नशे के दरिया में डूब रहा हमारा पंजाब

punjabkesari.in Saturday, Sep 16, 2023 - 04:54 AM (IST)

अपनी समृद्ध परम्पराओं, आतिथ्य एवं भरपूर खाद्य क्षमता के लिए प्रख्यात पंजाब विगत कई वर्षों से नशे की समस्या से जूझ रहा है। सरकारें बदलीं मगर स्थिति बद से बदतर होती चली गई। बहरहाल, आलम यह है कि नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) द्वारा जारी आंकड़े कहते हैं, विगत डेढ़ वर्ष में 310 लोग नशे के कारण बेमौत मारे गए। अकेले मालवा क्षेत्र में 222 मौतें दर्ज की गईं, जोकि प्रांत में सर्वाधिक रहीं। 

इस संदर्भ में मोगा, फिरोजपुर, लुधियाना तथा बठिंडा अति संवेदनशील क्षेत्रों में आते हैं। 2022-2023 के मध्य इन चार जिलों में नशे के कारण 235 लोगों को जान गंवानी पड़ी। जालंधर, अमृतसर, गुरदासपुर तथा तरनतारन के हालात भी अच्छे नहीं कहे जा सकते। हाल ही में अमृतसर, तरनतारन तथा जालंधर से संबद्ध 12 से अधिक युवाओं की जिंदगी को नशे की लत ने लील लिया। गत 20 महीनों के दौरान राज्य में 210 लोग नशाजनित मृत्यु का शिकार हो चुके हैं। 2017 से 2021 के दौरान मृतकों में शामिल 136 लोग 18 से 30 आयुवर्ग के मध्य आते हैं। 3 मृत्यु मामलों में तो नशा करने वालों की उम्र महज 14 से 18 वर्ष के बीच रही। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश में औसतन हर दूसरे दिन नशे से एक मौत हो रही है। पिछले 7 वर्षों के दौरान पंजाब में नशे के चलते कुल 544 मौतें दर्ज की गईं। हालांकि, अनेक मामलों में जानकारी अनुपलब्ध होने की आशंका भी है। 

पुलिस सूत्रों की मानें तो वर्तमान में प्रदेश के 25 लाख से अधिक लोग नशे की चपेट में हैं। स्थिति की गंभीरता को आंकते हुए पंजाब सरकार के निर्देशानुसार, पुलिस विभाग ने नशे के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाने की घोषणाएं की हैं। सूचना के मुताबिक 14,998 से अधिक लोगों के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार किया गया। उनसे नशीला पदार्थ बरामद होने के समाचार भी प्रकाश में आए। पंजाब सरकार द्वारा नशे की रोकथाम हेतु एस.टी.एफ. का गठन करने सहित हर 10 किलोमीटर की दूरी पर एक नशा मुक्ति केंद्र स्थापित करने का आश्वासन भी दिया गया। विज्ञप्ति अनुसार, राज्य में 208 नशा मुक्ति  केंद्र हैं जबकि 16 केंद्र जेलों में संचालित हैं। 

नि:संदेह, नशा उन्मूलन के दृष्टिगत पंजाब सरकार एवं पुलिस के सामूहिक प्रयास सराहनीय हैं, केंद्र सरकारों के समर्थन में अभियान अधिक सशक्त होने की आशा भी बलवती हुई है किंतु बावजूद इसके हम सतही स्थिति से कदापि मुख नहीं मोड़ सकते। इस संदर्भ में नित्यप्रति प्रकाशित होने वाले समाचार हृदय को विचलित कर देते हैं। नशा सेवन की मुंह बोलती तस्वीरें स्वयंमेव मौजूदा हालात का कटु सत्य बयान कर जाती हैं कि समस्या की विकरालता के मद्देनजर व्यवस्थात्मक प्रयास नाकाफी हैं। दरअसल, पंजाब का सीमावर्ती क्षेत्र होना भी नशे की बहुतायत में एक मुख्य कारण है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘गोल्डन क्रेसेट’ नाम से सक्रिय नशे का सबसे बड़ा स्रोत व्यवस्थात्मक खामियों के चलते पंजाब तक अपनी गैर-कानूनी पहुंच बनाने में कामयाब हो जाता है। इसकी सबसे बड़ी खेप ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से आती है। 

समुद्री मार्गों तथा पड़ोसी राज्यों के माध्यम से आया नशा भी रिश्वतखोरी की छत्रछाया में पंजाब की सीमाओं को सरलतापूर्वक पार कर लेता है। भारी मांग के चलते पंजाब में सक्रिय तस्कर ग्रुप राजनीतिक पराश्रय अथवा भ्रष्टतंत्र की मिलीभगत से इस सप्लाई चेन को टूटने ही नहीं देते। प्रांत में फैलते सिंथैटिक ड्रग निर्माण के अवैध धंधों से परिस्थितियां और भी विकट होती जा रही हैं। अमूमन देखने में आया है कि जिस परिवार का कोई सदस्य नशे में संलिप्त है, वहां भावी पीढिय़ों के नशाग्रस्त होने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं। उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह कुमार्गगामी बनकर समूचे समाज के लिए भयावह सिद्ध होता है। समाचार पत्र अक्सर ऐसे मामले उजागर करते हैं जहां नशे की लत पूरी करने हेतु न केवल स्वजनों को प्रताडि़त किया गया अपितु घर के दर-ओ-दरवाजे तक बेच दिए गए। यही नहीं समाज में चोरी-चकारी, छीनाझपटी से लेकर ङ्क्षहसक वारदातों तक को अंजाम दिया गया। 

वास्तव में, नशे की लत मानसिक रुग्णता से अधिक कुछ नहीं। समाज, परिवार तथा चिकित्सक के वांछित सहयोग से रोगी की इच्छाशक्ति  को सुदृढ़ बनाया जाए तो निश्चय ही नशे के दुष्चक्र से बाहर निकला जा सकता है। पंजाब के ही कुछ गांव इस संदर्भ में अनुकरणीय उदाहरण हैं, जहां गांववासियों ने ग्राम को नशामुक्त बनाने का बीड़ा उठाया और इसमें सफल भी हुए। महज टीम बनाकर, जबरन नशा मुक्ति  केंद्र पहुंचा देने से ऐच्छिक परिणाम आने की आकांक्षा रखना नितांत निराधार है। समस्या के राजनीतिकरण की अपेक्षा इसके समूल विनाश हेतु प्रभावी रणनीतियां बनें तो नि:संदेह नशे के इस उफनते दरिया को काबू किया जा सकता है। बेकार बैठे युवाओं की ऊर्जा को उपयुक्त रोजगार में व्यवस्थित कर दिया जाए तो जहां व्यस्त रहने के कारण नशे के प्रति उनका रुझान कम होगा, वहीं प्रांत की बेहतरी के लिए नए अवसर भी सृजित होंगे। हर समस्या का निदान संभव है; अपेक्षा है तो परिवार, समाज व व्यवस्था के सारगर्भित सहयोग की।-दीपिका अरोड़ा
  


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