रैली के बिना पी.एम. की वापसी पंजाब के लिए दुखद

Saturday, Jan 08, 2022 - 06:19 AM (IST)

तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पंजाब के दौरे संबंधी चर्चाएं थीं। इस दौरे को लेकर विभिन्न वर्गों के लोगों, राजनीतिक दलों तथा पंजाब सरकार के गलियारे में कई तरह के चर्चे हो रहे थे। इलैक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया में अलग-अलग कहानियां देखने तथा सुनने को मिल रही थीं। भाजपा पिछले करीब डेढ़ वर्षों से तीनों कृषि कानूनों को लेकर न केवल पंजाब की किसानी, बल्कि जनता के आक्रोश का शिकार थी। विधायक, सांसद तथा केंद्रीय मंत्रियों की बुरी तरह दुर्दशा हो रही थी। 

बेशक दिल्ली की सीमाओं पर 378 दिनों के अत्यंत पीड़ाजनक और चुनौती भरे किसान आंदोलन के बाद जब प्रधानमंत्री ने बिना शर्त देश से माफी सहित तीनों कृषि कानूनों को वापस लिया तो अचानक विभिन्न पाॢटयों के नेता, विधायक, पूर्व भाजपा नेताओं द्वारा उज्ज्वल राजनीतिक भविष्य देखे जाने लगे। प्रधानमंत्री का पंजाब दौरा 5 जनवरी को नए साल में तय हुआ था। उन्होंने सरहदी जिले फिरोजपुर की यात्रा करनी थी। भाजपा में ‘आया राम’ की गिनती में बढ़ौतरी हो रही थी। 

यह भी चर्चे थे कि कई पार्टियों के नेता रैली के समय भी भाजपा में शामिल हो सकते थे। उनकी ओर से पंजाब के लिए कोई आर्थिक, औद्योगिक तथा कृषि संबंधी पैकेजों की घोषणा के बाद बड़े स्तर पर ‘आया राम’ की गिनती बढ़ेगी। वैसे भी मध्यप्रदेश, गोवा तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों में दलबदलुओं द्वारा सरकारें गठित होने के कारण यह एक बड़ा अनुभव रहा है। 

प्रधानमंत्री ने इस दिन 45450 करोड़ के अलग-अलग प्रोजैक्टों का उद्घाटन करने के अलावा फिरोजपुर में भाजपा पंजाब लोक कांग्रेस और संयुक्त अकाली दल संबंधित कार्यकत्र्ताओं की राजनीतिक रैली को संबोधित करके फरवरी-मार्च 2022 को होने जा रहे विधानसभा चुनावों संबंधी चुनावी मुहिम का आगाज करना था। राज्य में ओमिक्रॉन महामारी बढऩे तथा लगातार बारिश के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी रैली को संबोधित और अलग-अलग परियोजनाओं के उद्घाटन के लिए दृढ़ संकल्पित थे। 

करीब 10 बजे जब वह दिल्ली से हवाई जहाज के द्वारा बठिंडा पहुंचे तो बारिश के कारण उन्होंने हैलीकॉप्टर के स्थान पर सड़क मार्ग द्वारा हुसैनीवाला में शहीद-ए-आजम स. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव शहीदी स्मारक पर नतमस्तक होने के उपरांत रैली को संबोधित करने का तत्काल निर्णय लिया। लेकिन कुछ स्थानों पर किसान मजदूर संगठनों की ओर से उनका विरोध करना, एक ओवरब्रिज पर उनके काफिले को 15 से 20 मिनट तक रोकने के लिए मजबूर करना तथा उनकी सुरक्षा में सेंधमारी किए जाने के कारण मोदी ने वापस जाने का निर्णय लिया। 

ए.एन.आई. न्यूज एजैंसी के माध्यम से मोदी इस अमन-कानून व्यवस्था में बड़ी असफलता तथा चूक महसूस करते हुए बठिंडा हवाई अड्डे से पंजाब के नौकरशाहों को यह कहने के लिए मजबूर दिखाई दिए कि, ‘‘अपने सी.एम. का धन्यवाद करिए कि मैं बठिंडा एयरपोर्ट तक जिंदा वापस आया हूं।’’ शायद उनके मन में मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के शब्द बोलते हों। 

भारत की स्वतंत्रता के बाद के इतिहास में शायद यह पहली मर्तबा ऐसी मायूस करने वाली, अपमानजनक तथा अवज्ञाकारी घटना होगी जब देश के अति सम्मानजनक राजनीतिक नेता प्रधानमंत्री को किसी रैली या शहीदी स्मारक पर जाने से रोका गया हो। पंजाब, पंजाबियत की यह ऐतिहासिक विरासत रही है कि अपने अतिथि का देवताओं की तरह सम्मान किया जाता है। पंजाब में सत्ताधारी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष तथा चुनावी मुहिम कमेटी के चेयरमैन सुनील जाखड़ ने ट्वीट किया, ‘‘आज जो कुछ भी हुआ है वह स्वीकार्य नहीं है। यह सब पंजाबियत के विरुद्ध है। प्रधानमंत्री के लिए यकीनी सुरक्षित रास्ता बनाया जाना चाहिए था।’’ 

दिल्ली की सीमाओं पर रहती मांगों के लिए अपना आंदोलन स्थगित करके लौटे किसान पंजाब में लगातार राज्य सरकार से संबंधित मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से कुछेक जत्थेबंदियों को छोड़ कर सबने प्रधानमंत्री की पंजाब रैली का विरोध तथा प्रदर्शन करने की घोषणा की थी। लेकिन वह प्रधानमंत्री का विरोध करने की मर्यादा भूल गए। 

उन्हें सड़कों के दोनों ओर काले झंडे तथा बैनर पकड़ कर अनुशासित ढंग से खड़े होकर विरोध-प्रदर्शन कर अपना विरोध जताना चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए था कि जहां एक ओर उन्हें अपने हितों के लिए शांतमयी ढंग से विरोध-प्रदर्शन करने का अधिकार है वहीं प्रधानमंत्री तथा अन्य राजनीतिक नेताओं को सार्वजनिक रैलियों को करने का संवैधानिक अधिकार भी है। एक सशक्त लोकतंत्र में हिंसा, प्रतिबंध, सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक्सान करने का या फिर आवाजाही को रोकने का कोई अधिकार नहीं। 

पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को अति अपमानित ढंग से मुख्यमंत्री पद से हटाकर कांग्रेस पार्टी की ओर से उन्हें एक ओर करने की जगह उनके स्थान पर दूरअंदेशी रहित चरणजीत सिंह चन्नी जैसे नेता को अति संवेदनशील, सरहदी तथा समस्याओं से जूझते पंजाब राज्य का मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस हाईकमान की बचकानी सोच उजागर करती है।-दरबारा सिंह काहलों 
 

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