विपक्ष बनाम नीतीश : बिहार विधानसभा चुनाव 2020

Monday, Mar 02, 2020 - 04:56 AM (IST)

जैसे -जैसे बिहार विधानसभा के चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं। राजद ने राज्य के हर जिले में बेरोजगारी हटाओ यात्रा शुरू की है तथा लालू यादव ने एक नया नारा अपने समर्थकों को दिया है ‘दो हजार बीस, हटाओ नीतीश’ तथा इसके मुकाबले में जद (यू) ने नारा दिया है, ‘‘दो हजार बीस, फिर से नीतीश’’। इसके लिए जद (यू) ने विधानसभा चुनावों से पहले पहली मार्च को बिहार के गांधी मैदान में शक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया जिसमें प्रदेश भर से पार्टी कार्यकत्र्ताओं ने भाग लिया।

इससे पहले नीतीश ने एक बार फिर बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग की तथा इस मसले पर गृहमंत्री अमित शाह से चर्चा की। चुनावों को देखते हुए नीतीश सरकार ने राज्य विधानसभा में सर्वसम्मति से एन.आर.सी. और एन.पी.आर. के खिलाफ प्रस्ताव पास किया। बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं और इसके लिए जद (यू) ने सभी  बूथों के अध्यक्षों और सचिवों को पटना रैली में बुलाया जिसमें नीतीश कुमार ने औपचारिक तौर पर 2020 के चुनावों का बिगुल फूंक दिया है। 

जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार के अनुसार इस बार बात लालू के 15 साल बनाम नीतीश कुमार के 15 साल की होगी जिसमें दोनों के कार्यकाल के दौरान हुए विकास के आंकड़ों को सामने रखा जाएगा। इस बीच राजद बिहार में लोगों से पूछ रहा है कि क्या वे गांधी जी के साथ हैं या गोडसे के साथ तथा दूसरी तरफ सी.ए.ए., एन.आर.सी. तथा एन.पी.आर. के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कन्हैया कुमार ने अपनी जन-गण-मन यात्रा पूरी कर ली है। 

कांग्रेस की स्थिति पर एक नजर
2004 में पुराने कांग्रेस नेताओं के पुत्र और पौत्र कांग्रेस के माध्यम से राजनीति में आए जिनमें सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिङ्क्षलद देवड़ा, संदीप दीक्षित और जितिन प्रसाद शामिल हैं। ये लोग शीघ्र ही राहुल गांधी ब्रिगेड का हिस्सा बन गए। 2009 में इनमें से अधिकतर को मंत्री पद या पार्टी के संगठन में कोई पद दिया गया लेकिन राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद इन युवा नेताओं ने पार्टी नेतृत्व से असंतोष जाहिर करना शुरू कर दिया। शशि थरूर किसी समय गांधी परिवार के बहुत नजदीक हुआ करते थे जिन्होंने अब संदीप दीक्षित के उस इंटरव्यू का समर्थन किया है जिसमें दीक्षित ने पार्टी नेतृत्व के लिए चुनाव करवाए जाने की मांग रखी है। जय राम रमेश ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को कोरोना वायरस का नाम दिया है। मिङ्क्षलद देवड़ा दिल्ली में जीत के लिए आप की प्रशंसा कर रहे हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमलनाथ के खिलाफ मध्य प्रदेश में सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है। राजस्थान में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट लगातार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का विरोध कर रहे हैं। 

राजस्थान में राज्यसभा के लिए चुनाव
राजस्थान में 3 राज्यसभा सीटों के लिए शीघ्र ही चुनाव होने जा रहा है तथा विधानसभा सीटों के आंकड़ों के अनुसार कांग्रेस को इनमें से दो सीटें मिलेंगी तथा भाजपा को एक। भाजपा के 3 राज्यसभा सदस्य रिटायर होने जा रहे हैं। पिछले राज्यसभा चुनाव में दिल्ली के विजय गोयल को राजस्थान से चुना गया था लेकिन इस बार यह मुश्किल लगता है क्योंकि दिल्ली से होने के कारण वह आऊटसाइडर हैं। इसके अलावा आर.एस.एस. की बैकग्राऊंड वाले नारायण पंचरिया और वसुंधरा राजे सिंधिया खेमे से जुड़े रामनारायण का नाम चर्चा में है। भाजपा के खेमे में यह चर्चा है कि हाईकमान नारायण पंचरिया को चुनाव में खड़ा कर सकती है। कांग्रेस में  राज्य के अधिकतर नेता प्रियंका गांधी वाड्रा के पक्ष में हैं तथा ऐसा लगता है कि दूसरी सीट के लिए अशोक गहलोत किसी पिछड़े या दलित नेता का नाम आगे बढ़ाएंगे। 

विपक्ष की एकता ध्वस्त
बजट सत्र का दूसरा भाग आज से शुरू हो रहा है तथा विपक्ष अभी तक एकजुटता का प्रदर्शन नहीं कर पाया है। हालांकि विपक्ष ने दिल्ली में हुए साम्प्रदायिक दंगों के मामले में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को एक पत्र लिखा है लेकिन इस पर केवल डी.एम.के., राजद, राकांपा और कांग्रेस तथा वाम दलों ने ही हस्ताक्षर किए हैं जबकि टी.एम.सी., बसपा और सपा नदारद रहीं। कांग्रेस सी.पी.आई. के नेता कन्हैया कुमार द्वारा पटना में वीरवार को नागरिकता कानून और एन.आर.सी. के खिलाफ आयोजित रैली से गायब रही। ऐसा लगता है कि विपक्षी दल साम्प्रदायिक ङ्क्षहसा के मामले में संसद में एकजुट होकर भाजपा नीत सरकार को टक्कर नहीं दे पाएंगे। 

नीतीश बाबू का मास्टर स्ट्रोक
बिहार विधानसभा चुनाव में एन.पी.आर.-एन.आर.सी. के खिलाफ प्रस्ताव पास करके नीतीश कुमार ने एक मास्टर स्ट्रोक खोला है जिसके तहत उन्होंने एक तरफ भाजपा को विकल्प रहित कर दिया तथा दूसरी तरफ विपक्षी दलों से एक संभावित मुद्दा छीन लिया जिसके सहारे वे सी.ए.ए.-एन.आर.सी.-एन.पी.आर. के मुद्दे पर बड़ा समर्थन हासिल कर सकते थे। उल्लेखनीय है कि बिहार में मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत है जिन्हें  पूरी तरह बाहर जाने से नीतीश कुमार ने रोक लिया है। इस प्रस्ताव से सी.पी.आई. नेता कन्हैया कुमार की पटना रैली पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। झारखंड और दिल्ली को गंवाने तथा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उसके एक पुराने सहयोगी शिवसेना के अलग होने के बाद उस पर बिहार में जीत हासिल करने के लिए इस बात का भारी दबाव था कि वह जद (यू) के साथ मिलकर चुनाव लड़े।-राहिल नोरा चोपड़ा
              

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