हंसी का पात्र बनते जा रहे हमारे कानून

Thursday, Mar 25, 2021 - 04:31 AM (IST)

किसी भी देश के लिए यह गौरव वाली बात होती है कि उस देश की जनता उसकी महानता के गीत गाए। इसी तरह शुरू से ही कहते और सुनते आ रहे हैं कि ‘मेरा देश महान’। पर महानता कुछ कारणों से फीकी पड़ती जा रही है जोकि बहुत अफसोसजनक बात है। भारत की महानता को चार चांद लगाता है यहां का संविधान जोकि विभिन्न देशों से उनकी खूबियां देखते हुए लिया गया तथा इसको बनाया गया। इसको बनाने के लिए डा. बी.आर. अम्बेदकर को 2 साल 11 महीने और 17 दिन की कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उन्होंने लोगों को तोहफा दिया कि उनके हित, अधिकार सुरक्षित रहें। मगर आहिस्ता आहिस्ता बनाए गए कानूनों में मिलावट होते हुए हमारा यह सिस्टम तथा कानूनों का स्तर गिरता जा रहा है। 

कानूनों को लोगों की सुरक्षा तथा उनके हितों का संरक्षण करने के लिए बनाया गया। मगर आज के समय में यह कानून ही लोक विरोधी प्रतीत होते हैं। यदि किसी की दुर्घटना हो जाती है तो पहले शिकार हुए व्यक्ति पर पुलिस की ओर से दबाव डाला जाता है कि समझौता हो जाए क्योंकि पुलिस की रिश्वतखोरी वाली कारगुजारी से कोई अपरिचित नहीं है। फिर भी यदि पीड़ित व्यक्ति कार्रवाई करता है तो उसका वाहन जब्त कर लिया जाता है। जितने समय तक कार्रवाई खत्म नहीं होती उतनी देर उसका वाहन पीड़ित व्यक्ति को नहीं मिलता तथा न्यायिक प्रणाली और अदालतों में चलते केसों के बारे में हर कोई जानता है कि तारीखों के बिना कुछ हासिल ही नहीं होता। 

केस को लड़ते-लड़ते वकील भी समझौते की सलाह देते हैं ताकि उनकी तय फीस जल्द ही पूरी हो जाए। फिर भी कोई पीड़ित इन सब बातों के आगे डटा रहता है तथा उसकी झोली में पड़ती है अदालतों की धूल और सालों की कार्रवाई। जब तक फैसला नहीं होता उस समय तक उसका जब्त हुआ वाहन थानों में खड़ा जंगाल का शिकार हो जाता है। यदि किसी व्यक्ति का सामान किसी चोर द्वारा चोरी कर लिया जाता है और वह बाद में पकड़ा जाता है तो उस मुजरिम पर कार्रवाई करने के समय उसका सामान जब्त कर लिया जाता है तथा जिस व्यक्ति का सामान चोरी हुआ है उसको इंतजार करना पड़ता है कि कब कार्रवाई होगी और उसका सामान उसको मिलेगा। ऐसी बातों से डरकर ज्यादातर लोग कार्रवाई करने से गुरेज करते हैं। इससे चोरों तथा लुटेरों को शह मिलती है। हमारा सिस्टम ही चोरों और डाकुओं को चोरी-डिकैती करने के लिए प्रेरित करता है। 

चलती हुई कारों के शीशों के ऊपर अंडे फैंके जाते हैं और उनके टूटने से शीशे में से देखना ही चालक को मुश्किल हो जाता है। जब वह इसको साफ करने के लिए रुकता है तो उसे लूट लिया जाता है। किसी व्यक्ति को उसके टायर पंक्चर हो जाने का संकेत देकर जब चालक द्वारा गाड़ी चैक करने के लिए उतारा जाता है तो वाहन का दरवाजा खोल कर सामान चोरी कर चोर फरार हो जाता है। ऐसे समाचारों से इंसानियत से भरोसा उठ जाता है। सिर्फ कार्रवाई या फिर यदि अपराधी को पकड़ लिया जाता है तो बाद में अदालतों से उसे जमानत मिल जाती है। अपराधी फरार हो जाता है और बाद में पेश न होने की सूरत में सिर्फ और सिर्फ कागजी कार्रवाई रह जाती है। चोर-लुटेरों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। 

इसी तरह वर्ष 2019 में विवाह समागम के मौके पर गुरुद्वारा साहिब में लड़की के माता जी के कपड़ों पर चटनी उंडेली गई जब वह कपड़े बदल कर आनंद कारज के लिए गुरुद्वारा में पहुंची तब देरी होने के कारण अफरा-तफरी में उनका पर्स चोरी कर लिया गया जिसमें नकदी और सोना भी था। भागदौड़ करने पर चोरी करने वाली लड़की तथा उसके माता-पिता को गिरफ्तार कर लिया गया। जब उन्हें अदालत में पेश किया गया तो कुछ समय के उपरांत उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। लड़की तथा उसकी माता फरार हो गई तथा वह परिवार जिनका नुक्सान हुआ था, आज भी इस सिस्टम से उम्मीद लगाए बैठा है कि शायद उनको कहीं न्याय मिल जाए। 

यह पुलिस थाने, ये अदालतें, यह न्याय प्रणाली सब एक आडम्बर प्रतीत होती हैं। हमारे सिस्टम का इतना बुरा हाल हो गया है कि किसी की कोई भी चीज गुम हो जाने पर जल्द ही रिपोर्ट लिखाने का साहस नहीं होता। समाज में हो रही घटनाओं को जब समाचार पत्रों में पढ़ा जाता है तो हैरानी होती है कि आखिर हमारे देश में यह सब क्या हो रहा है? 

किसी एक्सीडैंट में लोगों की जान जा रही है क्योंकि लोग सड़कों पर जिम्मेदारी न समझते हुए सड़कों पर बस खेल ही खेलते नजर आते हैं और प्रशासन अपनी आंखों पर पट्टी बांध कर देख रहा होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि आजकल के नौजवानों के पास देसी कट्टों इत्यादि का आ जाना आम बात हो गई है। चिट्टे जैसे नशों का आम हो जाना तथा नवयुवकों का जान से हाथ धो देना आम बात है। आजकल के सिस्टम को देखते हुए बहू-बेटियों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो चुका है। उन्हें तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि हमारा गंदा तथा घटिया कानून वहशी दरिंदों को उत्साहित करता है। 

दरिंदे छोटी बच्चियों तक को नहीं छोड़ते। हर बाप उस समय तक तनावग्रस्त रहता है जब तक कि उसकी बेटी सही-सलामत घर नहीं लौट आती।  हमारे सिस्टम को साफ करने की जरूरत है। इसको अच्छे ढंग से चलाने के लिए बेशक इसको सुधारने के लिए संविधान में 104 बार संशोधन किया गया मगर कहीं न कहीं कानूनों तथा संशोधनों को निजी फायदों के लिए उनका इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो सब खत्म हो जाएगा।-पुष्पिंद्र जीत सिंह भलूरिया
 

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