‘पैट्रोल-डीजल की मूल्य वृद्धि से बढ़ेगी महंगाई’

Thursday, Mar 04, 2021 - 03:41 AM (IST)

वैश्विक महामारी कोरोना ने विश्व भर की अर्थव्यवस्थाआें को प्रभावित किया है। लॉकडाऊन खुलने के बाद से देश में महंगाई दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। खाने-पीने की चीजों से लेकर जिस तरह पैट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतों में बढ़ौतरी हो रही है, वह चिंता की बड़ी वजह है। 

पैट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों के लिए सऊदी अरब द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन में कमी किया जाना बड़ी वजह बताया जा रहा है, लेकिन कहीं न कहीं केंद्र और राज्य सरकारों का मुनाफाखोर आचरण भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। पैट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों के साथ पिछले दो महीनों में ही एल.पी.जी. की कीमतें भी बढ़ी हैं। 

विशेषज्ञों के अनुसार पैट्रोल, डीजल के दाम बढऩे का सीधा असर महंगाई पर पड़ता है और इससे मांग घटती है। खासतौर पर गरीब और हाशिए पर मौजूद तबके के लिए ज्यादा मुश्किलें बढ़ती हैं। 15 जून 2017 से देश में पैट्रोल, डीजल की कीमतें रोजाना आधार पर बदलना शुरू हो गई हैं। इससे पहले इनमें हर तिमाही बदलाव होता था। पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी के चलते क्रूड की कीमतें नीचे आई हैं, लेकिन भारत में ईंधन के दाम कम नहीं हुए हैं। 

सरकार एक तरफ तो उद्योगों, किसानों और नौकरीपेशा के हित के लिए राहत के पैकेज घोषित किया करती है लेकिन जिन पैट्रोल और डीजल की कीमतें समूची अर्थव्यवस्था को प्राथमिक स्तर से ही प्रभावित करती हैं उनके बारे में वह बेहद असंवेदनशीलता का प्रदर्शन कर रही है। वास्तव में सरकार के लिए शराब और पैट्रोल, डीजल कमाई का सबसे बढिय़ा जरिया हैं। ये जी.एस.टी. के दायरे में नहीं आते हैं, ऐसे में इन पर टैक्स बढ़ाने के लिए सरकार को जी.एस.टी. कौंसिल में नहीं जाना पड़ता है। 

कोरोना महामारी के दौरान क्रूड के दाम नीचे आए, एेसे में इसी हिसाब से पैट्रोल के दाम भी गिरने चाहिए थे, लेकिन सरकार ने एेसा नहीं होने दिया। अर्थ जगत के विशेषज्ञ मानते हैं कि पैट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में 10 फीसदी की बढ़ौतरी से खुदरा महंगाई दर में 20 आधार अंक यानी 0$2 प्रतिशत की बढ़ौतरी हो सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ौतरी का भार किस हद तक दूसरों पर डाला जाता है। आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो महंगाई दर अपने निचले स्तर से ऊपर निकल चुकी है। आने वाले महीनों में यह और बढ़ेगी। खुदरा महंगाई दर अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही में पांच से साढ़े पांच फीसदी तक रह सकती है। इस साल जनवरी में खुदरा वस्तुआें की महंगाई दर 4$ 06 फीसदी रही थी। 

आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक, कच्चे तेल की कीमतों में 10 फीसदी की वाॢषक बढ़ौतरी से चालू खाते के घाटे में जी.डी.पी. के 50 आधार अंक के बराबर की बढ़ौतरी हो जाती है। इससे राजकोषीय घाटे में इजाफा होगा, जो सरकार पर वित्तीय दबाव को बढ़ाता है। पैट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से उत्पादन की लागत बढ़ जाना सामान्य बात है। उत्पाद की बढ़ी हुई कीमतें सीधे तौर पर प्रतिस्पर्धा की क्षमता को प्रभावित करती हैं। देश का 70 प्रतिशत से ज्यादा ट्रांसपोर्ट उद्योग पैट्रोलियम पदार्थों पर निर्भर करता है और पैट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से इस पर असर पड़ेगा। छोटे उद्यमियों की मानें तो पैट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें आने वाले समय में उनके लिए कई मुसीबतें एक साथ लाने वाली हैं। 

कच्चे माल की कीमत पहले से 25 से 70 फीसदी तक बढ़ चुकी है। अर्थव्यवस्था में रिकवरी का दौर इन बढ़ती कीमतों से प्रभावित होगा, क्योंकि उत्पादन की तीसरी सबसे बड़ी लागत ट्रांसपोर्ट एवं अन्य लॉजिस्टिक से जुड़ी होती है। कोरोना की वजह से उत्पादन का मुनाफा पहले से ही दबाव में है। यह दबाव और बढऩे पर उत्पादक कीमत बढ़ाएंगे, जिससे महंगाई बढ़ेगी। आर्थिक विशेषज्ञों के मुताबिक आवश्यक वस्तुआें की 90 फीसदी ढुलाई सड़क मार्ग से होती है और डीजल के दाम बढऩे से इनकी कीमत भी बढ़ेगी। जनवरी में खाद्य वस्तुआें की महंगाई दर 1$89 फीसदी रही, लेकिन ढुलाई लागत बढऩे से इसमें और वृद्धि की आशंका है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, पैट्रोल-डीजल के दाम में हो रही बेतहाशा बढ़ौतरी से महंगाई दर बढ़ेगी, जिससे अन्य वस्तुआें की मांग में कमी आएगी, जो रिकवरी के इस दौर में अच्छी बात नहीं है। महंगाई बढऩे से मैन्युफैक्चरिंग में तेजी लाने के प्रयास भी प्रभावित होंगे। पैट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ौतरी का सिलसिला एेसे ही चलता रहा तो एेसा खतरनाक चक्र पैदा होगा, जिससे आर.बी.आई. को नीतिगत दरों में वृद्धि के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। 

इसके चौतरफा नकारात्मक असर को थामना बहुत आसान नहीं होगा। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना काल में केंद्र और राज्य दोनों की आर्थिक स्थिति खराब हो जाने से राजस्व में जबरदस्त कमी रिकार्ड की गई। उद्योग-व्यापार बंद हो गए और लोगों का आवागमन भी थम सा गया। निश्चित रूप से उन हालातों में देश और प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गतिमान बनाए रखना बहुत बड़ी समस्या थी किन्तु किसी तरह से गाड़ी खींची जाती रही। 

भले ही सरकार यह दावा करती हो कि पैट्रोल-डीजल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती हैं लेकिन भारत में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पैट्रोलियम पदार्थों पर जितना कर लगाया जाता हैै वह विकसित देशों को तो छोड़ दें, भारत से आकार में और आर्थिक दृष्टि से कमजोर छोटे-छोटे देशों तक की तुलना में बहुत ज्यादा है जिसके आंकड़े किसी से छिपे नहीं हैं। ईंधन की कीमतें हर राज्य में अलग-अलग हैं। ये राज्य की वैट दर या स्थानीय करों पर निर्भर करती हैं। इसके अलावा इसमें केंद्र सरकार के टैक्स भी शामिल होते हैं। दूसरी आेर क्रूड आयल की कीमतों और फोरैक्स रेट्स का असर भी इन पर होता है। सरकारी करों की विसंगति का प्रमाण ही है कि विभिन्न राज्यों में पैट्रोल-डीजल के दाम अलग-अलग हैं। उदाहरण के तौर पर उ.प्र. और म.प्र. में पैट्रोल-डीजल की कीमतों में तकरीबन 8 रुपए प्रति लीटर का अंतर है। 

पैट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों के लिए आम तौर पर केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताया जाता है। वहीं जमीनी सच्चाई यह भी है कि राज्य सरकारें भी इस बारे में कम कसूरवार नहीं हैं। इसी वजह से पैट्रोलियम पदार्थों को जी.एस.टी. के अंतर्गत लाने के लिए कोई राज्य सरकार तैयार नहीं है।

अब जबकि पैट्रोल-डीजल के दाम सौ रुपए का आंकड़ा छूने की स्थिति में आ गए हैं और केंद्र सरकार ने अपना पल्ला झाड़कर मामला पैट्रोलियम कंपनियों पर छोड़ दिया है तब इस बात का भी विश्लेषण होना चाहिए कि लम्बे लॉकडाऊन के बाद भी इन कम्पनियों ने आखिर जबरदस्त मुनाफा कैसे कमाया? और यदि कमा भी लिया तब अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के साथ ही उन्हें दाम घटाकर जनता को राहत देने की उदारता दिखानी चाहिए। निश्चित तौर पर सरकार के पास पैट्रोलियम उत्पादों के दाम घटाने के विकल्प हैं। इनमें कीमतों को डी-रैगुलेट करने और इन पर टैक्स घटाने के विकल्प शामिल हैं।-राजेश माहेश्वरी
 

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