पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता

punjabkesari.in Saturday, May 26, 2018 - 03:28 AM (IST)

इस्लाम के सिद्धांत अनुसार 17 मई से शुरू हुए पवित्र रमजान के महीने का मुख्य उद्देश्य देश-विदेश में बसे 12 साल से अधिक उम्र के मुसलमान वैर-विरोध मिटाकर भूलें बख्शवाने, अशुभ तत्वों से परहेज करने और अपने गुणों को प्रदर्शित करने की खातिर रोजा रखने वाले दिन चढऩे से लेकर अंधेरा होने तक कुछ भी नहीं खाते-पीते, बीड़ी, सिगरेट आदि व इंद्रीय भोग की प्रक्रिया से भी दूर रहते हैं। 

मुसलमानों की आस्था, रमजान के महत्व को समझते हुए और जम्मू-कश्मीर में शांति बहाल करने के उद्देश्य से रक्षा मंत्री सीतारमण व सेना प्रमुख बिपिन रावत की सहमति के बिना भारत सरकार ने 16 मई को मुसलमानों के इस पवित्र त्यौहार को मद्देनजर रखते हुए राज्य में युद्ध विराम लागू करने का फैसला तो लिया, साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि यदि सुरक्षा बलों पर हमला होता है तो उन्हें जवाबी कार्रवाई करने का अधिकार होगा। 

अफसोस की बात तो यह है कि पड़ोसी मुस्लिम देश तथा उसके पालतू सरगनाओं ने इस्लाम के सुनहरी नियमों को ताक पर रखते हुए जहां अपनी आतंकवादी गतिविधियां जारी रखी हुई हैं, वहीं पाकिस्तानी सेना द्वारा नियंत्रण रेखा का उल्लंघन बड़ी तेजी से किया जा रहा है। गत वर्ष के पहले 5 महीनों दौरान 120 बार और अब 21 मई तक पाकिस्तान ने 230 बार युद्ध विराम का उल्लंघन किया और यह सिलसिला रमजान के महीने में तेजी पकड़ता जा रहा है। जानकारी के अनुसार अर्निया, आर.एस. पुरा, सांबा, कठुआ सैक्टरों में भारी गोलाबारी के कारण लगभग 55 सीमांत गांवों के 90 हजार के करीब लोग अपना कारोबार बंद करके माल-असबाब छोड़कर सुरक्षित स्थलों पर हिजरत कर रहे हैं। स्कूल बंद पड़े हैं और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हो चुका है। 

रमजान का महत्व: रमजान के महीने में रोजे रखने वालों का विश्वास है कि इस पवित्र महीने में नरक के दरवाजे बंद हो जाते हैं। रमजान के महीने को तीन भागों में बांटा गया है। पहले 10 दिन अल्ला के वरदान को समर्पित किए गए हैं। इसके बाद के 10 दिन क्षमा मांगने वाले हैं और अंतिम 10 दिन दोजख भोगने से छुटकारा पाने के लिए एकाग्रता के साथ आराधना वाले हैं। इस्लामिक कानून तथा मर्यादा के माहिर माने जाते डा. खालिद अबु-अल-फदल के अनुसार कुरान कहता है कि उनसे लड़ो जो आपके साथ लड़ते हैं। 

समीक्षा तथा सुझाव : रमजान के महीने में केन्द्र सरकार द्वारा युद्ध विराम के फैसले का आम लोगों ने स्वागत किया है मगर लश्कर-ए-तोयबा ने इसको खारिज किया है। आतंकवादियों का जम्मू-कश्मीर में सर्वाधिक सक्रिय संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन क्या रुख अपनाएगा, यह चिंता का विषय है। कट्टरपंथियों तथा अनपढ़ धार्मिक नेताओं द्वारा इस्लामिक लड़ाई ‘जंग-ए-बदर’ के सिद्धांत की गलत ढंग से व्याख्या की जा रही है। विशेष तौर पर दक्षिणी कश्मीर के नवयुवकों को पाकिस्तान के दुष्प्रचार के कारण यह कहकर गुमराह किया जा रहा है और वे इस बात से प्रभावित हो रहे हैं कि यदि वे रमजान के दौरान, विशेष तौर पर रोजों के 17वें दिन आत्मघाती हमले में मारे जाते हैं तो वे जेहादी शहीद माने जाएंगे तथा अल्ला उनको स्वर्ग में भेजेगा जहां उनकी प्रतीक्षा हूरें भी कर रही हैं। 

चिंताजनक बात तो यह है कि रमजान के दूसरे पड़ाव वाला 17वां दिन कहीं अंग-भंग वाला न बन जाए। याद रहे कि जब सेना द्वारा इफ्तार समारोह करवाया जा रहा था तो उन पर पत्थरबाजी शुरू हो गई और पत्थरबाजों में औरतें भी शामिल थीं क्या यह इस पवित्र त्यौहार की तौहीन नहीं है? ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कि न तो पाकिस्तान और न ही आतंकवादी संगठनों का कोई दीन-धर्म व ईमान हो। रस्मी नेताओं को चाहिए कि वे राजनीति से ऊपर उठकर एकतरफा युद्ध विराम का पूरा फायदा लेने की खातिर अपने-अपने हलकों में नरमख्याली नेताओं तथा नौजवान वर्ग को साथ जोड़कर स्कूलों, कालेजों, मदरसों तथा मस्जिदों में पहुंचकर पाकिस्तान  द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार तथा अलगाववादियों की गुमराह करने वाली चालों से उन्हें सतर्क करें। राज्य सरकार को चाहिए कि राज्य का बहुपक्षीय विकास करके बेरोजगारी तथा गरीबी को दूर करने के प्रयास किए जाएं। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति तथा अर्थव्यवस्था डावांडोल होती जा रही है। 

पाकिस्तान में आतंकवाद के मुद्दे को लेकर बहस जारी है। हो सकता है कि बातचीत का सिलसिला शुरू हो जो दोनों देशों के हित में होगा। चिंतनीय बात यह भी है कि पाकिस्तान अब गोलाबारी का घेरा पंजाब की 553 किलोमीटर लम्बी अंतर्राष्ट्रीय सीमा की ओर क्यों कर रहा है? हकीकत यह है कि पाकिस्तान पर किसी भी समय, किसी भी हद तक भरोसा नहीं किया जा सकता। भारत सरकार को हर तरह की स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)


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Pardeep

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