स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा

punjabkesari.in Saturday, Oct 16, 2021 - 11:31 AM (IST)

वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15 अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदू था। हम सब जानते हैं कि हमें यह स्वाधीनता रातों-रात नहीं मिली । स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो, इसकी भारत की परंपरा के अनुसार समान-सी कल्पनाएं मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जाति-वर्गों  से निकले वीरों ने तपस्या, त्याग और बलिदान के हिमालय खड़े किए; दासता के दंश को झेलता समाज भी एक साथ उनके साथ खड़ा रहा; तब शांतिपूर्ण सत्याग्रह से लेकर सशस्त्र संघर्ष तक सारे पथ स्वाधीनता के पड़ाव तक पहुंच पाए। 

सामाजिक समरसता
एकात्म व अखंड राष्ट्र की पूर्व शर्त समताधिष्ठित भेदरहित समाज का विद्यमान होना है। इस कार्य में बाधक बनती जातिगत विषमता की समस्या हमारे देश की पुरानी समस्या है। इस को ठीक करने के लिए अनेक प्रयास अनेक ओर से, अनेक प्रकार से हुए। फिर भी यह समस्या सम्पूर्णत: समाप्त नहीं हुई है। समाज का मन अभी भी जातिगत विषमता की भावनाओं से जर्जर है। देश के बौद्धिक वातावरण में इस खाई को पाट कर परस्पर आत्मीयता व संवाद को बनाने वाले स्वर कम हैं, बिगाड़ करने वाले अधिक हैं।  यह संवाद सकारात्मक हो इस पर ध्यान रखना पड़ेगा। समाज की आत्मीयता व समता आधारित रचना चाहने वाले सभी को प्रयास करने पड़ेंगे। सामाजिक तथा कौटुम्बिक स्तर पर मेलजोल को बढ़ाना होगा। कुटुम्बों की मित्रता व मेल-जोल सामाजिक समता व एकता को बढ़ावा दे सकता है। सामाजिक समरसता के वातावरण को निर्माण करने का कार्य संघ के स्वयंसेवक सामाजिक समरसता गतिविधियों के माध्यम से कर रहे हैं।


स्वातंत्र्य तथा एकात्मता 
भारत की अखंडता व एकात्मता की श्रद्धा व मनुष्यमात्र की स्वतंत्रता की कल्पना तो शतकों की परंपरा से अब तक हमारे यहां चलती आई है। उसके लिए खून-पसीना बहाने का कार्य भी चलता आया है। यह वर्ष श्री गुरु तेग बहादुर जी महाराज के प्रकाश का 400वां वर्ष है। उनका बलिदान भारत में पंथ संप्रदाय की  कट्टरता के कारण चले हुए अत्याचारों को समाप्त करने के लिए व अपने-अपने पंथ की उपासना करने का स्वातंत्र्य देते हुए सबकी उपासनाओं को सम्मान व स्वीकार्यता देने वाला इस देश का परंपरागत तरीका फिर से स्थापन करने के लिए ही हुआ था। वे हिंद की चादर कहलाए।     

कोरोना से संघर्ष
 कोरोना की दूसरी लहर में समाज ने फिर एक बार अपने सामूहिक प्रयास के आधार पर कोरोना बीमारी के प्रतिकार का उदाहरण खड़ा किया। इस दूसरी लहर ने अधिक मात्रा में विनाश किया तथा युवा अवस्था में ही कई जीवनों का ग्रास कर लिया। परन्तु ऐसी स्थिति में भी प्राणों की परवाह न करते हुए जिन बंधु भगिनियों ने समाज के लिए सेवा का परिश्रम किया वे वास्तव में अभिनंदनीय है। और संकटों के बादल भी पूरी तरह छंटे नहीं हैं। कोरोना की बीमारी से हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ, यद्यपि तीसरी लहर का सामना करने की हमारी तैयारी लगभग पूरी हो चुकी है। बड़ी मात्रा में टीकाकरण हो चुका है, उसे पूर्ण करना पड़ेगा। 

धर्मांतरण और घुसपैठ रोकने के लिए जरूरी है राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर 
देश में धर्मांतरण और विदेशी घुसपैठ और मतांतरण के कारण देश की समग्र जनसंख्या विशेषकर सीमावर्ती क्षेत्रों की आबादी के अनुपात में बढ़ रहा असंतुलन सांस्कृतिक पहचान के लिए गंभीर संकट का कारण बन सकता है इसलिए राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर जरूरी है। 

जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती
 देश में जनसंख्या नियंत्रण हेतु किए  विविध उपायों से पिछले दशक में जनसंख्या वृद्धि दर में पर्याप्त कमी आई है। लेकिन, इस संबंध में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का मानना है कि 2011 की जनगणना के पांथिक आधार पर किए गए विश्लेषण से विविध संप्रदायों की जनसंख्या के अनुपात में जो परिवर्तन सामने   आया है, उसे देखते हुए जनसंख्या नीति पर पुनर्विचार की आवश्यकता प्रतीत होती है। 

हिंदू मंदिरों का प्रश्न
राष्ट्र की एकात्मता, अखंडता, सुरक्षा, सुव्यवस्था, समृद्धि तथा शांति के लिए चुनौती बनकर आने वाली अथवा बाह्य समस्याओं के प्रतिकार की तैयारी रखने के साथ-साथ हिन्दू समाज के कुछ प्रश्न भी हैं; जिन्हें सुलझाने का कार्य होने की आवश्यकता है। हिंदू मंदिरों की आज की स्थिति यह ऐसा एक प्रश्न है। 

संगठित हिंदू समाज
हमारे देश के इतिहास में यदि कुछ परस्पर कलह, अन्याय, हिंसा की घटनाएं घटी हैं, लम्बे समय से कोई अलगाव, अविश्वास, विषमता अथवा विद्वेष पनपता रहा हो, अथवा वर्तमान में भी ऐसा कुछ घटा हो; तो उसके कारणों को समझकर उनका निवारण करते हुए फिर वैसी घटना न घटे, परस्पर विद्वेष, अलगाव दूर हों, तथा समाज जुड़ा रहे ऐसी वाणी व कृति होनी चाहिए। भारत के मूल मुख्य राष्ट्रीय धारा के नाते हिन्दू समाज यह तब कर सकेगा जब उसमें अपने संगठित सामाजिक सामथ्र्य की अनुभूति, आत्मविश्वास व निर्भय वृत्ति होगी। इसलिए आज जो अपने को हिंदू मानते हैं उनका यह कत्र्तव्य होगा कि वे अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक जीवन तथा आजीविका के क्षेत्र में आचरण से हिन्दू समाज जीवन का उत्तम सर्वांग सुन्दर रूप खड़ा करें।  सब प्रकार के भय से मुक्त होना होगा। दुर्बलता ही कायरता को जन्म देती है। व्यक्तिगत स्तर पर हमें शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक बल, साहस, ओज, धैर्य तथा तितिक्षा की साधना करनी ही होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यही कार्य निरंतर गत 96 वर्षों से कर रहा है, तथा कार्य की पूर्ति होने तक करता रहेगा। आज के इस शुभ पर्व का भी यही संदेश है।  भारत माता की जय    
डा. मोहन भागवत (आर.एस.एस. के सरसंघचालक )


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News