हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को  ‘अन्यायों’ ने तनावपूर्ण बना डाला

Saturday, Dec 15, 2018 - 04:13 AM (IST)

जब देश के पूर्व राष्ट्रपति ने बड़े पैमाने पर शासन के साथ कुटिलता तथा मोहभंग का समर्थन किया और संसद, जहां बहस होती है और न्यायपालिका जो राष्ट्र को न्याय तथा नेतृत्व बांटने के लिए समॢपत है (24 नवम्बर को श्री प्रणव मुखर्जी का संबोधन) से निवेदन किया, तो हम यकीनी तौर पर कह सकते हैं कि भारत गिरावट की ओर है। लोकतंत्र के महत्वपूर्ण संस्थानों के हीनता वाले प्रदर्शन तथा सामाजिक अन्याय ने  लोकतांत्रिक राजनीति को अन्यायों से तनावपूर्ण बना डाला तथा गलतियों को और बढ़ा दिया है। जो जी.डी.पी.  के अंकों तथा देश की ईज ऑफ डूइंग बिजनैस इंडैक्स में रैंकिंग से संतोष महसूस करते हैं। वे ऐसा इसलिए सोचते हैं कि वल्र्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट (2018) में देश का 158वें में से 113वां स्थान, ग्लोबल हंगर इंडैक्स में 119वें में से 103वां तथा  ग्लोबल पीस इंडैक्स 2015 में से  143वां स्थान है। अंतर्राष्ट्रीय पत्रकार संघ  की 2016 में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत पत्रकारों के लिए 8वें खतरनाक स्थान पर है। 

पर्यावरण संबंधी चुनौतियां
देश पर्यावरण चुनौतियों से घिरा है जिसने कि विकास की बढ़ौतरियों को घेर रखा है। हम सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी से भी प्रभावित हैं जोकि विश्व के 20 सबसे बड़े प्रदूषित शहरों में से 13वें पायदान पर है। फरवरी 2017 में वायु प्रदूषण से संबंधित मौतों की संख्या 3000 रही। यही नहीं, भारत को विश्व की  बलात्कार राजधानी के नाम से भी जाना जाने लगा। 2017-18 में 1674  लोगों की हिरासत में मौत हुई  जिसका अर्थ प्रतिदिन 5 व्यक्तियों की हिरासत में मौत है।

(ए.सी.एच.आर. 2018 की रिपोर्ट)  इन बातों से हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। हमारी राजनीतिक प्रक्रिया की शुद्धता तथा लगभग सभी विधायकों के 30 प्रतिशत आपराधिक इतिहास से भी राष्ट्र को ठेस लगती है। राजनीतिक श्रेणी के बारे में जुनूनी कुटिलता ने इसकी विश्वसनीयता को तबाह किया है तथा लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर किया है। बहुत ज्यादा गरीबी की असंवेदनशील तथा उदासी भरी न खत्म होने वाली कहानियों ने मानवीय सहानुभूति के दायरे को और तंग कर दिया है जिससे हमारी उभरती हुई ताकत को ठेस पहुंचती है। हम अधिकारों के संरक्षण तथा शासन के मामलों में राज्य से ऊपर उठते हुए पुष्टि वाले कानून का दावा नहीं कर सकते। क्या हम ग्रेट सन ऑफ इंडिया के सबसे ऊंचे बुत का घर होने के बावजूद विश्व में अपने आपको वास्तव में ऊंचा उठा सकते हैं? 

राष्ट्र अपने आप में बंट गया है
हम जानते हैं कि राष्ट्र अपने आप में बंट गया है और ऐसी राजनीति द्वारा पाबंद हो गया है जिसने टूटी हुई राजनीति का पालन-पोषण किया है। एक विस्तृत राजनीतिक सहमति के बिना बंटा हुआ समाज उभर रही चुनौतियों से पार नहीं पा सकता। इसमें मानवता का स्वभाव अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, पानी की लड़ाई, खाद्य पदार्थों की कमियां, दवाएं, मानव तस्करी, आजादी पर चोट तथा कई  अन्य चीजें शामिल हैं। इस चुनौतीपूर्ण समय में राष्ट्रवाद प्रति समर्पण तथा एक सामाजिक व्यवस्था की इच्छा से अन्याय से लड़ा जा सकता है। हाल ही में हमारे संवैधानिक अंतकरण पर बार-बार से हो रही चोट को भुगतने के बाद राष्ट्र को अपने सामाजिक सामंजस्य तथा राष्ट्रीय एकता पर जोर देना चाहिए जोकि सहनशीलता, समावेशन, समानता तथा सौम्य देशभक्ति पर आधारित है। 2019 में  जो हम अपनी पसंद बनाएंगे वह विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की उत्पत्ति  की कार्य प्रणाली के भविष्य को तय करेगी तथा उसको परिभाषित करेगी। 

लोकतंत्र की जीत हमारी सच्चाई पर की गई पुष्टि की योग्यता पर निर्भर करती है। विशेष तौर पर तब जब हम शेक्सपीयर की एक कहावत का इस्तेमाल करते हैं जिसमें कहा गया है : जब चापलूसी के आगे शक्ति घुटने टेकती है तब कत्र्तव्य को बोलने से भय लगता है। इसलिए हमें ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो दीन तथा हौसले वाला हो तथा साथ लेकर दूर तक चलने वाला हो। उम्मीद है कि हमारी राजनीति को आधुनिकता के केन्द्र की ओर झुकना पड़ेगा तथा संविधान के आदेशों को मानना पड़ेगा।-अश्वनी कुमार

Pardeep

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