गम्भीर तपेदिक वाले लोगों को दवाओं के दुष्प्रभाव बारे नहीं होती जानकारी

Thursday, Apr 19, 2018 - 03:02 AM (IST)

एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि तपेदिक की दवाओं तथा उनके दुष्प्रभाव बारे अधिक जागरूकता रोगियों को अपनी स्थिति से लडऩे तथा उनको अपना उपचार बीच में ही छोडऩे की दर से बचने में मदद कर सकती है। 

सेवरी टी.बी. अस्पताल के डाक्टरों ने इंडियन कौंसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च के सहयोग से एक अध्ययन आयोजित किया। इस बीमारी की मल्टी ड्रग रजिस्टैंट किस्म से पीड़ित 62 रोगियों का साक्षात्कार किया गया और उनमें से लगभग आधों को अपनी दवाओं के दुष्प्रभावों तथा उनसे निपटने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी।एम.डी.आर. टी.बी. से लडऩे के लिए दवाएं उल्टियों, चकत्तों, जोड़ों का दर्द, मूड में बदलाव, कान बजना, नजर की समस्या तथा फ्लू जैसे लक्षणों का कारण बन सकती हैं, जो रोगियों के लिए सामान्य तौर पर काम करना अत्यंत कठिन बना देती हैं। आम तौर पर रोगी इस आशा में दवा लेना छोड़ देते हैं कि उन्हें बेहतर महसूस हो मगर इससे मामला और भी पेचीदा हो जाता है। उपचार बीच में ही छोड़ देने से बीमारी की और अधिक सख्त किस्म विकसित होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे भी उदाहरण हैं जहां रोगियों को ये नहीं पता होता कि ऐसी दवाएं भी हैं, जो उन्हें दवाओं के दुष्प्रभाव से बचाव में मदद कर सकती हैं। 

अध्ययन, जिसे इस तरह का पहला माना जा रहा है, में सुझाव दिया गया है कि तपेदिक की दवाओं से संबंधित हर तरह की समस्याओं से निपटने के लिए अपने चिकित्सक के साथ नियमित रूप से बार-बार सलाह-मशविरा करना चाहिए। एम.डी.आर. टी.बी. बैकिलस माइकोबैक्टेरियन ट्यूबरक्लोसिस किस्म के कारण होता है जो पहली पंक्ति की दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होता है जैसा कि रिफाम्पीसिन तथा आइसोनियाजिड। नियमित 6 माह के उपचार की बजाय इस किस्म के तपेदिक वाले रोगियों को दूसरी पंक्ति की दवाएं 20 महीनों से भी अधिक समय तक लेनी चाहिएं। 

साक्षात्कार किए गए 62 रोगियों में से 90 प्रतिशत को बीमारी के बारे में अच्छा सामान्य ज्ञान था। यद्यपि मात्र 52.3 प्रतिशत दवाओं के प्रतिकूल प्रभाव अथवा इस तथ्य के बारे में जानते थे कि वे इसका प्रबंधन कर सकते या बच सकते हैं। 43 प्रतिशत रोगियों का मानना था कि प्रतिक्रिया तपेदिक से लडऩे के लिए बनी दवाओं के कारण नहीं होती। जो रोगी कुपोषित होते हैं, जिनका शराब पीने का इतिहास रहा है, जिनकी किडनी कभी कमजोर थी या अब है, उनको विपरीत प्रतिक्रियाओं की अधिक आशंका होती है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देश यह सुझाव देते हैं कि बीमारी के प्रभावों के प्रबंधन तथा उनकी पहचान के लिए इस पर नियमित नजर रखनी चाहिए तथा सब कुछ दस्तावेजों में दर्ज किया जाना चाहिए। यह अध्ययन डा. जया बाजपेयी, डा. राजेन्द्र नानावारे, डा. जगदीश केनी, डा. दीपा अरोड़ा, डा. दक्ष शाह तथा डा. नीलिमा ए. क्षीरसागर द्वारा आयोजित किया गया।-लता मिश्रा

Pardeep

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