आपातकाल से गुजरात दंगों तक भविष्य की पाठ्यपुस्तकों से अतीत के पाठ हटा दिए गए

punjabkesari.in Monday, Jun 20, 2022 - 04:53 AM (IST)

सदियों की कसौटी पर खरी उतरने के बाद ही कोई घटना इतिहास बन पाती है, जिसे पाठ्यपुस्तकों में दर्ज किया जाता है। यही कारण है कि पाठ्यपुस्तकों में वॢणत जानकारी को प्रामाणिक माना जाता है और आवश्यकता पडऩे पर इनमें से ही संदर्भ दिए जाते हैं।

लोकतंत्रवादियों और साम्राज्यवादियों में एक अंतर यह है कि जहां लोकतंत्रवादी अपने प्राचीन इतिहास को एक दस्तावेज के रूप में संरक्षित रखने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरे अपने अनुकूल न पाने के कारण उसे अपने अनुरूप ढाल कर नए रूप में पेश करने की कोशिश करते हैं। इसी सिलसिले में केंद्र सरकार द्वारा पाठ्यपुस्तकों में वर्णित इतिहास के कुछ अंशों को बदलने और कुछ विषयों पर शामिल किए गए पाठ हटाने का अभियान जारी है। 

2002 के गुजरात दंगों, लोगों और संस्थानों पर आपातकाल के कठोर प्रभाव से निपटने वाले अंशों, सत्ता के विरोध और सामाजिक आंदोलनों पर अध्यायों, जिनमें नर्मदा बचाओ आंदोलन, दलित पैंथर्स और भारतीय किसान संघ के नेतृत्व वाले संदर्भ शामिल थे, जैसे अतीत के पाठों को 2014 में राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद से 6वीं से 12वीं तक की कक्षाओं की पाठ्यपुस्तकों में से हटा दिया गया है। 

गुजरात दंगों का दूसरा संदर्भ कक्षा 12 की समाज शास्त्र की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन सोसायटी’ से हटा दिया गया है। इसके अलावा इस पाठ में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस चर्चित बयान को भी शामिल किया गया था, जिसमें उन्होंने राज धर्म का पालन करने की सलाह दी थी। गुजरात दंगों को लेकर एक विस्तृत पैराग्राफ है जिसमें बताया गया है कि किस तरह से हिंसा हुई। 

12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से नक्सली आंदोलन पर पूरा पेज हटा दिया गया। लोकतंत्र और भारतीय लोकतंत्र के निर्माण के बारे में चार अध्याय इस आधार पर हटा दिए गए हैं कि इसी तरह के विषयों को अन्य वर्गों की राजनीतिक विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों में शामिल किया गया है। कक्षा 12 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में आपातकाल पर अध्याय ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति’ को 5 पृष्ठों से कम किया गया है।

‘द डिजास्टर ऑफ डैमोक्रेटिक ऑर्डर’ शीर्षक वाले अध्याय में हटाई गई सामग्री उस समय के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा समॢथत आंतरिक आपातकाल और सत्ता के दुरुपयोग तथा कदाचार से संबंधित विवादों से संबंधित है। इसमें राजनीतिक कर्मचारियों की गिरफ्तारी, मीडिया पर प्रतिबंध, यातना और हिरासत में होने वाली मौतों, जबरन नसबंदी और गरीबों के बड़े पैमाने पर विस्थापन जैसी ज्यादतियों को सूचीबद्ध किया गया है। 

इसी तरह से समकालीन भारत में समाज सुधार तथा सामाजिक आंदोलनों का विवरण देने वाले कम से कम 3 अध्यायों को कक्षा 6 से 12 तक की राजनीति विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से हटा दिया गया है। उदाहरण के लिए, ‘लोकप्रिय आंदोलनों के उदय’ पर एक अध्याय को 12वीं की पाठ्यपुस्तक से हटा दिया गया है। छठी कक्षा के राजनीति विज्ञान की पुस्तक में ‘लोकतांत्रिक सरकार के प्रमुख तत्व’ शीर्षक वाले अध्याय को हटा दिया गया है। नक्सलवाद तथा नक्सल आंदोलन के लगभग सभी संदर्भ सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों से हटा दिए गए हैं। 

भाखड़ा नंगल बांध पर नेहरू की टिप्पणी कक्षा 12 समाजशास्त्र की पाठ्यपुस्तक (भारत में सामाजिक परिवर्तन और सुधार) के अध्याय ‘संरचनात्मक परिवर्तन’ से हटा दी गई है। एन.सी.ई.आर.टी. ने पाठ्यक्रम के उन हिस्सों को हटाने के पीछे दोहराव और अप्रासंगिक होने का हवाला दिया है। यह भी कहा गया है कि छात्रों को तेजी से सीखने में मदद करने के लिए पाठ्यक्रम का बोझ कम किया गया है क्योंकि उनकी पढ़ाई कोविड महामारी की वजह से प्रभावित रही है, जोकि तर्कशील नहीं प्रतीत होता। 

इन प्रयासों से सर्वाधिक हानि पाठ्यपुस्तकों की विश्वसनीयता को होगी तथा उन पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा और उनमें दी गई पाठय सामग्री की प्रामाणिकता समाप्त हो जाएगी, विशेष रूप से अब जबकि इस सूचना युग में सूचना मात्र एक क्लिक दूर है। क्या शिक्षा का उद्देश्य तथ्यों को रटाना है या फिर बच्चों को हर तरह की सूचना उपलब्ध करवाकर उन्हें सोचने और समझने के लिए प्रशिक्षित करना है?


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