लिंगानुपात घटने के कारण हरियाणा के लोग ‘मोलकी’ बहू लाने को मजबूर

Friday, Nov 03, 2017 - 02:05 AM (IST)

कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम हरियाणा राज्य के लोग अब अपने बेटों की शादी करने के लिए ‘मोलकी’ परिपाटी अपनाने को मजबूर हो गए हैं। इस परिपाटी के अंतर्गत विवाह योग्य लड़के के माता-पिता किसी अन्य राज्य से किसी गरीब परिवार की लड़की खरीद लाते हैं और उसे अपनी बहू बना लेते हैं। ऐसी बहू को ‘मोलकी’ कहा जाता है। 

राज्य सरकार लगातार यह दावा करती है कि प्रदेश में लिंगानुपात सुधर रहा है लेकिन 2011 की जनगणना के अनुसार हरियाणा में प्रत्येक 1000 पुरुषों के अनुपात में केवल 879 महिलाएं थीं जोकि 940 की राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। कैथल, जींद, कुरुक्षेत्र, हिसार तथा यमुनानगर के जिलों के कुछ गांवों का दौरा करने पर पता चला कि युवकों ने अपना वंश आगे बढ़ाने के लिए ‘मोलकी’ की खरीद करनी शुरू कर दी है क्योंकि हरियाणा में लड़कियों की भारी कमी है।

‘मोलकी’ महिलाओं तथा बहुओं की तस्करी के विषय पर पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में शोध कर रहे आदित्य परिहार का कहना है : ‘‘अधिकतर ‘मोलकी’ महिलाएं खुद को स्थिति के अनुसार ढाल लेती हैं क्योंकि वे असहाय होती हैं लेकिन कुछ एक के पास विकल्प होते हैं। अपनी पूर्वाग्रह ग्रस्त कार्यशैली के कारण संवेदनाहीन पुलिस और सरकारी अधिकारी ऐसी महिलाओं की अनदेखी करते हैं और उनके परिजन भी उन्हें अपनी झूठी शानो-शौकत और सामाजिक मर्यादा के बहाने परिवार में दोबारा स्वीकार नहीं करते। तस्करी करके लाई गई इन महिलाओं में से कुछ एक बागी हो जाती हैं और भाग जाती हैं।’’ 

हरियाणा के ग्रामीण ऐसी स्थिति के लिए घटती जमीनी मालिकी को दोष देते हैं। कम जमीन के मालिक किसान के बेटे को आसानी से रिश्ता नहीं मिलता। इसलिए ऐसे परिवारों के सामने अपना वंश कायम रखने के लिए ‘मोलकी’ लाने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है। जब भी कम जमीन के मालिक परिवार द्वारा अपने बेटे के रिश्ते के लिए अपनी बिरादरी में कहीं बात चलाई जाती है तो लड़की वाले सबसे पहला सवाल यही पूछते हैं कि जमीन-जायदाद कितनी है? जींद जिले के सफीदों नगर के समीपवर्ती गांव गंगोली के जाट सतपाल ने इस शोधकत्र्ता को बताया कि उसके पास 5 एकड़ जमीन बची है जबकि उसके 3 बच्चे हैं। यह जमीन उनमें बंट जाएगी तो और भी कम हो जाएगी। यही कारण है कि अपनी बिरादरी के अंदर उनके बेटे के लिए रिश्ता नहीं मिल रहा है। ऐसे में बेहतर यही है कि ‘मोलकी’ से ही बेटे का घर बसाया जाए। उससे वंश तो आगे चलेगा ही, साथ ही ‘मोलकी’ महिलाएं घरेलू काम में काफी योगदान करती हैं। 

‘एम्पावर वूमैन’ नामक एन.जी.ओ. के माध्यम से वधुओं की तस्करी रोकने का अभियान चला रहे शफीक के अनुसार ‘मोलकी’ के रूप में हरियाणा में लाई जाने वाली अधिकतर महिलाएं असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार तथा आंध्र प्रदेश से संबंधित हैं। उन्होंने बताया कि तस्करी करके लाई गई अधिकतर महिलाएं करनाल, मेवात, रेवाड़ी, कुरुक्षेत्र, जींद, यमुनानगर और हिसार जिलों में बेची जाती हैं। शफीक ने एक सनसनीखेज खुलासा करते हुए बताया: ‘‘हरियाणा में बहुपति रुझान भी बढ़ता जा रहा है यानी भाइयों द्वारा संयुक्त रूप में एक ही पत्नी अपना ली जाती है। यह रुझान एक ऐसे वातावरण का सृजन कर रहा है जो महिलाओं के लिए बिल्कुल असुरक्षित है। 

महिलाओं के विरुद्ध ऐसी स्थितियों में हिंसा भी प्रयुक्त की जाती है। मानव तस्करी की प्रक्रिया में महिलाओं को दलालों द्वारा अपने जाल में फंसाया जाता है और फिर उन्हें हरियाणा के ऐसे गांवों और कस्बों में बेचा जाता है जहां विवाह योग्य पुरुषों की तुलना में विवाहयोग्य महिलाओं की संख्या बहुत कम होती है। बाहरी प्रदेशों से लाई गई लड़कियों और महिलाओं की कीमतउनकी आयु, सुन्दरता और कुंवारेपन के आधार पर तय की जाती है।

इन महिलाओं कोशादी करके या शादी की औपचारिकता के बिना अपनी इच्छा के विरुद्ध किसी परिवार में रहने के लिए मजबूर किया जाता है।’’ 80 वर्ष की आयु को पहुंची संतोषी ने बताया कि ‘‘‘मोलकी’ इसलिए लाई जाती है ताकि वह खाना बनाने, सफाई करने, उपले बनाने, दूध दोहने इत्यादि सहित घर के सभी छोटे-मोटे काम कर सके और साथ ही वंश को आगे बढ़ा सके। यदि हम अपनी बिरादरी की लड़की को बहू बना कर लाते हैं तो वह घर का कामकाज करने में दिलचस्पी नहीं लेती। यही कारण है कि हम लोग ‘मोलकी’ बहू को प्राथमिकता देते हैं। यदि एक ‘मोलकी’ हमारी जरूरतों के अनुसार योग्य सिद्ध न हो तो हम उसकी बजाय कोई नई ले आते हैं और यह सिलसिला तब तक चलता रहता है जब तक हमें संतोषजनक ‘मोलकी’ नहीं मिल जाती।’’

जींद जिले के ललित खेड़ा गांव के रहने वाले दीपू भारद्वाज ने बताया कि वह अपने लिए ‘पत्नी’ सोनीपत से लाया था। वह खुद को भाग्यशाली मानता है कि उसे कई लड़कियों में से अपने लिए पत्नी चुनने का मौका मिला था। उसने कहा, ‘‘मेरी पत्नी यहां बिहार से अपने ब्वायफ्रैंड के साथ आई थी और उसने उसे 15,000 रुपए में मेरे पास बेच दिया। मेरी पत्नी बहुत खुश है। वह कभी भी बिहार में अपने मायके नहीं जाना चाहती क्योंकि वह जानती है कि उसके परिजनों की प्रतिक्रिया क्या होगी?’’-एस. शेखर            

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