‘संसद हमारे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है’

Sunday, Dec 27, 2020 - 04:45 AM (IST)

एक सामान्य वर्ष में संसद का शीतकालीन सत्र अभी समाप्त हुआ होगा और हम में से बाकी सांसदों ने अच्छी तरह से अर्जित अवकाश का आनंद ले लिया होगा। इस वर्ष हालांकि हम में से ज्यादातर सभी छुट्टियों पर रहे होंगे। वर्ष 2020 में संसद मात्र 33 दिनों तक चली। पहले दो दशकों में 120 दिनों या पिछले दशक में 70 दिन के औसत के विपरीत संसद चली। हम में से अधिकांश लोगों ने 30 दिनों की छुट्टी बिताई है। इस वर्ष संसद की कुल समय की कार्यशीलता है। 

उपरोक्त पैराग्राफ में 2 बिंदू हैं मगर मैं केवल एक को आगे बढ़ाना चाहता हूं। मैं इस तथ्य के साथ कहना चाहता हूं कि संसद पर्याप्त दिनों के लिए कहीं भी नहीं बैठी। आज मैं क्षमा करने योग्य निर्णय पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूं कि संसद का शीतकालीन सत्र आयोजित ही नहीं हुआ। इसके पीछे तर्क यह है कि कोविड-19 ने सत्र की अनुमति ही नहीं दी। यह विश्वसनीय है। एक शुरूआत के लिए संसद के पहले कामकाज इसे नापसंद करते हैं। मानसून सत्र सितम्बर में आयोजित किया गया था जब कोविड के रोजाना मामले 95000 की संख्या को पार कर चुके थे तो ऐसी स्थिति कैसे हो सकती है जब मामलों की वृद्धि 25,000 से कम हो गई तो शीतकालीन सत्र आयोजित न करना एक विश्वसनीय कारण बना। 

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राजनेताओं और उनके दलों ने हाल ही में विधानसभा, नगरपालिका और उपचुनावों में बिना किसी भय के भाग लिया। उन्होंने इसकी सख्ती से पालना की। हालांकि त्यौहारी मौसम के दौरान भीड़भाड़ वाले बाजारों में मामलों की कोई वृद्धि नहीं देखी गई। इसलिए सरकार पूरे संसद के सत्र को किस बिना पर रद्द कर सकती है कि विधायकों तथा संसदीय स्टाफ को संक्रमण का खतरा है। यह बात असंगत ही नहीं तर्कहीन भी है। 

हालांकि यह मेरा मामला नहीं है कि संसद को आवश्यक सावधानी के बिना बुलाया जाना चाहिए। अपने नियमों में सावधानी से विचार करने पर दोनों सदनों को कम सांसदों के साथ या दूरस्थ उपस्थिति से कार्य करने की अनुमति मिल सकती है। ब्रिटेन में अगर हाऊस ऑफ कॉमन्स ऐसी परिक्रियाओं को अपना सकता है तो भारत में हमारी लोकसभा और राज्यसभा ऐसा क्यों नहीं कर सकती? 

ये ऐसे तर्क हैं जिनके बारे में सरकार को संबोधित करना चाहिए मगर सरकार इसके प्रति उदासीन लगती है। लेकिन एक बड़ी नैतिक अनिवार्यता है कि परिस्थितियों की परवाह किए बिना संसद को क्यों काम करना चाहिए?  इसके लिए दो तथ्य हैं। जब सरकार देश को सुरक्षित रूप से काम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है तो वह विरोधाभासी कार्य कर सकती है। प्रत्येक दिन लाखों भारतीय वायरस को पकडऩे का जोखिम झेलते हैं क्योंकि वे अपने कार्यस्थलों पर जाते हैं। ऐसा वे इसलिए करते हैं ताकि वह जिंदा रहने के लिए कमा सकें। इसके अलावा देश की अर्थव्यवस्था को बढऩे  में भी अपना योगदान देते हैं। इसलिए सांसदों का अपवाद क्यों होना चाहिए? 

संसद हमारे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है। यह हमारे लिए बोलती है और हमारे संकल्प का प्रतीक है। यदि हमारे लोकतंत्र के मंदिर में कोरोना काल में कार्य करने की चुनौती है तो इसका उदाहरण क्या है जो हम में से बाकी लोगों के लिए निर्धारित है। यह हमारी सीमाओं से परे दुनिया को आखिर क्या संदेश देता है। मैं कहूंगा कि सांसदों का अन्य नागरिकों की तुलना में उनका अधिक नैतिक कत्र्तव्य बनता है लेकिन क्या वे सहमत हैं? क्या वे इससे अवगत भी हैं? और क्या उनके पास इसे पूरा नहीं करने के बारे में कोई योग्यता है? 

मुझे संदेह है कि तीनों सवालों का जवाब हमारे पास नहीं है। यदि मैं गलत हूं तो वहां पर एक अन्य मुद्दा है जिसे संबोधित करने की जरूरत है। जब सांसद कार्य नहीं करते तो क्या उन्हें इसके लिए भुगतान किया जाना चाहिए? जब आप और मैं कार्य मिस कर देते हैं तो क्या हमारा वेतन कटता नहीं? सांसद भले ही न कमाएं लेकिन वे अन्य तरीकों से काफी हद तक सब कुछ अर्जित कर लेते हैं और मुआवजा पा लेते हैं। उनके पास रहने को घर है। नि:शुल्क टैलीफोन है और नि:शुल्क यात्राएं करते हैं। उन्हें सचिवीय मदद भी मिलती है। जब संसद कार्य नहीं कर रही तो क्या नकदी घटक को कम नहीं किया जाना चाहिए? 

अंत में मुझे डा. भीमराव अम्बेदकर की बातों का स्मरण करना चाहिए। जब यह सुझाव दिया गया कि संसद की बैठकें हर 6 महीने में एक बार की बजाय अधिक बार होनी चाहिएं तो उन्होंने कहा, ‘‘मुझे डर है अगर मैं ऐसा कर सकता हूं तो संसद के सत्र इतने लगातार और इतने लम्बे हो जाएंगे कि विधायिका के सदस्य शायद खुद ही सत्र से थक जाएंगे।’’-करण थापर
 

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