पाक फौज और पुलिस में टक्कर

Friday, Oct 23, 2020 - 04:08 AM (IST)

पाकिस्तान में पिछले दो-तीन दिनों में जो घटनाएं घटी हैं, उनका विस्तृत ब्यौरा सामने नहीं आ रहा है, क्योंकि वे घटनाएं हैं ही इतनी पेचीदा और गंभीर। यह घटना है, पाकिस्तान की फौज और पुलिस के बीच हुई टक्कर की। यह टक्कर हुई है, कराची में। पाकिस्तान के विरोधी दलों की ओर से जिन्ना की मजार पर एक प्रदर्शन किया गया था। यह प्रदर्शन ‘इमरान हटाओ’ आंदोलन के तहत था। इसका नेतृत्व मियां नवाज शरीफ के दामाद सफदर अवान और उनकी पत्नी मरियम कर रही थी। 

सफदर के खिलाफ आरोप यह था कि उन्होंने जिन्ना की मजार की दीवारें फांदकर कानून-कायदों का उल्लंघन किया है। उन्हें रात को उनके होटल से गिरफ्तार किया गया, उनके कमरे का दरवाजा तोड़कर! असली मुद्दा यहां यह है कि उन्हें किसने गिरफ्तार किया? क्या सिंध की पुलिस ने? नहीं, उन्हें गिरफ्तार किया, पाकिस्तानी फौज और केंद्रीय खुफिया एजैंसी के लेागों ने। 

सिंध की पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करने से मना कर दिया था, क्योंकि सिंध में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार है और उसके नेता बिलावल भुट्टो तो इस आंदोलन के प्रमुख नेता हैं। लेकिन इमरान सरकार के इशारे पर कराची के सबसे बड़े पुलिस अफसर (आई.जी.पी.) को फौज ने लगभग चार घंटे तक अपना बंदी बना लिया ताकि जब वह सफदर को गिरफ्तार करे, तब कराची की पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे। 

यही हुआ लेकिन सिंध की पुलिस में हड़कंप मच गया। लगभग कई बड़े पुलिस अफसरों ने केंद्र सरकार और फौज के इस हस्तक्षेप के विरोध स्वरूप छुट्टी ले ली। पाकिस्तान की पुलिस ने इतना बागी और साहसी तेवर शायद पहली बार दिखाया है। पूरे कराची में उथल-पुथल मच गई। लोगों ने कई सरकारी दफ्तरों और फौजी ठिकानों में आग लगा दी। किसी बड़े फौजी के एक विशाल मॉल को भी नेस्तोनाबूद कर दिया। 

अफवाह है कि फौज और पुलिस की मुठभेड़ में भी कई लोग मारे गए हैं लेकिन संतोष का विषय है कि सेनापति कमर जावेद बाजवा ने सारे मामले पर जांच बिठा दी है और कराची के पुलिस अफसरों ने अपनी छुट्टी की अर्जियां भी वापस ले ली हैं। यह मामला यहीं खत्म हो जाए तो अच्छा है, वरना यह सिंध के अलगाव को तूल दे सकता है। 

यूं भी सिंधी, बलूच और पठान लोगों के बीच अलगाववादी आंदोलन की चिंगारियां 1947 से ही सुलग रही हैं। इमरान को बचाते-बचाते कहीं पाकिस्तान का बचना ही मुश्किल में न पड़ जाए। यदि पाकिस्तान टूटकर चार-पांच देशों में बंट जाए तो दक्षिण एशिया की मुसीबतें काफी बढ़ सकती हैं। कराची की घटनाओं के कारण विपक्षी आंदोलन को नई थपकी मिली है।-डा.वैदप्रताप वैदिक

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