लोग बढ़ती कीमतों, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बारे में बहुत चिंतित
punjabkesari.in Tuesday, Jun 03, 2025 - 05:10 AM (IST)

9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अपने तीसरे कार्यकाल की पहली वर्षगांठ पर पहुंच रही है, सत्तारूढ़ भाजपा का दावा है कि भारत ने पिछले एक साल में कुछ महत्वपूर्ण प्रगति की है। उनके समर्थकों का तर्क है कि 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत ने वैश्विक मान्यता प्राप्त की है और अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। हालांकि, यह एक कठोर वास्तविकता है कि लोग बढ़ती कीमतों, मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बारे में भी बहुत चिंतित हैं, ये ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) सरकार की उपलब्धियों को प्रदर्शित करने के लिए रैलियों और सार्वजनिक बैठकों का आयोजन कर रहा है।
शीर्ष केंद्रीय मंत्री और संसद सदस्य इन उपलब्धियों के बारे में जनता को सूचित करने के लिए मार्च में शामिल होंगे। भाजपा का अभियान 4 प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगा-पहलगाम आतंकी हमले पर सेना की प्रतिक्रिया, वक्फ संशोधन अधिनियम, बी.आर. आंबेडकर को सम्मानित करना और एक राष्ट्र एक चुनाव (ओ.एन.ओ.ई.) प्रस्ताव। विपक्ष इन विषयों पर सरकार को चुनौती देने की योजना बना रहा है।
मोदी अपने पिछले 2 कार्यकालों के विपरीत, सहयोगी दलों के साथ अधिक मैत्रीपूर्ण रहे हैं। इसके अलावा, मोदी ने न केवल एन.डी.ए. को एकजुट रखा है बल्कि विपक्षी ‘इंडिया’ गठबंधन के भीतर विभाजन पैदा करने का भी प्रयास किया है। उन्होंने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय आऊटरीच प्रयासों में 59 सदस्यों में से 10 मुस्लिम सांसदों को भी आश्चर्यजनक रूप से शामिल किया है। सवाल यह है कि क्या विपक्षी दलों ने अपनी मजबूत स्थिति के साथ संसद में लाभ उठाया है। 24 जून, 2024 को पहले सत्र से ही भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के साथ तनाव अपरिहार्य थे। कांग्रेस के लिए मुख्य चुनौती मतदाताओं की मान्यता को चुनावी सफलता में बदलना था।
मोदी सरकार के पहले 2 कार्यकालों में विपक्ष कमजोर और निष्क्रिय था। हालांकि, 18वीं लोकसभा में विपक्ष का पुनरुत्थान देखने को मिला, जिससे मोदी को विवादास्पद कानून पारित करने के लिए एन.डी.ए. सहयोगियों और तटस्थ दलों पर निर्भर रहना पड़ा। विपक्ष ने वक्फ अधिनियम जैसे विधेयकों को प्रभावी ढंग से रोक दिया है, जिससे सदन की कार्रवाई अक्सर बाधित होती रही है। एन.डी.ए. की स्थिरता को लेकर ‘इंडिया’ गठबंधन सशंकित था। कांग्रेस पार्टी ने पहले वर्ष में ही इसके पतन की भविष्यवाणी की थी। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने भी दावा किया कि ‘इंडिया’ गठबंधन ने अभी तक सरकार बनाने के अपने अधिकार का दावा नहीं किया है। पिछले एक साल में, मोदी ने कई विवादास्पद कानून पेश करने के लिए साहसिक कदम उठाए हैं। इनमें से एक राष्ट्र-एक चुनाव नीति और वक्फ (मुस्लिम धार्मिक बंदोबस्ती) विधेयक में संशोधन उल्लेखनीय हैं। हालांकि, मुख्य रूप से उनकी विदेश यात्राओं पर जोर दिया गया है।
राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, कनिमोझी, सुप्रिया सुले, गौरव गोगोई और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी नेता मुखर रहे हैं। राहुल अपने पिछले कार्यकाल की तुलना में विपक्ष के नेता के रूप में अधिक आश्वस्त दिखते हैं।एक पार्टी जो राजनीतिक परिदृश्य से काफी हद तक गायब है, वह है आम आदमी पार्टी। अरविंद केजरीवाल और आतिशी सहित इसके नेता असामान्य रूप से शांत रहे हैं। जेल से रिहा होने के बाद से, केजरीवाल को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पार्टी का विस्तार करने में आने वाली चुनौतियों के कारण न तो देखा गया है और न ही सुना गया है। एक दशक पहले जब से भाजपा सत्ता में आई है, तब से भारत की संघीय एजैंसियों ने 100 से अधिक राजनेताओं की जांच की है, जिनमें से अधिकांश विपक्षी दल के हैं। उनमें से कई बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। भ्रष्टाचार की जांच के तहत 25 विपक्षी नेताओं जिन्होंने यह बदलाव किया, में से 23 के मामले वापस ले लिए गए या रोक दिए गए, जिससे जांच की निष्पक्षता पर चिंताएं बढ़ गईं।
‘इंडिया’ गठबंधन की आलोचना इस बात के लिए की गई है कि यह एक मजबूत विकल्प प्रदान करने में विफल रहा है और इसमें एक एकीकृत राष्ट्रीय नेता की कमी है। हालांकि इसमें 29 पाॢटयां शामिल हैं, लेकिन ये समूह विभाजित हैं। क्षेत्रीय नेता राहुल गांधी जैसे उम्मीदवारों का समर्थन करने में हिचकिचा रहे हैं। जो एक राष्ट्रीय गठबंधन के रूप में शुरू हुआ था, वह क्षेत्रीय शक्ति केंद्रों के संग्रह में विकसित हो गया है, जिनमें से प्रत्येक सहयोग के बजाय अपने हितों पर केंद्रित है। हालांकि जब विपक्षी दल प्रमुख मुद्दों पर एकजुट हुए हैं, तो मतदाताओं ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसी व्यक्तिगत पाॢटयां लालू यादव के नेतृत्व वाले यादव परिवार के भीतर आंतरिक पारिवारिक मुद्दों से जूझ रही हैं। बिहार में चुनाव नज़दीक आ रहे हैं। महाराष्ट्र में, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अपने प्रमुख शरद पवार और उनके भतीजे अजीत पवार के बीच संघर्ष के कारण उथल-पुथल का सामना कर रही है। जबकि मोदी एन.डी.ए. को एकजुट करने में कामयाब रहे हैं, वह विपक्षी खेमे में विभाजन पैदा करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कांग्रेस के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं जैसे डा. शशि थरूर, मनीष तिवारी, सलमान खुर्शीद और आनंद शर्मा की पहचान की है और उन्हें विभिन्न देशों में आऊटरीच प्रतिनिधिमंडल में भेजा है। मोदी ने अपनी स्थिति मजबूत करने और एन.डी.ए. की एकता बनाए रखने के लिए सभी उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करने का प्रयास किया है। साथ ही, ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं को अपनी स्थिति सुधारने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए था। उत्साहित विपक्ष को उसी जोश के साथ काम करना चाहिए, जिस जोश के साथ उन्होंने 2024 का चुनाव लड़ा था।-कल्याणी शंकर