पाकिस्तान के ‘आतंकी प्रशिक्षण केन्द्र’ एक बड़ी चुनौती

Friday, Sep 20, 2019 - 01:04 AM (IST)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 11 सितम्बर को मथुरा में कहा था कि ‘आतंकवाद की जड़ें हमारे पड़ोस में पनप रही हैं और आतंकवादियों को पनाह तथा प्रशिक्षण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भारत पूरी तरह से सक्षम है और हमने करके भी दिखाया है।’ पाकिस्तान के गृह मंत्री ब्रिगेडियर एजाज अहमद शाह ने हाल ही में कहा था कि इमरान सरकार ने आतंकवादी संगठन जमात-उद-दावा सहित अन्य कई आतंकवादी संगठनों को मुख्यधारा के साथ जोडऩे के लिए उन पर करोड़ों रुपए खर्चे हैं। प्रश्र उठता है कि क्या वे मुख्यधारा में शामिल होंगे? 

जब से जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा, अधिकार तथा नागरिकता को बचाने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 तथा 35ए को समाप्त करने वाला दिलेराना फैसला भारत ने लिया है, तब से ही पाकिस्तान का प्रधानमंत्री इमरान खान कभी परमाणु युद्ध की धमकियां और कभी बातचीत शुरू करने वाले बयान दे रहा है। दरअसल बौखलाए हुए इमरान को यह नहीं सूझ रहा कि वह क्या करे, क्या न करे। 

हम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़संकल्प से सहमत तो हैं मगर बड़ा प्रश्र यह है कि जिस देश के गठन के समय गुढ़ती ही आतंकवाद की मिली हो तो क्या 72 वर्षों बाद इमरान द्वारा खुद कबूले गए सक्रिय 40 आतंकवादी संगठनों तथा उनके 30 से 40 हजार के करीब प्रशिक्षित हथियारबंद सरगनाओं तथा उनके प्रशिक्षण कैम्पों को समेटना सम्भव होगा? याद रहे कि पाकिस्तान के आतंकवादियों पर नियंत्रण तो सेना व आई.एस.आई. का है तथा परमाणु हथियारों के जखीरे की चाबी भी तो इस समय जनरल बाजवा के पास है। 

पाकिस्तान की घिनौनी चालें
1947-48 में जब पाकिस्तानी कबायलियों को भारतीय सेना ने मुजफ्फराबाद की ओर धकेल दिया तो निराशाजनक हालत में मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को अपील की कि वह आगे आए और कबायलियों की मदद से कश्मीर हासिल करे, मगर सफलता नहीं मिली। फिर पाकिस्तान की सेना तथा आतंकवादियों की मिलीभगत की शुरूआत हुई। 

बदला लेने की भावना से पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 1965 के शुरू में 4 गोरिल्ला प्रशिक्षण कैम्प स्थापित करके एक नई प्रथा शुरू कर दी। अगस्त 1965 के पहले सप्ताह ‘आप्रेशन जिब्राल्टर’ के नाम पर लगभग 9000 घुसपैठियों को कड़ा प्रशिक्षण देकर जरूरी हथियारों के साथ 8 टास्क फोर्सिज में बांट कर इस्लाम के नारे के साथ कारगिल से लेकर जम्मू के पश्चिम की ओर भेज दिया। 

फिर कूटनीतिक संबंध तोड़ कर अगस्त-सितम्बर 1965 में अयूब खान ने युद्ध का बिगुल बजा दिया। भारतीय सेना के वफादार शूरवीर योद्धाओं ने सेना कमांडर लैफ्टीनैंट जनरल हरबख्श सिंह के कुशल नेतृत्व में हाजी पीर जैसे महत्वपूर्ण इलाकों को काबू करके आतंकवादियों की जड़ें उखाड़ दीं और आधा अधिकृत कश्मीर अपने नियंत्रण में ले लिया। अफसोस की बात तो यह है कि जीते हुए महत्वपूर्ण इलाके वापस करके हार गए सियासतदान शर्मनाक हार का सामना करने के उपरांत भी पाकिस्तान आतंकवादियों के लिए प्रशिक्षण कैम्पों वाला ढंग अपनाता रहा और यही कुछ उसने 1999 में कारगिल युद्ध के समय किया तथा आगे भी करता रहेगा। 

वर्तमान परिदृश्य
गत लगभग 5 दशकों से पाक अधिकृत कश्मीर आतंकवादी संगठनों का गढ़ बन चुका है, जिसके तार अलकायदा जैसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं तथा तालिबान भी सम्पर्क में है। इसके अतिरिक्त भारत के कई हिस्सों में जैश तथा हिजबुल ने अपने ‘स्लीपिंग सैल’ कायम किए हुए हैं, जिन्हें अब जगाया जा रहा है। पिछली जानकारी के अनुसार, अधिकृत कश्मीर में लगभग 40 आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार अब 14 नए अस्थायी प्रशिक्षण कैम्प तथा लांङ्क्षचग पैड सक्रिय कर दिए गए हैं। लश्कर, जैश तथा तालिबान जैसे आतंकवादी संगठन प्रशिक्षण प्राप्त सैंकड़ों जेहादियों को एल.ओ.सी. के नजदीक तैयार-बर-तैयार करके अनुकूल समय की ताक में हैं। जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर को चुपचाप रिहा कर दिया गया है। उसके भाई इब्राहिम अजहर को अस्थायी कैम्प के चक्कर लगाते देखा गया है। 

प्रशिक्षण कैम्पों की जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों से नजदीकी होने के कारण कश्मीर में घुसपैठ सम्भव हो जाती है। ये प्रशिक्षण कैम्प पूरे कश्मीर में फैले हुए हैं जैसे कि बिंबर, कोटली रावलकोट, बकरियाल छावनी, मंगला तथा बालाकोट जैसे अस्थायी कैम्प आगे बढ़ते जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मुजफ्फराबाद तथा कोटली स्थित लश्कर तथा हिजबुल मुजाहिदीन जैसे संगठनों के मुख्यालय माने जाते हैं। जैश-ए-मोहम्मद का मुख्य दफ्तर बालाकोट स्थित उत्तर-पश्चिमी फ्रंटियर राज्य है मगर अब अधिकृत कश्मीर में भी बेहद सक्रिय है। 

ये भी रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं कि बिंबर तथा कोटली में स्थापित कैम्पों में महिलाओं को भी भर्ती करके उन्हें गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस दाव-पेंच का इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है ताकि प्रशिक्षण प्राप्त सशस्त्र महिलाओं द्वारा कश्मीरियों के साथ आसानी से घुलमिल कर गहरी युद्धक चालें चलते हुए हमारे देश के रक्षा बलों को धोखा दिया जा सके। जानकारी के अनुसार लश्कर की अग्रिम पंक्ति वाले संगठन जमात-उद-दावा तथा फलाह-ए-इंसानियत के प्रमुख हाफिज सईद के पास लगभग 50,000 स्वैच्छिक तथा सैंकड़ों की संख्या में भाड़े वाले आतंकवादी भी हैं। 

समीक्षा : इमरान खान द्वारा अमरीकी दौरे के दौरान यह स्वीकार करना कि उसके देश में लगभग 40,000 शिक्षित सशस्त्र लड़ाके हैं और उनमें से कुछ अफगानिस्तान तथा कश्मीर के हिस्सों में लड़ रहे हैं, से स्पष्ट है कि इमरान खान इन आतंकवादियों के कंधों पर विस्फोटक सामग्री तथा बंदूकें रख कर पुलवामा-2 की धमकियां दे रहा है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि जम्मू-कश्मीर के अतिरिक्त भारत में कई अति संवेदनशील, भीड़-भाड़ वाली संस्थाओं की सुरक्षा मजबूत की जाए क्योंकि छद्मयुद्ध किसी ओर भी रुख कर सकता है। हम कहीं फिर धोखा न खा जाएं।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)  
 

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