जनता नेताओं और सरकारों से लगातार कुछ नया चाहती है

punjabkesari.in Friday, Jun 02, 2023 - 06:22 AM (IST)

जितनी चीजें बदलती हैं उतनी ही वे वैसी ही बनी रहती हैं। 2023 में जो एहसास हुआ है कि वह 2018 की तरह है। 5 साल पहले भाजपा कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। जो कांग्रेस सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बावजूद बहुमत के  निशान तक पहुंचने में विफल रही थी। इसके अलावा कांग्रेस ने जद (एस) के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार को सत्ता में लाकर भाजपा को पछाड़ दिया। तब तक यह भाजपा थी जो कांग्रेस को मात देती रही थी। 

इस समय तक हवा में यह प्रश्र था कि आम आदमी को क्या मिला? दिसम्बर 2018 में भाजपा ने हिन्दी भाषी 3 राज्यों को भी खो दिया। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश, जिनमें से अंतिम दो उसके गढ़ में थे। इसका मुख्य कारण किसानों में असंतोष था। पिछले महीने कर्नाटक में भाजपा की करारी हार के बाद भी हवा में कुछ ऐसा ही उत्साह हिमाचल के साथ-साथ इन हारों को केवल स्थानीय कारकों और अभियान की गलतियों से नहीं समझाया जा सकता है। कठिन सवाल पूछना चाहिए कि क्या ब्रांड मोदी को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जा रहा है? क्या  ब्रांड मोदी को हर कोई हल्के में ले रहा है। 

उत्साह को मापना केवल स्वीकृति नहीं : सर्वेक्षण मोदी को राहुल गांधी और अन्य सभी से बहुत आगे दिखाते हैं यह पूछे जाने पर कि क्या आप मोदी सरकार से संतुष्ट हैं, परिणामी लोकप्रियता रेटिंग आराम से स्थिर दिखती है। लेकिन अगर कोई गूगल ट्रैंडस को देखे जो किसी खोज विषय में जनहित को मापते हैं, तो तस्वीर अलग ही दिखाई पड़ती है। ध्यान रहे कि यह किसी विषय में जनहित को दर्शाता है जिसमें सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के जनहित शामिल हैं। ट्रैंड चार्ट यह दिखाता है कि 2019 के शिखर के बाद से नरेंद्र मोदी में रुचि तेजी से गिरी है और वास्तव में 2014 के बाद से सबसे कम है। इसके अलावा इस ट्रैंड चार्ट पर मोदी और राहुल के बीच की दूरी 2014 के बाद से सबसे कम है। इसका कोई मतलब नहीं है कि मोदी अगला आम चुनाव हार रहे हैं। इसका मतलब यह है कि जनता शायद उनके अपने समर्थकों में से एक सहित उनसे नया करने की प्रतीक्षा कर रही है। 

हमारा ब्रांड नया है : राजनीति में नयापन एक अभिशाप है। जनता अपने नेताओं और सरकारों से लगातार कुछ नया चाहती है। जिस तरह से जनता एक फोन के नए मॉडल, उसी कपड़ों के ब्रांड के नए डिजाइन, उसी शृंखला में नई फिल्में और शो चाहती हैं। वैसे ही जनता अपने नेताओं से नई कथाएं, नई योजनाएं, नई छवियां और नया प्रसाद चाहती हैं। मोदी के स्थिर होने से नई चीजों की कमी नहीं है। नई संसद है, नई ध्रुवीकरण वाली फिल्में हैं और विपक्ष पर नए-नए हमले हैं। 

आकांक्षाएं जो अधूरी रह गईं :  कर्नाटक के आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा के वोट शेयर में सबसे तेज गिरावट आई है। यह अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य के गरीब क्षेत्रों में थीं। आकांक्षी भारत, जो 2014 में मोदी के शानदार उत्थान की रीढ़ बना वह अब दर्द कर रहा है। दिखाने के लिए पर्याप्त आर्थिक डाटा से अधिक हैं। यहां तक कि आधिकारिक सरकारी डाटा पतला होता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस पार्टी के अभियान का हिस्सा ‘5 गारंटियां’ थीं जो बेरोजगार युवाओं सहित सभी मुफ्त उपहार वाली थीं। एक ऐसे देश में जो बड़े पैमाने पर विनिर्माण रोजगार सृजित करने में विफल रहा, मुफ्त उपहार अपरिहार्य हैं। एक व्यक्ति की मुफ्त की रेवडिय़ां वाली संस्कृति दूसरे व्यक्ति की कल्याणकारी स्थिति है। 

आज भारत भर में शीर्ष शिकायत एल.पी.जी. सिलैंडर रिफिल  की कीमत है। इसकी कीमत 1150 रुपए है और कुछ लोग कहेंगे कि वृद्धि व्यापक मुद्रा स्फीति के अनुरूप है। सिवाय इसके कि यह मोदी सरकार थी जिसने गरीबों को मुफ्त एल.पी.जी. सिलैंडर दिया लेकिन अब बहुत से लोग रिफिल नहीं करवा सकते। उनकी वास्तविक आय गति नहीं रखती है। 

मोदी-2 बनाम मोदी-1 : 2018-19 में मोदी सरकार के पास आकांक्षी भारत को पेश करने के लिए ठोस चीजें थीं। 2019 के चुनाव से ठीक पहले मुफ्त सिलैंडर, मुफ्त उपहार, मुफ्त आवास, मुफ्त शौचालय और अंत में छोटे किसानों को नकद हस्तांतरण के लिए एक बड़ा प्रयास किया गया था। नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में कोई भी ठोस चीज नई नहीं है। पुरानी बातों पर संदेह करने से मतदाता प्रभावित नहीं होते। वह देखना चाहते हैं कि नया क्या है? कोविड दूर की याद है इसलिए किसी भी चुनाव में कोविड की अच्छी या बुरी हैंडलिंग का असर मतदाता के मन पर नहीं पडऩे वाला है लेकिन जो आर्थिक झटका कई लोगों के लिए कोविड का था उसके साथ उस तरह के प्रतिपूरक कल्याणकारी उपाय नहीं थे जो हमने पश्चिम में देखे थे। 

फिर भी भारत की मुद्रा स्फीति 5-6 प्रतिशत तक पहुंच गई अब वह नीचे आ रही है। इस बीच केवल कम वेतन वाली निर्माण नौकरियों में बेरोजगारी बढ़ी है। बेरोजगारी, गरीबी, असमानता, महंगाई इन सभी ने आकांक्षी भारत के लिए जीवन को कठिन बना दिया है। यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के लिए पर्याप्त नहीं है। अगर किसी को चुनाव जीतना है तो आर्थिक विकास के फलों को टपकाना होगा।-शिवम विज
 


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