सामाजिक बदलाव को प्रतिबद्ध दल आत्ममंथन करें

punjabkesari.in Sunday, Dec 10, 2023 - 05:46 AM (IST)

5 राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणामों के बारे में सभी गैर-भाजपा राजनीतिक दलों विशेषकर मेहनतकश लोगों के हितों का दम भरने वाली, सामाजिक बदलाव के लिए प्रतिबद्ध राजनीतिक पार्टियों को गहराई से आत्ममंथन करने की जरूरत है। संघ परिवार विशेषकर भाजपा नेता काफी खुश दिखाई दे रहे हैं क्योंकि उनकी झोली मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ की जीत से भर गई है। 

कांग्रेस पार्टी मध्य प्रदेश में 40.4 प्रतिशत, राजस्थान में 39.53 प्रतिशत तथा छत्तीसगढ़ में 42.93  प्रतिशत वोटें हासिल कर तीनों प्रांतों के अंदर अपने जनाधार को कायम रखने के लिए काफी हद तक सफल रही है। तेलंगाना में के.सी.आर. की पार्टी डी.आर.एस. को हराकर कांग्रेस भारी बहुमत से चुनाव जीत गई। इन चुनावों ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि आर.एस.एस. ने 1925 में अपनी स्थापना के बाद से पिछले साढ़े 9 वर्षों के दौरान मोदी के शासन के समय में जमीनी स्तर पर अपने संकीर्ण विचारों से लैस होकर बहुत बड़ा और ठोस आधार कायम कर रखा है। 

2024 के लोकसभा चुनावों के अंदर यदि भाजपा को सत्ता से उतार कर गैर-भाजपा हुकूमत कायम करनी है तो सभी भाजपा विरोधी दलों को संघ परिवार के इस विशाल ढांचे का मुकाबला करने के साथ-साथ कार्पोरेट जगत की ओर से भाजपा को दिए गए अपार धन, बाहुबल, गोदी मीडिया का मुकाबला भी करना होगा। इन चुनावों को जीतने के लिए तेज-तर्रार चुनाव प्रचार, झूठे वायदे विरोधी दलों के खिलाफ निचले स्तर की आलोचना और ई.डी., सी.बी.आई., इंकम टैक्स विभाग जैसी सरकारी एजैंसियों का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय लोगों की आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक दशा का अंदाजा इन तथ्यों से लगाया जा सकता है कि महंगाई, बेरोजगारी, कुपोषण तथा बिना अस्तित्व की सामाजिक सुरक्षा होने के बावजूद 80 करोड़ लोगों के लिए प्रति माह 5 किलो आटा-दाल स्कीम तथा अन्य आर्थिक प्रलोभन भाजपा की जीत के लिए बड़े कारण सिद्ध हुए हैं। 

भाजपा की विरोधी राजनीतिक पार्टियों पर आधारित गठबंधन ‘इंडिया’ की बैठक विधानसभा चुनावों के उपरांत 17 दिसम्बर को जो रखी गई है क्या यह चुनावों से पहले आयोजित नहीं की जा सकती थी? क्या कांग्रेस या गठबंधन के दूसरे दलों के नेता ‘इंडिया’ के फैसलों के अनुसार गठित की गई विभिन्न कमेटियों की बैठक बुलाकर चुनावों संबंधी कोई सार्थक फैसले नहीं ले सकते थे। यदि गठबंधन के रूप में इन विधानसभा चुनावों के अंदर सीटों का आबंटन बेशक न किया जाता परन्तु गठबंधन में शामिल सभी पाॢटयों का  नेतृत्व चुनाव प्रचार के लिए एकजुट होकर मैदान में उतरता तो आम वोटरों पर क्या इसका लाजिमी तौर पर अच्छा प्रभाव न पड़ता? क्या गैर-भाजपा राजनीतिक नेताओं की संयुक्त मुहिम भाजपा का राजनीतिक मुकाबला करने में सफल न होती? क्या बड़ा दल होने के नाते इन सबके लिए कांग्रेस पार्टी का अहंकार दोषी है या फिर अनजाने में यह की गई कोई भारी भूल है? ‘इंडिया’ में शामिल दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी इस पक्ष से अपनी बनती जिम्मेदारी नहीं निभाई। 

कांग्रेस तथा अन्य प्रादेशिक पार्टियों के नेताओं की ओर से की गई गैर-जरूरी बयानबाजी ने गठबंधन में आपसी विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाई? इस तरह से नेताओं के मनों के अंदर एक-दूसरे के प्रति सत्कार भी कम हुआ है। प्रत्येक वह दल और व्यक्ति जो 2024 के लोकसभा चुनावों के अंदर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने की सोचता है उससे उपरोक्त मुद्दों के बारे में क्या कोई विचार-विमर्श या मंथन की आस लगाई जा सकती है? आने वाले लोकसभा चुनावों में गैर-भाजपा राजनीतिक नेताओं के भविष्य के साथ-साथ बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है। यदि किसी कारण तीसरी बार भाजपा सत्ता में वापसी करने में सफल रहती है तो धर्म आधारित ऐसा गैर-लोकतांत्रिक राजनीतिक ढांचे का निर्माण किया जाएगा जिसकी शुरूआत मोदी के कार्यकाल से पहले ही शुरू की जा चुकी है। 

धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों और पीड़ित महिलाओं के लिए एक ऐसा धर्म आधारित साम्प्रदायिक फासीवादी राजनीतिक ढांचा एक ऐसे सपने जैसा होगा जहां पर सत्ता के खिलाफ बोलने, लिखने तथा विचार प्रकट करने की आजादी का गला दबाया जाना तय है। ऐसे प्रबंधन में क्या हमारा वर्तमान संविधान, संसदीय प्रणाली, न्यायपालिका तथा कार्यपालिका की स्वतंत्रता कायम रह सकेगी? संघ देश के भीतर मनोवादी सामाजिक ढांचा लागू करके जात-पात की व्यवस्था को किसी न किसी ढंग में और गहरा करना चाहता है। आर.एस.एस. की विचारधारा का प्रचार, प्रसार और संगठन का विस्तार किया जा रहा है। 

सभी कम्युनिस्टों तथा दलित समाज के नेताओं को श्रमिक वर्ग को दरपेश समस्याओं से छुटकारा दिलाने के लिए मिल-बैठ कर आपसी विचार-विमर्श से पुरानी गलतियों और गलतफहमियों को दूर करके आपसी एकता के लिए पहलकदमी की जानी चाहिए। समानता वाले समाज की स्थापना के लिए संयुक्त संघर्ष की रूप-रेखा तैयार करनी चाहिए। बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर तथा शहीद-ए-आजम भगत सिंह की विचारधारा हमारी संयुक्त विरासत है। बाबा नानक तथा भक्ति लहर के समस्त महापुरुष हम सबके सांझे हैं। समाज विरोधी तत्व इतिहास और ज्ञान के स्रोतों का दुरुपयोग कर हमें लूट रहे हैं।-मंगत राम पासला


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