चीनी कर्ज से पाकिस्तान को नहीं मिलेगा कंगाली से छुटकारा

Tuesday, Mar 21, 2023 - 06:35 AM (IST)

पाकिस्तान पिछले कई वर्षों से आर्थिक बदहाली के दिन देख रहा है, ऐसे में वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के साथ विकसित देशों ने पाकिस्तान की किसी भी तरह से मदद करने से साफ इंकार कर दिया। रही बात पाकिस्तान के हर मौसम दोस्त चीन की तो उस समय चीन एकदम शांत बैठा पाकिस्तान की स्थिति की समीक्षा कर रहा था, वहीं पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों पर प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि भारत ने 5 अगस्त 2022 को कश्मीर से धारा 380 को हटा दिया था।

इस वजह से पाकिस्तान ने अपनी बदहाली से उबरने की रही-सही उम्मीद को भी खत्म कर दिया। जब पाकिस्तान को कहीं से भी किसी तरह की आॢथक मदद मिलने  की आस खत्म हो गई तब चीन ने मौके पर चौका लगाते हुए पाकिस्तान को 70 करोड़ डॉलर की मदद देने की घोषणा कर दी, लेकिन जानकारों का मानना है कि चीन इसके बदले पाकिस्तान से पंजाब की उपजाऊ जमीन को लम्बे समय के लिए पट्टे पर लेगा, वह दुनिया को दिखाएगा कि चीन के लिए वह यहां पर गेहूं की फसल उगाएगा लेकिन उसका असल मकसद भारत को पश्चिमी छोर से घेरना है।

चीन ने ऐसा भारत को घेरने के लिए किया है। इसके साथ ही चीन ने भारत के लगभग हर पड़ोसी देश जिनमें पाकिस्तान के साथ नेपाल, बंगलादेश, श्रीलंका भी आते हैं, को अपने ऋण जाल में फंसा रखा है। चीन की मंशा इन देशों को अपने एहसान तले दबाकर इन देशों के अंदर घुसना और वहां से भारत विरोधी कार्यक्रम चलाने की है। दरअसल चीन ने बी.आर.आई. परियोजना के तहत जितना पैसा निवेश किया था, खासकर अफ्रीकी  महाद्वीप में उसका कोई फायदा चीन को नहीं मिला, खासकर चीन द्वारा अफ्रीकी महाद्वीप में किए गए निवेश के बदले अभी चीन को लाभ नहीं हुआ है, इसके बदले पूरे अफ्रीका की जनता और कई देशों की सरकारें चीन के विरुद्ध हो गईं।
 

वहीं पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में चीन की सक्रियता के चलते वहां मौजूद बलूच लिब्रेशन आर्मी के लोगों ने कई चीनियों को निशाना बनाकर मार डाला। इस बात को लेकर चीन और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी भी आ गई थी। पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह के पास रहने  वाले मछुआरों पर चीनियों के निर्माण कार्य और बड़े स्तर पर अरब सागर से मछलियां पकडऩे के कारण उनकी रोजी-रोटी पर बुरा असर पड़ रहा था जिस कारण ग्वादर के स्थानीय लोग चीनियों के खिलाफ धरना प्रदर्शन करते रहते हैं।

बावजूद इसके चीन ने सोची-समझी रणनीति के तहत पाकिस्तान को उधार दिया है। चीन से मिलने वाले 70 करोड़ डॉलर के ऋण के बाद पाकिस्तान चीन के उधार के दलदल में और गहरा धंसता चला जाएगा और यही चीन चाहता भी है। इससे पहले पाकिस्तान आई.एम.एफ. से साढ़े 6 अरब डॉलर का ऋण पाने का असफल प्रयास कर चुका है क्योंकि इसने आई.एम.एफ. से पहले लिए कर्ज की एक भी किस्त नहीं चुकाई है। वहीं पाकिस्तान के ऊपर अगर चीन के कर्ज की बात करें तो वर्ष 2017 में यह 7 अरब 20 करोड़ डॉलर था जो वर्ष 2022 में बढ़कर 30 अरब डॉलर का हो गया। आई.एम.एफ. के जारी आंकड़ों में पाकिस्तान के कुल विदेशी कर्ज का 30 फीसदी हिस्सा चीन का कर्ज है।

पाकिस्तान पर चीन का कर्ज आई.एम.एफ. के कर्ज का तीन गुना है और यह कर्ज एशियन डिवैल्पमैंट बैंक और विश्व बैंक के मिले-जुले कर्ज से भी कहीं ज्यादा है। चीन के कर्ज के साथ बहुत सारी दुश्वारियां हैं जैसे इसका ब्याज आई.एम.एफ. और विश्व बैंक से कहीं ज्यादा है। चीन कभी भी उधार देने वाले तौर-तरीकों को नहीं मानता है, यानी चीन के अपने खुद के कानून होते हैं, चीन की शर्तें इतनी अपारदर्शी और टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं कि अक्सर कर्ज लेने वाला उन्हें चुकाने में असमर्थ होता है।

ऐसे में चीन अपने चुने हुए तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर उस देश को अपने कर्ज जाल में फंसा लेता है और इसके बाद उस देश में अपने राजनीतिक और आर्थिक हितों को पूरा करने में जुट जाता है। उदाहरण के लिए चीन भारत के सारे पड़ोसी देशों को कर्ज देकर उन देशों में अपनी पैठ बढ़ाते हुए अपने प्रतिद्वंद्वी भारत को घेरना चाहता है क्योंकि हाल के वर्षों में जहां चीन की आर्थिक हालत खराब हो रही है और कई देसी-विदेशी कम्पनियां चीन से बाहर निकल रही हैं तो उनमें से बहुत सारी कम्पनियां भारत आकर अपना विनिर्माण कार्य शुरू कर रही हैं। इसे देखते हुए चीन भारत को घेरकर उसकी प्रगति की राह में रोड़ा खड़ा करना चाहता है।

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