पंजाब-हरियाणा के लोगों के रिश्तों में मिठास घोल गया किसान आंदोलन

punjabkesari.in Tuesday, Dec 21, 2021 - 04:42 AM (IST)

दशकों से अन्तर्राज्यीय मुद्दों पर हरियाणा और पंजाब के नेताओं में तो सियासी कटुता रही ही है, वहीं दोनों प्रदेशों के लोगों में भी अनेक मुद्दों पर दूरियां बनी रही हैं परन्तु एक वर्ष से अधिक लम्बे समय तक 3 कृषि कानूनों के खिलाफ चले आंदोलन में खास बात यह रही कि इसने दोनों राज्यों के लोगों के बीच दूरियां कम करते हुए नजदीकियां बढ़ा दी हैं या यूं कहिए कि यह आंदोलन दोनों प्रदेशों के लोगों की कटुता को दूर करते हुए संबंधों में एक नई मिठास भी घोल गया है। 

करीब एक वर्ष 13 दिन तक दिल्ली के सीमांत इलाकों में चले किसान आंदोलन ने जहां किसानों के संघर्ष को मंजिल तक पहुंचाया, वहीं इस आंदोलन की एक खूबसूरत तस्वीर हरियाणा और पंजाब का मजबूत भाईचारा स्थापित होने के रूप में देखने को मिली। आंदोलन से पहले की बात करें तो राजनीतिक और आम मुद्दों को लेकर दोनों प्रदेशों के संबंध कुछ अच्छे नहीं रहे। चाहे मुद्दा अलग राजधानी का हो, एस.वाई.एल. का हो या फिर पानी का, हमेशा से ही दोनों प्रदेशों के नेताओं व लोगों के बीच कटुता नजर आती रही है। मगर किसान आंदोलन के दौरान दोनों राज्यों के किसानों-लोगों के बीच ऐसा जुड़ाव हुआ कि अब ऐसा लगता है जैसे पंजाब-हरियाणा में कोई अंतर ही न रह गया हो। यह आंदोलन की सबसे खूबसूरत और उज्ज्वल तस्वीर है। 

विशेष पहलू यह है कि जब आंदोलन समाप्त होने के बाद दोनों राज्यों के किसान घरों को लौटने लगे तो लोग एक-दूसरे से लिपट कर विलाप करने लगे। इस दौरान ऐसे भावुक दृश्य देखने को मिले जैसे कोई अपना ही अपने से जुदा होकर जा रहा हो। लम्बा समय साथ बिताने के बाद आंदोलन में किसानों ने एक-दूसरे की संस्कृति, पहनावा और व्यवहार को अपनाया तो मिट गईं सब दूरियां। 

आंदोलन के शुरूआती समय में पंजाब के किसानों की संख्या सबसे अधिक थी। उस समय हरियाणा का सहयोग अधिक नहीं था। किसानों ने पिछले साल नवम्बर के अंत में दिल्ली के सीमांत इलाकों में पड़ाव डाला। यहां पर किसानों ने लंगर का प्रबंध किया, पर सबसे अधिक दिक्कत किसानों को दूध और लस्सी को लेकर आ रही थी। आंदोलन के कुछ दिनों बाद ही हरियाणा के किसानों की संख्या बढऩे लगी। हरियाणा से इतना अधिक दूध सप्लाई होने लगा कि किसानों के बर्तन कम पड़ गए। फिर क्या था, एक साथ चाय, दूध व खाना मिल-बांट कर खाने-पीने का शुरू हुआ सिलसिला आंदोलन समाप्त होने तक जारी रहा। 

खास बात यह भी रही कि टिकरी बार्डर, गाजीपुर बार्डर, सिंघू बार्डर के अगल-बगल में कालोनियों, बस्तियों में रहने वाले लोग किसानों के घर वापसी के समय इतने भावुक हो गए कि उनकी आंखों से आंसू छलकने लगे। इन लोगों को किसान गले लगाकर मिलते हुए घरों को वापस लौट गए। जाते हुए किसानों ने अपना सामान भी जरूरतमंद परिवारों को दे दिया। कई लोगों ने तो रोते हुए बताया कि इस आंदोलन में शामिल किसानों की वजह से तो उनके परिवारों का जीवन-यापन चल रहा था। उन्होंने कहा कि वे इनके परिवार का हिस्सा बन गए थे। गौरतलब है कि पिछले एक वर्ष से बहुत से परिवारों को न केवल आंदोलन कर रहे किसानों का सहयोग मिला, बल्कि वे यहां पर हर रोज सुबह-शाम गुरु का लंगर भी ग्रहण करते थे। 

उल्लेखनीय है कि हरियाणा और पंजाब के बीच मतभेद का सबसे बड़ा मुद्दा सतलुज-यमुना ङ्क्षलक नहर का रहा है, जो हरियाणा के गठन के बाद से ही चला आ रहा है। इसको लेकर न केवल प्रदेश के राजनेता एक-दूसरे से मतभेद रखते हैं, बल्कि आम लोगों के बीच भी इस मुद्दे पर मनमुटाव जैसी स्थिति रही है। इसी के साथ अलग राजधानी और अलग हाइकोर्ट को लेकर भी दोनों राज्यों के लोगों में अक्सर मतभेद सामने आते रहे हैं। 

अब किसान आंदोलन ने दोनों राज्यों के किसानों व आम लोगों में तो एक भाईचारा कायम किया ही है, वहीं किसान नेता भी यह बात मानते हैं कि आंदोलन में किसानों ने अपना हक तो जीता ही है, वहीं आपसी प्यार व भाईचारा भी जीता है। आंदोलन में जीत और हरियाणा-पंजाब की एकता पर भारतीय किसान यूनियन उग्राहां के नेता जोगेंद्र सिंह उग्राहां ने कहा कि हरियाणा ने इस आंदोलन में कमाल कर दिया। हरियाणा के लोगों के सहयोग को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। अब हम एक परिवार की तरह हैं। 

उग्राहां के अनुसार आंदोलन के बाद एक साल तक एक साथ वक्त बिताने के बाद इनके बच्चे हमारे बच्चे हैं और हमारे बच्चे इनके बच्चे हैं। उग्राहां ने तो दोनों प्रदेशों के नेताओं पर अवाम को दोफाड़ करने के आरोप लगाते हुए कहा कि इस आंदोलन ने हाकिमों को करारा जवाब दिया और हमारा भाईचारा फिर से स्थापित हो गया।-संजय अरोड़ा


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