ने हमला किया। इस घटना की वीडियो फुटेज में वे लोग इन दोनों व्यक्तियों को थप्पड़ मारते और गालियां देते दिखाई देते हैं। उन्होंने उन्हें ‘जय श्री राम’ बोलने को भी कहा। इस संबंध में 9 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए हैं जबकि दोनों मीट व्यापारी भी ‘धार्मिक भावनाओं को आहत करने’ के दोष में आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे हैं। असम, 30 अप्रैल: इस राज्य के नगांव जिले में गौ चुराने के संदेह में अबु हनीफा और रियाजुद्दीन अली को एक भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला। पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया है लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की। 

राजस्थान, 1 अप्रैल: डेयरी का धंधा करने वाले 55 वर्षीय किसान पहलु खान और 4 अन्य मुस्लिम व्यक्तियों पर अलवर जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक भीड़ ने हल्ला बोल दिया। चोटों की ताव न सहते हुए 2 दिन बाद खान की मौत हो गई। भीड़ ने इन व्यक्तियों पर झूठा आरोप लगाया था कि वे गायों की तस्करी करते हैं। इस हत्या के बाद राजस्थान के गृह मंत्री ने जो बयान दिया वह इस हत्या को जायज ठहराने जैसे लगता था। मंत्री ने कहा कि खान गौ तस्करों की परिवार से संबंध रखता था। इस मामले में 3 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। 

जब 27 जून को झारखंड में भीड़ ने उस्मान अंसारी की पिटाई की तो देश भर में भारतीय यह कहते हुए एकजुट हुए कि ये हत्याएं सरकारी संरक्षण में हो रही हैं और इन्हें रोका जाना चाहिए। 2-3 दिन बाद ट्वीट किया गया : ‘‘भारत में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं। आएं हम ऐसे भारत का निर्माण करें जिससे गांधी जी का नाम रोशन हो।’’ इस ट्वीट के साथ एक वीडियो भी संलग्न था जो 2 मिनट 15 सैंकेड लंबा था। इसमें वह भाषण था जो मोदी जी ने गुजरात में गौवध के मुद्दे पर बोलते हुए दिया था। इसमें एक मिनट और 45 सैकेंड तक तो मोदी गौरक्षा के समर्थन में बोलते हैं जबकि आखिरी 30 सैकेंड दौरान ङ्क्षहसा के विषय में। लेकिन केवल इतना ही कहते हैं कि हिंसा अस्वीकार्य है। यह बात तो स्वत: स्पष्ट है और प्रधानमंत्री को हमें यह बताने की जरूरत नहीं। हम चाहते हैं कि वह हमें यह बताएं कि हत्याएं क्यों हो रही हैं और वह इन्हें रोकने के लिए क्या करेंगे। 

इस समस्या को उनकी उन वरीयताओं के आधार पर समझा जा सकता है जिनकी चर्चा 2 मिनट 16 सैकेंड लंबे वीडियो में की गई है। जब तक मोदी और भाजपा गौरक्षकों की पीठ थपथपाएंगे तब तक भारत में गौरक्षक पैदा होते रहेंगे। यह इतनी जटिल बात नहीं जो समझ में नहीं आए। लेकिन एक अन्य समस्या यह है कि मोदी और भाजपा यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि उनकी कार्रवाइयां साम्प्रदायिक झुकाव रखती हैं। मीट और चमड़े का काम मुख्य तौर पर मुस्लिम और दलितों द्वारा किया जाता है। यही दोनों समुदाय गौरक्षकों के निशाने पर हैं और इस तथ्य से इन्कार करना सरासर पाखंडबाजी है। 

केन्द्रीय मंत्री वैकेंया नायडू ने झारखंड की ताजातरीन हत्याओं के बाद कहा कि इन्हें मजहब से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। समस्या यह है कि आंकड़ों के अनुसार नायडू गलत हैं। मजहब से तो यह खुद-ब-खुद जुड़ जाएगा जब मुस्लिमों को ही गौरक्षकों द्वारा हमले का मुख्य तौर पर या एकमात्र लक्ष्य बनाया जाएगा और उनकी हत्या की जाएगी। इस मुद्दे पर कांग्रेस के पास वास्तव में कोई पोजीशन ही नहीं थी और गुजरात में यह गौरक्षा के पक्ष में बोलती रही। हालांकि पार्टी के कुछ लोगों ने व्यक्तिगत स्तर पर सरकार के विरोध में बातें कीं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री चिदम्बरम ने मोदी के भाषण के बाद कहा कि ‘‘जिस दिन मोदी ने गौरक्षकों को चेतावनी दी, उसी दिन झारखंड में भीड़ ने मोहम्मद अलीमुद्दीन को पीट-पीट कर मार दिया। स्पष्ट है कि ऐसी भीड़ें प्रधानमंत्री से नहीं डरतीं।’’ 

चिदम्बरम ने आगे कहा कि ‘‘प्रधानमंत्री ने गौरक्षकों और हमलावर भीड़ों को चेतावनी दी। यह एक अच्छी बात है लेकिन वह देश को भी बताएं कि वह अपना यह आदेश कार्यान्वित कैसे करेंगे।’’ ‘इंडिया स्पैंड’ का कहना है कि 2016 में इस तरह के 25 हमले हुए थे जबकि 2017 में मात्र 6 माह में अब तक 21 हमले हो चुके हैं। यह स्पष्ट प्रमाण है कि यह समस्या गंभीर होती जा रही है। पूरी दुनिया यह देखना चाहती है कि मोदी इस घटनाक्रम का अंत कैसे करेंगे।     

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