कामकाज की हमारी शैली पुराने ढर्रे की

punjabkesari.in Saturday, Jul 02, 2022 - 04:34 AM (IST)

देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि वह अपने सवा अरब से भी अधिक नागरिकों को उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कैसे सक्षम बनाए। कई क्षेत्रों में हमारे कामकाज की हमारी शैली पुराने ढर्रे की ही है जो हमारे लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधक बनी हुई है। 

आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान युग में खासतौर से हमारी नौकरशाही का पुराना रवैया नहीं बदल रहा है जो हर काम में सिर्फ अड़ंगा लगाना ही जानती है। तेजी से बदलती दुनिया में अब नौकरशाही की भूमिका अवरोधक की जगह उत्प्रेरक की हो गई है। पर वह सुधरने के लिए तैयार नहीं है। उदारीकरण की ठंडी हवा ने भारत के लोगों में एक नई सोच का संचार किया। अपने पूर्वजों की तरह लकीर के फकीर बनकर उसी पुराने ढर्रे पर चलने से लोगों को संतुष्टि नहीं मिल रही थी, उनकी महत्वाकांक्षाएं बढऩे लगी थीं। अब उन्हें एक ऐसी व्यवस्था की चाहत थी जो गरीबी से बाहर निकलने की उनकी कोशिशों में उन्हें सहयोग दे और उनके साथ-साथ उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को भी सुनिश्चित करे। 

अपने निर्वाचित राजनीतिज्ञों से लोग यह आशा रखते हैं कि वह उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए एक स्प्रिंगबोर्ड (छलांग मारने का तख्ता) प्रदान करें। जनता उनसे एक ऐसे वातावरण के निर्माण की अपेक्षा करती है जहां बच्चे ऊंची और बढिय़ा शिक्षा हासिल करने के लिए स्कूल जाएं, जहां हर किसी को सर्वोत्तम स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध हों, जहां व्यवसायी सफलता की हर मुमकिन ऊंचाइयों को छू सकें और हर योग्य व्यक्ति के लिए अच्छी कमाई वाले रोजगारों के अवसर पैदा कर सकें। लोग अपनी सरकार से अंतिम सहारा उपलब्ध कराने के साथ-साथ समाज की छलनी से छिटक कर गिरते बदकिस्मत लोगों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा जाल के निर्माण की आशा करते हैं। लेकिन अब हम एक ‘माई-बाप सरकार’ के लिए निवेदक बन कर नहीं रहना चाहते। 

हमें अब एक ऐसी सरकार चाहिए जो हमारी संस्थाओं की ताकत, हमारे बाजारों की शक्ति के साथ-साथ उच्च स्तरीय गुणवत्ता समाधानों का निर्माण करने वाले लोगों के परिश्रम का लाभ उठाए। जातीय असमानताओं, धार्मिक मतभेद और आरक्षण की छाप वाली भारतीय राजनीति, अतीत की राजनीति है। भविष्य की राजनीति एक सवा अरब आकांक्षाओं को पूरा करने की राजनीति होगी, जिसमें असफलता का अर्थ सर्वनाश है। 

भारतीय समाज बेहद जटिल है, जो कि करोड़ों अमीर-गरीब, शहरी, ग्रामीण, बहुजातीय, बहुभाषीय लघु भारतों को मिला कर बना है। सही मायने में एक लोकतांत्रिक समाज वह है जिसमें इन करोड़ों ‘लघु भारतों’ के प्रत्येक नागरिक को मुख्यधारा में शामिल किया गया हो, हर एक नागरिक सरकारी सेवाआें से लाभ प्राप्त करने में समर्थ और देश के विकास में हिस्सा लेने में सक्षम हो। उपयोग में आसान, भौगोलिक रूप से स्वतंत्र और कम लागत वाले समाधान प्रदान करते हुए हमें देश की समस्याआें को बड़े पैमाने पर, तेजी से सुलझाने की आवश्यकता है। 

भारत जैसे विकासशील देश के लिए प्रौद्योगिकी का सबसे बड़ा गुण सस्ते समाधान उपलब्ध कराने की क्षमता है जो कि हमारे लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इस दृष्टिकोण ने पहले भी कई बार अपनी इस श्रेष्ठता को सिद्ध किया है। उदाहरण के लिए पहले किसी बैंक से पैसे निकलवाने में दस मिनट से एक घंटे तक का समय लगता था, जिसके लिए बैंक को लगभग 50 रुपए प्रोसैसिंग फीस (काम करने का शुल्क) लगती थी, लेकिन ए.टी.एम (स्वचालित टेलर मशीन) के आने से अब वही काम महज पांच मिनट और 15 रुपए की कीमत में पूरा हो जाता है। 

भूगोल की सीमाओं से ऊंचा उठने की क्षमता, प्रौद्योगिकी संचालित समाधानों की एक अन्य खासियत है जो इसे बेहद आकर्षक बनाती है। आज, हमारा देश एक प्रगतिशील राष्ट्र है। पिछले दो दशकों में भारत की शहरी जनसंख्या में विस्फोट हुआ है जिसके लिए शिक्षा, रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में गांवों और छोटे शहरों से लगातार पलायन हो रहे लोगों की बाढ़ जिम्मेदार है।

पिछली गणना के समय भारत के भीतर स्थानांतरण करने वालों की संख्या 30 करोड़ से अधिक थी। प्रवास की इस घातीय दर के साथ तालमेल रखने में प्रौद्योगिकी कामयाब रही है। मिसाल के तौर पर आंध्र प्रदेश के किसी गांव में पंजीकृत किया गया एक मोबाइल फोन कनैक्शन अब बेंगलुरु में भी सुचारू रूप से काम करता है। या फिर हो सकता है कि आपका बैंक खाता मुंबई में खुला हो, लेकिन अब आप अपने बैंक बैलेंस की जांच देश के किसी भी हिस्से में कर सकते हैं। 

‘रोजमर्रा का काम’ वाली सामान्य नियमावली को अब खिड़की से बाहर फैंक देना चाहिए। उन अधिकारियों को मिला कर बनी नौकरशाही जो सिर्फ प्रशासनिक प्रक्रिया विशेषज्ञ हैं, उतनी बड़ी और जटिल परियोजनाओं को नहीं संभाल सकेगी जिनसे हमारी सरकार को निपटने की आवश्यकता है। हालांंकि इनमें कई प्रतिभावान, मेहनती और ईमानदार अधिकारी भी हैं, इसलिए हमें व्यवस्था की खामियों को भी समझना होगा। जैसे कि एक अटल पदानुक्रम जो वरिष्ठता के अनुसार तरक्की देता है। क्षेत्रीय लड़ाइयां, उलझनों के प्रति पूर्वाग्रह, कम अवधि का कार्यकाल, अल्पकालीन दृष्टि बनाता है। यह सोच कि बड़े बजट के साथ अधिकाधिक लोगों पर हुकुम चलाना ही असली ताकत है। अब एेसी प्रशासनिक व्यवस्था तेजी से बदलती हुई दुनिया में जनता की छाती पर बोझ बन गई है। अब इसे बदलना ही होगा।-निरंकार सिंह
 


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