परगट सिंह जी, खेल मंत्री की कुर्सी कांटों की सेज से कम नहीं

punjabkesari.in Friday, Oct 01, 2021 - 05:23 AM (IST)

पंजाब में कांग्रेस सरकार के 3 महीने बाकी हैं। चारों ओर सियासी कलाबाजियां तथा धोबीपटके बज रहे हैं। कोई मंत्री बन रहा है, किसी को मंत्री के पद से हटाया जा रहा है। कोई त्याग पत्र दे रहा है, कोई नए पद की तलाश में फुर्र हो रहा है। चारों ओर खलबली मची हुई है। 

पंजाब की राजनीति में कैप्टन के दिन खत्म हो गए हैं, चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के नए कैप्टन बन गए हैं, सिद्धू की मिसाइल का कोई पता नहीं चल रहा कि कब और कैसे किस ओर चल जाए। पंजाब के लोगों की नजरें केवल राजनीतिक नेताओं की वर्तमान कारगुजारी पर लगी हुई हैं जो सियासत के तेल और तेल की धार को देख रहे हैं। फिर ही उन्होंने यह निर्णय लेना है कि 2022 में अगली सरकार किसकी बनानी है। पंजाब की राजनीति के आने वाले तीन महीने बड़े नाजुक हैं, जो भी अपनी विकासशील कारगुजारी का प्रभाव लोगों पर छोड़ गया, उसकी ही 2022 में बल्ले-बल्ले होनी है। 

हॉकी ओलिम्पियन परगट सिंह पंजाब के नए खेल मंत्री व शिक्षा मंत्री बने हैं। देश की स्वतंत्रता के बाद पंजाब के इतिहास में यह पहला अवसर है जब किसी ओलिम्पियन स्तर के खिलाड़ी को पंजाब का खेल तथा शिक्षा मंत्री बनाया गया है। अब तक पंजाब की राजनीति में वे लोग खेल मंत्री, शिक्षा मंत्री बने हैं जिनको खेलों बारे न तो कोई ज्ञान था और न ही पढ़ाई के क,ख,ग, का। यह हम सभी को पता ही है कि पंजाब की राजनीति में पिछले 3 दशकों में बने खेल मंत्री, चाहे सुखबीर बादल बने हों या हरमिन्द्र जस्सी, गुलजार सिंह रणीके हों या पवन टीनू, हमें तो पता नहीं वे किस यूनिवर्सिटी की ओर से खेले हैं? किसी गेम को खेलना तो दूर की बात, इन्होंने तो कभी गुल्ली-डंडा भी नहीं खेला होगा। बस खेल मंत्री बनना उनकी एक राजसी खानापूर्ति ही थी। गुरमीत राणा सोढी एक अच्छा खिलाड़ी होकर खेल मंत्री होते हुए भी खिलाड़ियों की आशाओं पर खरा नहीं उतर सका। 

अब बारी आ गई है ओलिम्पियन परगट सिंह के खेल तथा शिक्षा मंत्री बनने की लेकिन परगट सिंह के लिए खेल मंत्री का यह ताज किसी कांटों की सेज से कम नहीं है क्योंकि पद के साथ-साथ यह एक बड़ी जिम्मेदारी भी है। मगर बात यह भी है कि केवल खेलों का ही नहीं पूरे पंजाब का ही सिस्टम इतना बिगड़ गया है कि इसे ठीक करना ‘कोई खाला जी का बाड़ा’ नहीं है। आज की राजनीति चापलूसों की बनकर रह गई है।

समझदार व्यक्ति, पढ़े-लिखे लोग राजनीति के भ्रष्ट सिस्टम से दुखी होकर दूर चले गए हैं। इस समय अधिकतर खिलाड़ियों की हालत भिखारियों जैसी है। अच्छे से अच्छा खिलाड़ी भी नौकरियों के लिए दर-दर भटकता फिरता है। आज बहुत जरूरत है विभिन्न खेल संगठनों में बड़े सुधारों की। जिला तथा राज्य स्तर की अधिकतर खेल चैम्पियनशिप्स नहीं हो रहीं। विभिन्न सरकारी विभागों के खेल प्रकोष्ठ समाप्त हो गए हैं, उनकी विभिन्न खेलों से संबंधित टीमें खत्म हो गई हैं। खेलों के पर्याप्त कोच नहीं हैं। स्कूलों-कालेजों के खेल विंगों की ठोस प्रक्रिया होनी चाहिए। 

सबसे महत्वपूर्ण विचार यह है कि पंजाब को एक सार्थक, ठोस, विकासशील तथा खिलाड़ियों के हित वाली खेल नीति चाहिए जो पिछले 70 सालों में नहीं बनी। इसी कारण पंजाब में खेलों के क्षेत्र में बड़ी गिरावट आई है। यदि परगट सिंह में दम है तो खिलाडिय़ों के लिए ठोस खेल नीति बनाएं।

यदि खेल नीति बनाने का दम है तो अमरीका व चीन की खेल नीति की नकल करें, यदि नहीं तो कम से कम हरियाणा की खेल नीति की नकल करके ही देख लें और यदि वह भी नहीं कर सकते तो कम से कम पंजाब की एक अलग खेल नीति बनाएं जो पंजाब के खिलाड़ियों का हित साधती हो। तभी पंजाब में खेलों का भला हो सकता है नहीं तो जिस तरह के पहले खेल मंत्री आए, बातों तथा बयानबाजी से ही खिलाडिय़ों का पेट भरते रहे, उसी तरह का ही परगट सिंह का भी कार्यकाल होगा। अब देखना तो यह है कि परगट सिंह पंजाब की राजनीति में खेल मंत्री बनने वाला मैच आखिरी पलों में जीतते हैं या हारते हैं। समय अभी कुछ बाकी है। पंजाब के खिलाड़ी भाई-बहनो, बाकी आपका ‘रब्ब राखा’।-जगरूप सिंह जरखड़


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