विरोधी दल अभद्र भाषा से गुरेज करें

punjabkesari.in Saturday, Sep 16, 2023 - 04:48 AM (IST)

वर्तमान दौर में सत्ताधारी दल अपने विरोधियों के ऊपर ‘हिंदू विरोधी’ होने का इल्जाम लगाकर समाज का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने पर अडिग हैं। इसलिए ऐसे समय में विरोधी दलों के नेताओं को ऐसा कोई बयान देना या ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से पूरी तरह से गुरेज करना चाहिए जो किसी भी धर्म में आस्था रखने वाले आम लोगों के मनों को ठेस पहुंचाता हो। ऐसे बड़बोले नेता और धार्मिक व्यक्ति अल्पसंख्यक समुदायों में भी मौजूद हैं जो उत्तेजना पैदा करने वाले साम्प्रदायिक बयान देकर अपने समुदाय के प्रवक्ता बन जाते हैं। 

वास्तव में ऐसे लोग धार्मिक अल्पसंख्यकों का भला करने की बजाय उन्हें समस्त समाज के समक्ष शक्की और मूर्ख बनाने का कार्य करते हैं। यह समय किसी धर्म विशेष की प्रशंसा करने या किसी दूसरे धर्म का विरोध करने का नहीं बल्कि तर्कसंगत रहते हुए धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले दलों से जनसाधारण को सचेत करने का है। गत दिनों द्रमुक के एक नेता ने सनातन धर्म को खत्म करने का ऐसा ही बेतुका बयान देकर भाजपा को हराने के लिए प्रयत्नशील विरोधी दलों का कुछ सुधार करने की बजाय उल्टा नुक्सान ही किया है। इस पर दिए गए बयान ने संघ परिवार को अल्पसंख्यक (विशेषकर मुस्लिम और इसाई समुदाय) की ओर से बहुसंख्यक हिंदू धर्म को दरपेश मनगढ़ंत खतरे की झूठी दुहाई देकर नफरत फैलाने का अवसर ही प्रदान किया है। आज लड़ाई किसी धर्म के विरुद्ध न होकर गलत सामाजिक मूल्यों जैसे कि जात-पात व्यवस्था, दलितों को बुनियादी अधिकारों से वंचित करने वालों, नारी समानता का विरोध करने वालों तथा अमीर-गरीब के दरम्यान फर्क को और गहरा करने वाले के खिलाफ होनी चाहिए। 

लोकतंत्र की रक्षा और मजबूती के लिए 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों के लिए भाजपा के नेतृत्व में सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ गैर-भाजपा दलों का गठजोड़ (I.N.D.I.A.) का बनना भारतीय राजनीति के लिए एक शुभ शगुन है।   बेशक यह गठजोड़ वर्तमान शासकों से अलग नहीं है परन्तु देश के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ढांचे और संविधान के प्रति नजरिए के पक्ष से भाजपा और इसके सहयोगियों से पूरी तरह अलग है। आने वाले समय के दौरान विरोधी दलों के गठजोड़ में सीटों के बंटवारे तथा कई अन्य मुद्दों के बारे में कुछ मतभेद निश्चित तौर पर उभर सकते हैं जोकि वर्तमान राजनीति का एक हिस्सा ही है लेकिन यह गठजोड़ के नेताओं की राजनीतिक सूझबूझ तथा जनसमूहों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के ऊपर निर्भर करेगा कि वे ऐसे मतभेदों से कैसे निपटते हैं। 

मोदी सरकार की ओर से 18 से 22 सितम्बर तक लोकसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने से राजनीतिक हलकों और सत्ता के गलियारों में इस सत्र की संवैधानिक प्रासंगिकता और इसमें लिए जाने वाले संभावित फैसलों के बारे में गंभीर चर्चा छिड़ गई है। बहुसंख्यक राजनीतिक विश्लेषकों की ओर से यह सवाल आम ही किया जा रहा है कि हाल ही में सम्पन्न मानसून सत्र के तुरन्त बाद देश के सामने ऐसा कौन-सा हंगामी मुद्दा आ खड़ा है जिसका समाधान ढूंढने के लिए यह सत्र बुलाया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि नोटबंदी जैसे घातक फैसले लेने, कोरोना महामारी से निपटने तथा मणिपुर में हिंसक घटनाओं के बारे में चर्चा करने के लिए सरकार ने ऐसा कोई असाधारण कदम नहीं उठाया था। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि संसद का यह हंगामी सत्र अगले चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार की किसी गुप्त योजनाबंदी का हिस्सा हो सकता है। 

एक देश-एक चुनाव की गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम करने का मूल उद्देश्य भी प्रधानमंत्री के पद के लिए एक विशेष व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) के आसपास जनसाधारण का ध्यान केंद्रित कर पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा की होने वाली संभावित हार को टालना भी इसका मंतव्य हो सकता है। एक देश-एक चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे को समस्त राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, कानून के जानकारों तथा समाज के महत्वपूर्ण और विवेकशील व्यक्तियों के साथ विचार-विमर्श किए बिना कानूनी दर्जा देने के बारे में सोचना लोकतांत्रिक और संघात्मक ढांचे के लिए खतरा बन सकता है। वैसे भी भारत जैसे बड़ी आबादी वाली विशाल देश के अंदर संसद से लेकर पंचायत स्तर तक चुनावों को एक ही समय में आयोजित करना एक उलझाने वाला ही नहीं बल्कि विवेकहीन मुद्दा भी हो सकता है। 

सत्ताधारी दल आने वाले लोकसभा चुनावों में आम लोगों से संबंधित बेहद महत्वपूर्ण मुद्दों को दर-किनार करके कुछ ऐसे काम करना चाहती है जो समाज का साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर भाजपा की झोली में एक विशेष धर्म से संबंधित वोटों का बड़ा हिस्सा डाल सकें। दूसरे दलों को खत्म करने के लिए भाजपा के तरकश में और भी तीर हो सकते हैं जिनका इस्तेमाल समय पर किया जाएगा। मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति के कारण हमारे बच्चे वैज्ञानिक और तर्कशील पाठ्यक्रम के द्वारा सूझवान वैश्विक नागरिक बनने के स्थान पर खाली बैठ कर अंधविश्वासों पर आधारित सामाजिक व्यवस्था वाले विचार और संस्कार हासिल करेंगे। ऐसी शिक्षा हासिल कर भारतीय युवक एक आधुनिक, शांतिपूर्ण समाज के नागरिक बनने का सपना भी नहीं देख सकेंगे। जहां सबको विकास करने के एक जैसे मौके और अधिकार प्राप्त हों। भाजपा तथा संघ परिवार आने वाले लोकसभा चुनावों को जीतने के लिए महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी, अनपढ़ता, सामाजिक और शैक्षणिक सहूलियतों की कमी और गंदगी में रेंगते हुए कीड़ों से भी बदत्तर जिंदगी बसर कर रहे जीवन जैसे मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं।-मंगत राम पासला


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