अनुकूलता सुनिश्चित करने के लिए अध्यादेश का सहारा

Friday, Dec 03, 2021 - 04:31 AM (IST)

संसद सत्र शुरू होने से कुछ दिन पहले मोदी-शाह सरकार एक अध्यादेश लाई जिससे इसे प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) तथा सी.बी.आई. के निदेशकों के कार्यकाल के विस्तार को 2 वर्ष से बढ़ाकर 5 वर्ष करने का अधिकार मिल गया। ऐसा करके यह सुप्रीमकोर्ट को नजरअंदाज करना था जिसने एक पी.आई.एल. पर इससे पहले व्यवस्था दी थी कि ई.डी. के निदेशक को अब और सेवा विस्तार नहीं दिया जा सकता। 

अंतिम समय पर लाए गए अध्यादेश से प्राप्त ताकत से केंद्र सरकार ने वह किया जो वह बहुत बेताबी से करना चाहती थी तथा ई.डी. के निदेशक के पद पर बैठे आई.आर.एस. अधिकारी मिश्रा को पहले से ही दिए गए 2 वर्ष के सेवा विस्तार के बाद एक वर्ष का और सेवा विस्तार दे दिया गया। राष्ट्रीय पुलिस आयोग के सुझावों के आधार पर अपनी प्रकाश सिंह जजमैंट में सुप्रीमकोर्ट द्वारा 2 वर्ष की सीमा निर्धारित की गई थी। इस प्रस्ताव का उद्देश्य उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के कार्यकाल को निर्धारित करना था ताकि पदासीन अधिकारी बिना किसी डर अथवा पक्षपात के अपना व्यावसायिक कत्र्तव्य निभा सकें। 

नियुक्तियों तथा स्थानांतरणों की ताकत से लैस राजनीतिक बास उन वरिष्ठ अधिकारियों के करियर के लिए खौफ पैदा कर सकते हैं जो उनके अनुसार नहीं चलते। यदि निदेशक का कार्यकाल निर्धारित हो तो वह राजनीतिज्ञों की ओर से आने वाली गैर-कानूनी अथवा अनियमित याचनाओं को सफलतापूर्वक ठुकरा सकते हैं, जो अन्यथा अधिकारी को उसके पद से हटाने में सक्षम होते हैं। 

ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारियों के सेवा विस्तार को 2 वर्षों की बजाय पांच वर्ष करने में कोई समस्या नहीं है यदि (मैं यदि पर जोर दे रहा हूं) यह सभी नियुक्तियों पर लागू हो। निश्चित तौर पर यह अन्य पात्र, तथापि जूनियर उम्मीदवारों के लिए सेवा में दरवाजे बंद कर देगा जो अपनी बारी की प्रतीक्षा में है। यह उनके साथ अन्याय होगा। सी.बी.आई. के वर्तमान निदेशक सुबोध जायसवाल का मामला लें।

महाराष्ट्र राज्य के आई.पी.एस. काडर के एक सम्मानित सदस्य के तौर पर न्याय तथा पारदर्शिता के लिए उनकी ख्याति उनके सहयोगियों को मालूम है तथा जनता में उन लोगों को भी जिन्हें आधिकारिक तौर पर उनसे काम पड़ा है। वह एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर जाने जाते हैं जिसे खरीदा नहीं जा सकता। मैं ऐसे व्यक्ति से ऊंचे पद पर बने रहने की लालसा के लिए अपनी आत्मा को बेच कर आत्मसमर्पण करने की आशा नहीं करता। यदि ऐसा होता है तो मुझे हैरानी तथा बहुत निराशा होगी। मगर सभी अधिकारी उसी ढांचे में नहीं बने होते। बेशर्म संचालकों द्वारा मानवीय कमजोरियों का कई तरीकों से शोषण किया जा सकता है। जो इसका विरोध करते हैं वे ट्रोजन, सच्चे योद्धा हैं। 

सेवा में मुझसे एक बैच वरिष्ठ एस.ई. जोशी रॉ के निदेशक पद तक पहुंचे। 58 वर्ष की आयु (उन दिनों निर्धारित सेवा निवृत्ति की उम्र) पूरी करने के बाद तत्कालीन सरकार ने उन्हें पद पर बने रहने का निवेदन किया। उन्होंने इंकार कर दिया। उन्होंने इसका यह कारण दिया कि ऐसा करना उनके कनिष्ठ सहयोगियों के लिए अनुचित होगा जो उस पद पर बैठने के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैं जोशी को निजी तौर पर जानता हूं। वह अधिकारियों की एक अलग नस्ल से संबंध रखते हैं जो अपनी सेवा तथा इसके हितों को खुद से ऊपर रखते हैं। अब ऐसे अधिकारी अधिक नहीं हैं और यह अफसोसनाक है। 

इससे भी अधिक दयनीय बात यह है कि आज जिस तरह का सिस्टम काम कर रहा है, गलत तरह के लुटेरे अधिकारियों को प्रोत्साहित करते हैं, जो बांहें खोल कर प्रतीक्षा में बैठे राजनीतिज्ञों तक अपना रास्ता बनाते हैं और फिर एक-दूसरे की टांग खींच कर लाभ उठाते हैं। 

आप बेशक सत्ताधारी पार्टी के सक्रिय सदस्य हो सकते हैं लेकिन यह आपको कानून के उल्लंघन की स्वतंत्रता नहीं देता। आप सत्ताधारी पार्टी का महज विरोध अथवा आलोचना करके कानून तोडऩे वाले नहीं बन जाते। किसी भी मामले में सच्चाई के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। किसी को भी अपराधों की जांच में दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए सिवाय विभागीय पर्यवेक्षकों के और बाद में अदालतों के जो न्याय प्रदान करती हैं। अध्यादेश द्वारा सरकार को दी गई नई शक्तियों की संवेदनशील मामलों की जांच में राजनीतिक पक्ष में प्रभावशीलता होगी, जिसे पहले ही हाईकोर्ट अथवा सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी गई है। 

सरकार का कहना है कि वह इस संबंध में संसद में एक विधेयक पेश करेगी। वह दोनों सदनों में बिना चर्चा के इस विधेयक को पारित करवाने का प्रयास करेगी जैसा कि इसने 3 कृषि कानूनों, जो अब वापस ले लिए गए हैं, के मामले में किया। यह न्याय तथा निष्पक्षता का उपहास होगा। ऐसी चालें कब तक सफल होंगी? यह चर्चा को संसद से सड़कों पर स्थानांतरित कर देगा। और यह संसदीय लोकतंत्र, जैसा कि हम इसे जानते हैं, के लिए एक ‘हैप्पी एंडिंग’ नहीं होगी।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)
 

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