पी.एम.सी. बैंक का पतन तथा ‘चतुर’ आर.बी.आई.

Friday, Nov 15, 2019 - 02:50 AM (IST)

पी.एम.सी. बैंक के पतन को देख चुके आर.बी.आई. ने इसका कैसे नियंत्रण किया तथा सरकार ने इस मुद्दे से कैसे निपटा, यह भी देख लिया।  आज मैंने ध्यान दिया कि यहां पर निष्पक्षता की समझ नहीं। यह या तो बहुमत बनाम अल्पसंख्यक है जहां पर बहुमत की आवाज सुनी जाती है या फिर यह आंकड़ों का खेल है कि कैसे कितने वोटर प्रभावित होते हैं या उनकी गिनती को कैसे खुश रखा जाता है। वोट बैंक को ढीला नहीं पडऩे दिया जाता। मैंने चतुर कूटनीति देखी जिससे यहां पर पी.एम.सी. बैंक से कैसे निपटा गया। जमा पर ध्यान केन्द्रित करने की बजाय आर.बी.आई. अपना ध्यान जमाकत्र्ताओं पर कर रही है। 

अब मुझे इसका विस्तृत रूप से उल्लेख करना होगा। एक हाऊसिंग सोसाइटी में प्रत्येक सदस्य चाहे उसके पास छोटा या फिर बड़ा फ्लैट हो, वह बराबरी का हिस्सेदार होता है। मगर वह अपने फ्लैट के वर्ग फुट के हिसाब से मासिक अनुपातिक देनदारी देने के लिए मजबूर होता है, जिसका मतलब है कि उसकी जिम्मेदारी निवेश के बराबर होती है।

यदि किसी एक मामले में सोसाइटी को लाभ पहुंचता है जैसा कि हमने मुम्बई के नरीमन प्वाइंट की कुछ सोसाइटियों में देखा है, तब हर सदस्य के फ्लैट के अनुरूप निवेश को अनुपातिक हिसाब से सीधे तौर पर बांट दिया जाता है। मगर इस बैंक के मामले में पी.एम.सी. के निवेशकों को उसकी बंद पड़ी बचतों के प्रतिशत के हिसाब से देने की बजाय आर.बी.आई. चतुरता से बराबर की राशि बांट रहा है जिसका मतलब चाहे आपने एक करोड़ या फिर मात्र 10,000 रुपए निवेश किए हैं, आप वही राशि वापस पाओगे। 

पूर्णत: अनुचित
यदि आर.बी.आई. पी.एम.सी. बैंक की वित्तीय हालत देखने के बाद यह निर्णय लेता है कि वह निवेशकों को 500 करोड़ वापस देगा, तब पैसे को निवेशक के निवेश की राशि के अनुपात में बांटा जाना चाहिए। जिस किसी ने अपना नकद पैसे का 10 लाख निवेश किया हो तब क्या उसे एक लाख वापस मिलना चाहिए या फिर वह निवेशक जिन्होंने 10,000 जमा किया है उसको उसकी निवेश की राशि पर अनुपातिक हिसाब के बराबर पैसा वापस दिया जाए। इस तरह प्रत्येक निवेशक को बराबरी के हिसाब से दिया गया होगा। आज मैं देखता हूं कि प्रभावित लोग बहुत कम प्रदर्शन कर रहे हैं तथा अपना पैसा वापस पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। 

मेरा मानना है कि आर.बी.आई. उसी के हिसाब से यह सब देख रहा है। यदि इन लोगों को 10,000 और दे दिए जाएं तो 50 प्रतिशत लोग तो कल को दिखेंगे भी नहीं। यहां ऐसी ही नीति सभी के लिए इस्तेमाल होती है। सड़क पर पड़े गड्ढों को मोटर चालकों जोकि अल्पसंख्या में हैं, के लिए भरा नहीं जाता मगर जब धार्मिक उत्सवों के दौरान सड़कों पर वोट बैंक नजर आता है तब इनकी मुरम्मत भी हो जाती है। यही एक उचित रास्ता है और यह चतुर भी नहीं लगता। हमारे देश में नेतागण तथा अन्य निष्पक्षता के स्थान पर चालाकी और धूर्तता का इस्तेमाल करते हैं।-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स
    

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