मानसिक तनाव से हारते लोग

Friday, Apr 09, 2021 - 04:13 AM (IST)

अक्सर यह सुनने और देखने को मिलता है कि हमारा युवा वर्ग डिप्रैशन में रहता है, हर वक्त तनाव में जीता और निराशा का दामन थाम लेता है। यह हकीकत अभी मुट्ठी भर अर्थात थोड़े से युवाओं तक ही सीमित है लेकिन इसे दरकिनार नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी भी बड़ी बीमारी की शुरूआत छोटी-सी लापरवाही से ही होती है और अगर सही उपचार न कराया जाए तो परिणाम खतरनाक भी हो सकते हैं। आधुनिक युग में जहां मनुष्य ने इतनी उपलब्धियां हासिल की हैं, वहीं पर मानसिक तनाव जैसे रोग को भी जन्म दिया है।  यह एक ऐसी अवस्था है जब व्यक्ति का मन और दिमाग चिंता, तनाव, उदासी से घिरा रहता है। इस स्थिति में मनुष्य की सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है और वह धीरे-धीरे अंदर से टूटने लगता है। 

इस मानसिक तनाव के कारण लोग सामूहिक आत्महत्याएं भी करने से गुरेज नहीं करते। हाल ही में राजस्थान के सीकर तथा आगरा के गोकुलपुरा स्थित बालका बस्ती का मामला सामने आया है, जिनमें बेटे के गम तथा आॢथक नुक्सान के कारण परिवार ने आत्महत्या करने का निर्णय लिया। जिन समस्याओं से  छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है, शास्त्रों के अनुसार उस समस्या का हल जिंदा रहते तो मिल सकता है लेकिन आत्महत्या करके अंतहीन कष्टों वाले जीवन की शुरूआत हो जाती है। उन्हें बार-बार ईश्वर के बनाए नियम को तोडऩे का दंड भोगना पड़ता है। 

जब कोई व्यक्ति किसी स्थिति में खुद को बेबस महसूस करता है तो इसे चिंता या तनाव की स्थिति कहते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति खुद को नाउम्मीद महसूस करने लगता है। उसे अपना सारा जीवन बेकार लगने लगता है वह धरती पर क्यों आया, उसका भविष्य क्या होगा जैसे सवाल घेरने लगते हैं। कोरोना महामारी के कारण लोगों में मानसिक तनाव भी काफी बढ़ गया है क्योंकि लॉकडाऊन होने के कारण कई लोगों के काम-धंधे बंद हो गए, रोजगार चले गए, आॢथक हालत खस्ता हो गई, गरीबी के कारण लोगों के घरों में झगड़े बढ़ गए तथा छात्रों की पढ़ाई पर भी इसका बुरा असर पड़ा। इस कारण व्यक्ति अकेलापन महसूस करने लग गया तथा समाज से कटा हुआ रहने लगा। यही अकेलापन उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाने लगा। 

जब व्यक्ति अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाता तो वह तनाव में आ जाता है तथा उसके सोचने-समझने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है। हैरानी की बात तो यह है कि उच्च शिक्षा तथा आॢथक रूप से आत्मनिर्भर परिवारों में भी जिंदगी से मुंह मोडऩे के मामले सामने आ रहे हैं। वर्तमान समय में जीवन से जूझने की शक्ति भी कम हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण सहनशीलता की कमी है। 

अब सवाल यह है कि आखिर ऐसा क्या होता है जो उनकी सोच में परिवर्तन आ जाता है। इस विषय में मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रकार के लोगों के साथ हमें भावनात्मक रूप से जुडऩा चाहिए तथा उनके मन की बात जानने की कोशिश करनी चाहिए। यह सब केवल सच्चा और अच्छा मित्र ही कर सकता है क्योंकि यह माना जाता है कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं तथा गम बांटने से कम होते हैं। यह भी जरूरी नहीं कि मानसिक तनाव केवल भावनात्मक कारणों से हो, कई बार अन्य कारण भी हो सकते हैं जैसे कुपोषण, मौसम, तनाव या बीमारी। आमतौर पर देखा गया है कि लंबे समय तक चलने वाली बीमारी भी व्यक्ति को मानसिक तनाव दे देती है। 

इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए योग का सहारा भी लिया जा सकता है। जरूरत है एक कुशल सलाहकार की, एक कुशल मार्गदर्शक की क्योंकि इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं है। इस प्रकार के व्यक्तियों को कुछ न कुछ ऐसा करते रहना चाहिए जिससे वे  व्यस्त होकर दु:ख से बाहर आने की कोशिश करते रहें। इसके साथ ही ऐसे व्यक्ति को अपने ऊपर पूरा भरोसा होना चाहिए कि वह जो कर रहा है वह बिल्कुल सही है। 

इस बात का हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को समय पर सोना और समय पर उठना जरूरी है। संतुलित व पौष्टिक आहार लें, रोजाना व्यायाम करें, शराब और धूम्रपान से बचें। जीवन में सहनशीलता को अपनाएं। दृढ़ संकल्प, आत्मविश्वास, संयम, बुद्धि और विवेक आदि गुणों को अपनाकर मानसिक तनाव से छुटकारा पाया जा सकता है। और अंत में, मुझे लगता है कि बड़ों का सिर पर हाथ रखना ही इस बीमारी के लिए काफी है।-प्रि. डा. मोहन लाल शर्मा
 

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