एंटीबायोटिक का अधिक इस्तेमाल घटा रहा रोग प्रतिरोधक

punjabkesari.in Friday, Mar 24, 2023 - 06:12 AM (IST)

बीते 2 सालों से दुनिया कोरोना वायरस के कहर को झेल रही थी। जहां धीरे-धीरे लोग इस महामारी से उभरने लगे हैं, वहीं आए दिन कोरोना के नए वेरिएंट कई देशों के लिए मुसीबत बनते रहे हैं जिसके कारण यह महामारी लोगों को न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तौर पर भी कमजोर कर रही है। सुपरबग एक तरह से बैक्टीरिया वायरस और पैरासाइट का एक स्ट्रेन है जोकि एंटीबायोटिक के दुरुपयोग के कारण पैदा होता है। सुपरबग बनने के बाद यह मौजूद किसी भी प्रकार की दवाइयों से मरता नहीं है और कई मौकों पर लोगों की जान तक ले लेता है। 

जब बैक्टीरिया वायरस फंगस या पैरासाइट समय के साथ बदल जाते हैं तो उस वक्त उन पर दवा असर करना बंद कर देती है। इससे उनमें एक ‘एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टैंस’ पैदा होता है जिसकी वजह से संक्रमण का इलाज काफी मुश्किल हो जाता है। इसे आसान भाषा में समझें तो सुपरबग उस तरह की स्थिति है जब मरीज के शरीर में मौजूद बैक्टीरिया वायरस और पैरासाइट के सामने दवा भी बेअसर हो जाती है। 

डॉक्टरों के अनुसार फ्लू जैसे वायरल संक्रमण होने पर एंटीबायोटिक लेने पर सुपरबग बनने के अधिक आसार रहते हैं जो धीरे-धीरे दूसरे इंसानों को भी संक्रमित कर सकता है। हमारे देश में भी निमोनिया और सैप्टीसीमिया के इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाली दवा ‘कारपीनेम’ नामक मैडीसिन अब बैक्टीरिया पर बेअसर हो चुकी है जिसकी वजह से इन दवाओं को बनाए जाने पर रोक लगा दी गई है। 

सुपरबग एक से दूसरे इंसान में त्वचा स्पर्श होने से तथा घाव होने से फैलता है। एक बार सुपरबग के इंसान के शरीर में पाए जाने पर मरीज पर दवाएं असर करना बंद कर देती हैं। यह वायरस इतना भयंकर है कि साल 2019 में दुनिया भर में 12 लाख से ज्यादा मौतें एंटीबायोटिक रेजिस्टैंस के चलते हुई थीं। मरीज बैक्टीरियल संक्रमण का शिकार थे लेकिन एंटीबायोटिक ने उन पर असर करना बंद कर दिया। 

दरअसल एंटीबायोटिक दवाओं का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल और डाक्टर की सलाह के बिना मनमाने तरीके से इसे लेना आज के जमाने में सबसे बड़ा खतरा है। इससे सुपरबग बनते हैं जिसके संक्रमण का कोई इलाज नहीं है। मैडीकल जर्नल लैंसेट ने एंटीबायोटिक दवाओं पर अपनी रिपोर्ट में भारत के बारे में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने रखे हैं। जिसमें बताया गया है कि भारत के लोग भेलपुड़ी और चाट की तरह एंटीबायोटिक दवाओं का बिना सोचे-समझे जरूरत से ज्यादा सेवन करते हैं। इसकी वजह से बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक रेजिस्टैंस बढ़ रहा है जिससे वे पहले से ज्यादा ताकतवर हो रहे हैं, क्योंकि एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक सेवन से बैक्टीरिया मरते नहीं हैं बल्कि बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं की आदत पड़ जाती  है। 

सामान्य तौर पर एंटीबायोटिक दवाएं बैक्टीरिया को मारकर ‘बैक्टीरियल इन्फैक्शन’ को खत्म करने का काम करती हैं। कोरोना काल में भारत के लोगों ने मनमाने ढंग से एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया है। कोरोना काल में ‘एजीथ्रोमाइसिन’ नाम की एंटीबायोटिक दवा को लोगों ने सबसे ज्यादा लिया है। एजीथ्रोमाइसिन ‘ब्रॉड स्पैक्ट्रम’ की एक एंटीबायोटिक दवा है जो कई बीमारियों के इलाज में काम आती है और यह दवा खासतौर पर गले और फेफड़ों के इंफैक्शन के लिए दी जाती है।

भारत में एंटीबायोटिक दवाओं के 1,098 अलग-अलग फार्मूलेशन के 10,100 ब्रांड्स इन्हें बनाते हैं और इसमें से सिर्फ 46 प्रतिशत ब्रांड्स ही दवाओं को मंजूरी देने वाली केंद्रीय एजैंसी से मान्यता प्राप्त हैं। कई दवाओं को केंद्र से मंजूरी भी नहीं मिलती इसके बावजूद ये दवा कंपनियां राज्य सरकार से मान्यता ले लेती हैं और मनमाने ढंग से दवाओं को बेचने लगती हैं। मैडीकल जर्नल लैंसेट में साफ तौर पर बताया गया है कि मौजूदा दवाओं का समझदारी से और थोड़ा रुक कर इस्तेमाल करना चाहिए ताकि इंसानों की अपनी इम्युनिटी भी बीमारी से मुकाबला कर सके। 

‘स्कॉलर एकैडमिक मैडीकल जर्नल ऑफ फार्मेसी’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 15 सालों में दुनिया भर में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल 65 प्रतिशत तक बढ़ गया है। कोरोना महामारी से बचने और अपने कमजोर इम्युनिटी से डरे लोग अब सामान्य सर्दी-खांसी में भी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल कर रहे हैं।  एंटीबायोटिक के अधिक इस्तेमाल से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है।-ऋषभ मिश्रा 
 


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