आतंकवाद, प्रदूषण और सुरक्षा संबंधी चिंताओं से जूझती हमारी दिल्ली
punjabkesari.in Monday, Nov 17, 2025 - 05:37 AM (IST)
भारत की राजधानी दिल्ली शक्ति, राजनीति और प्रगति का प्रतीक है। फिर भी, इसके चमकदार क्षितिज और राजनीतिक महत्व के पीछे एक कठोर वास्तविकता छिपी है। यहां आतंकवाद, प्रदूषण और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का बढ़ता खतरा है, खासकर उन बच्चों के लिए जो रोजाना स्कूल जाते हैं। लगातार हाई अलर्ट पर रहने वाले शहर में, दृश्य और अदृश्य दोनों तरह के खतरे अब दिल्लीवासियों के जीने और अपने परिवारों के पालन-पोषण के तरीके को आकार दे रहे हैं।
हर सुबह, दिल्ली में लाखों स्कूली बच्चे ट्रैफि क जाम, धुंध और अनिश्चितता का सामना करते हुए बसों, ऑटो और कारों में सवार होते हैं। माता-पिता उत्सुकता से देखते हैं कि उनके बच्चे धुंध में कैसे गायब हो जाते हैं जो न केवल प्रतीकात्मक है बल्कि खतरनाक रूप से वास्तविक भी है। शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक (ए.क्यू.आई.) अक्सर ‘गंभीर’ स्तर को छू जाता है, जिससे हवा जहरीली हो जाती है। दिल्ली में सांस लेना एक दिन में कई सिगरेट पीने के बराबर है। जहां प्रदूषण चुपचाप युवा फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं आतंकवाद का एक और साया मंडरा रहा है। दिल्ली ने पिछले कुछ वर्षों में कई आतंकवादी हमलों का सामना किया है- 2001 में संसद पर हमले से लेकर 2005 और 2008 में बाजारों और सार्वजनिक स्थलों को हिलाकर रख देने वाले विस्फोटों तक। 2025 में भी, अपने राजनीतिक महत्व के कारण यह शहर एक संभावित निशाना बना हुआ है। सुरक्षा एजैंंसियां लगातार स्थिति पर नजर रखती हैं लेकिन ‘क्या होगा अगर’ का डर दिल्लीवासियों के मन से कभी नहीं जाता। स्कूल, मॉल, मैट्रो स्टेशन और सार्वजनिक समारोहों पर लगातार नजर रखी जाती है। इन सबके बावजूद, ऐसे खतरों के बीच रहने का मनोवैज्ञानिक प्रभाव कम नहीं हो सकता।
दिल्ली के स्कूली बच्चों के लिए, सुरक्षा ने एक नया अर्थ ग्रहण कर लिया है। सड़क सुरक्षा और अनुशासन के अलावा, माता-पिता और स्कूल अब आपातकालीन अभ्यास, निकासी योजनाओं और वायु शोधक मास्क पर भी चर्चा करते हैं। दिल्ली में पल रही एक पीढ़ी न केवल ए.बी.सी. और गिनती सीख रही है बल्कि अलार्म, सुरक्षा जांच और प्रदूषण मास्क से निपटना भी सीख रही है। लेकिन जहां प्रदूषण एक प्रत्यक्ष खतरा है, वहीं आतंकवाद एक अप्रत्याशित खतरा बना हुआ है। शहर के स्कूलों, खासकर सरकारी इमारतों या संवेदनशील क्षेत्रों के पास वाले स्कूलों में, कड़े सुरक्षा उपाय हैं जैसे सशस्त्र गार्ड, पहचान पत्र सत्यापन, सी.सी.टी.वी. नैटवर्क आदि। फि र भी डर बना रहता है। बच्चों के लिए ये सुरक्षा जांचें उनके सामान्य जीवन का हिस्सा बन गई हैं । दिल्ली के सुरक्षा बल खतरों को रोकने के लिए अथक प्रयास करते हैं लेकिन शहर की विशाल आबादी और छिद्रपूर्ण सीमाएं इस काम को जटिल बना देती हैं। हर दिन हजारों लोग शहर में आते-जाते हैं। बड़े समारोह, राजनीतिक रैलियां, त्यौहार, विरोध प्रदर्शन सुरक्षा व्यवस्था पर भारी पड़ते हैं। इसके अलावा प्रदूषण का संकट भी है। खासकर हर सॢदयों में, जब पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से वाहनों का उत्सर्जन, निर्माण धूल और औद्योगिक कचरा मिलता है तब शहर गैस चैंबर बन जाता है। अस्पतालों में आंखों में जलन, सांस लेने में तकलीफ और फेफ ड़ों में संक्रमण के बढ़ते मामले सामने आ रहे हैं। जिन बच्चों के फेफड़े अभी विकसित हो रहे हैं, उनके लिए ये प्रभाव लंबे समय तक रहने वाले और अपरिवर्तनीय हो सकते हैं।
आधुनिक राजधानी में अभिभावकों की चिंता: दिल्ली के हर अभिभावक को रोजाना एक दुविधा का सामना करना पड़ता है कि क्या अपने बच्चे को स्कूल भेजना सुरक्षित है? यह डर दोहरा है- शारीरिक और पर्यावरणीय। हालांकि स्कूलों ने एयर प्यूरीफायर लगाकर और सुरक्षा कड़ी करके अनुकूलन की कोशिश की है लेकिन समस्या का दायरा इतना बड़ा है कि अकेले ऐसे उपाय करना संभव नहीं है। सुबह की सभाएं अक्सर घर के अंदर ही कर दी जाती हैं। स्कूल बसें जी.पी.एस. ट्रैकिंग से लैस हैं। अभिभावक मोबाइल ऐप के जरिए अपने बच्चों के रूट पर रीयल-टाइम नजर रखते हैं। यह तकनीक, चिंता और अनुकूलन का एक अजीबो-गरीब मिश्रण है जो दिल्ली की आधुनिक पहचान को परिभाषित करता है। दिल्ली की समस्याओं का समाधान डर से नहीं हो सकता। इसके लिए सामूहिक कार्रवाई की जरूरत है। सरकार को पर्यावरण और सुरक्षा दोनों ही बुनियादी ढांचों में निवेश जारी रखना चाहिए, जबकि खुफिया नैटवर्क को आतंकवादी खतरों से एक कदम आगे रहना चाहिए।
जन जागरूकता भी उतनी ही जरूरी है। नागरिकों को यह समझना होगा कि छोटे-छोटे बदलाव जैसे कार का इस्तेमाल कम करना, कचरा जलाने से बचना, पेड़ लगाना बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं। स्कूलों को छात्रों को बिना किसी जोखिम के पर्यावरणीय आपात स्थितियों और सुरक्षा खतरों दोनों के लिए सुरक्षा तैयारियों के बारे में शिक्षित करना चाहिए। अपनी चुनौतियों के बावजूद, दिल्ली एक लचीला शहर है। इसने आतंकवादी हमलों, महामारियों और धुंध के संकटों का सामना किया है फि र भी हर सुबह यही शहर जागता है, अपने बच्चों को स्कूल भेजता है और अपने कामों में लग जाता है।
आगे की राह: दिल्ली को बच्चों के लिए वास्तव में एक सुरक्षित और रहने योग्य शहर बनाने के लिए आतंकवाद और प्रदूषण दोनों को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों के रूप में देखना होगा। सुरक्षा का मतलब सिर्फ बंदूकों और पहरेदारों से नहीं है, यह स्वच्छ हवा, हरियाली और सुरक्षित सड़कों से भी जुड़ा होना चाहिए।-देवी एम. चेरियन
