ऑक्सफोर्ड की छठी रोड्स छात्रवृत्ति की घोषणा एक अच्छा कदम

punjabkesari.in Friday, Oct 04, 2024 - 05:56 AM (IST)

भारतीय पुलिस सेवा के 1953 बैच, जिससे मैं संबंधित हूं, को यह घोषणा करते हुए गर्व हो रहा है कि जिस अधिकारी ने ज्वाइङ्क्षनग के समय बैच में शीर्ष स्थान प्राप्त किया उसका नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के साथ ही  ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रोड्स छात्रवृत्ति ट्रस्ट के रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। हमारे पूर्व राष्ट्रपति की पोती सौम्या और मेरे बैचमेट गोविंदराजन के बेटे मुकंद ने मिलकर भारतीय छात्रों के लिए छठी रोड्स छात्रवृत्ति की स्थापना के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय को एक अच्छी खासी रकम का योगदान दिया है।

भारतीय छात्रों के लिए हर साल 5 रोड्स छात्रवृत्तियां उपलब्ध थीं। मुकंद और उनकी पत्नी सौम्या द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति छठी होगी। स्कॉलर का चयन 2025 में किसी समय किया जाएगा और वह 2026 में ऑक्सफोर्ड में शामिल हो जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता डा. मेनका गुरुस्वामी, जो लोगों के मुद्दों के लिए लडऩे के लिए जानी जाती हैं, ऑक्सफोर्ड के रोड्स स्कॉलरशिप ट्रस्ट के भारतीय चैप्टर की अध्यक्ष हैं। मुकंद खुद भी रोड्स स्कॉलर थे। वह उसी समय ऑक्सफोर्ड में नामांकित हुए थे, जब सौम्या एक अन्य छात्रवृत्ति पर वहां पढ़ रही थीं। उनकी मुलाकात ऑक्सफोर्ड के कैंपस में हुई और बाद में उन्होंने शादी कर ली। 

मुकंद टाटा प्रशासनिक सेवा में शामिल हो गए और जल्दी ही अपनी पहचान बना ली। रतन टाटा ने उन्हें चेयरमैन के कार्यालय में अपने प्रमुख सहयोगी के रूप में चुना। रतन के सेवानिवृत्त होने के कुछ साल बाद मुकंद ने टाटा ग्रुप छोड़ दिया और अपनी खुद की कंसल्टैंसी फर्म ई क्यूब इन्वैस्टमैंट एडवाइजर्स शुरू की। जब मुकंद रतन टाटा के प्रमुख सहयोगी थे, तब मैंने उनसे संपर्क किया। बाद में हम अक्सर मिलते रहे। जब मैं सौम्या से मिला, तो वह एक विदेशी बैंक में कार्यरत थीं। बाद में, उन्होंने अपनी खुद की कंसल्टैंसी फर्म वेकफील्ड एडवाइजर्स की स्थापना की, जो न केवल एक बड़ी सफलता है, बल्कि सामाजिक और धर्मार्थ कार्यों में भी मदद करती है। 2021 में फोब्र्स इंडिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में उनका नाम शामिल है।

मुकंद के पिता गोविंदराजन आई.पी.एस. के मेरे बैच में टॉपर थे। अगर उन्होंने 1953 में आई.पी.एस. में शामिल होने से परहेज किया होता तो मुझे लगता है कि वे अगले साल की आई.ए.एस. परीक्षा में टॉपर होते और 1954 के आई.ए.एस. बैच के टॉपर के रूप में शामिल होते। गोविंदराजन संयुक्त खुफिया समिति के अध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए, एक पद जिसे एन.एस.ए. (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) के कार्यालय में शामिल कर लिया गया है। उन्होंने अपनी सेवा के केवल पहले 2 वर्षों के लिए ही पुलिस की वर्दी पहनी थी, जिसमें से एक वर्ष उन्होंने 36 अन्य प्रोबेशनर्स के साथ माऊंट आबू में प्रशिक्षण के तहत बिताया था। उनके बड़े बेटे रघुराम भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर बने।

भारतीय छात्रों के लिए छठी रोड्स छात्रवृत्ति राधाकृष्णन और राजन परिवारों द्वारा प्रायोजित है। इसे रोड्स ट्रस्ट के भारतीय अध्याय द्वारा प्रशासित किया जाएगा। स्थायीता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कुछ अतिरिक्त धनराशि एक अमरीकी रोड्स विद्वान और उनकी पत्नी के साथ-साथ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा भी प्रदान की गई थी। बिल क्लिंटन संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति चुने जाने से पहले रोड्स विद्वान थे। हाल ही में दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी आतिशी रोड्स विद्वान थीं। मेरे अपने गोवा ईसाई समुदाय से संबंधित पीटर लिन सिनाई रोड्स विद्वान थे।

माऊंट आबू के केंद्रीय पुलिस प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्रोबेशनर के रूप में, अंग्रेजी भाषा में एक भावी राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कवि 11वें नियमित भर्ती बैच में शामिल हुए। वह केकी दारूवाला थे, जो छोटे, लेकिन उल्लेखनीय, पारसी समुदाय से आते थे। केकी का परिवार लाहौर से भारत आया था। उन्हें उत्तर प्रदेश कैडर आबंटित किया गया था, लेकिन गोविंदराजन की तरह, उन्हें ईयरमार्किंग स्कीम के तहत देश के इंटैलीजैंस ब्यूरो (आई.बी.) में भेज दिया गया था।

1962 में खुफिया एजैंसी के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ ) को आई.बी. से अलग कर दिया गया और केवल बाहरी खुफिया जानकारी का काम सौंपा गया। गोविंदराजन और केकी दारूवाला दोनों को रॉ में ड्यूटी दी गई थी, जब इसका गठन हुआ था। मेरे 37 अधिकारियों के बैच में से 4 का चयन ईयरमार्किंग स्कीम में हुआ। बैच के 2 टॉपर गोविंदराजन और आनंद वर्मा को पहले आई.बी. और बाद में रॉ में भेजा गया। केकी दारूवाला का पिछले हफ्ते दिल्ली में निधन हो गया। कवियों की जमात ने उनके निधन पर व्यापक शोक व्यक्त किया, खासकर उन लोगों ने जो अंग्रेजी भाषा को अपने संचार माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते थे।

प्रिंट मीडिया में प्रकाशित दो श्रद्धांजलियों ने मुझे सचमुच भावुक कर दिया। वे रचनाएं आई.पी.एस. में उनके सहयोगियों द्वारा नहीं, बल्कि संस्कृति और साहित्य के क्षेत्र में सेवारत जाने-माने व्यक्तियों द्वारा लिखी गई थीं। आई.पी.एस. बिरादरी भी उनके निधन पर शोक व्यक्त करती है। उन्होंने अपनी कविताओं से सेवा को गौरवान्वित किया। मुझे इस बात ने बहुत प्रभावित किया कि एक आई.पी.एस. अधिकारी, जो गुमनाम हैसियत से देश की सेवा कर रहा था, दूसरे क्षेत्र में उत्कृष्टता के कारण लोगों की नजरों में आया। -जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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