आपातकाल से भी बड़ा आफतकाल

punjabkesari.in Saturday, Apr 24, 2021 - 04:17 AM (IST)

महामारी ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया है कि सर्वोच्च न्यायालय को वह काम करना पड़ गया है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश में संसद को करना होता है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह उसे एक राष्ट्रीय नीति तुरंत बनाकर दे, जो कोरोना से लड़ सके। 

मरीजों को ऑक्सीजन, इंजैक्शन, दवाइयां आदि समय पर उपलब्ध करवाने की वह व्यवस्था करे। न्यायपालिका को यह क्यों करना पड़ा? इसीलिए कि लाखों लोग रोज बीमार पड़ रहे हैं और हजारों लोगों की जान जा रही है। रोगियों को न दवा मिल रही है, न ऑक्सीजन मिल रही है, न पलंग मिल रहे हैं। इनके अभाव में बेबस लोग दम तोड़ रहे हैं। टी.वी. चैनलों पर श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में लगी लाशों की भीड़ को देखकर रौंगटे खड़े हो जाते हैं। कोरोना की दवाइयों, इंजैक्शनों और अस्पताल के पलंगों के लिए जो कालाबाजारी चल रही है, वह मानवता के माथे पर कलंक का टीका है। 

अभी तक एक भी कालाबाजारी को चौराहे पर सरे-आम नहीं लटकाया गया है। क्या हमारी सरकार और हमारी अदालत के लिए यह शर्म की बात नहीं है? होना तो यह चाहिए कि इस आपातकाल में, जो भारत का आफतकाल बन गया है, कोरोना के टीके और उसका इलाज बिल्कुल मुफ्त कर दिया जाए। पिछले बजट में जो राशि रखी गई थी और पी.एम. केयर फंड में जो अरबों रुपए जमा हैं, वे कब काम आएंगे? निजी अस्पताल भी यदि दो-चार महीने की कमाई नहीं करेंगे तो बंद नहीं हो जाएंगे।

यह अच्छी बात है कि हमारी फौज और पुलिस के जवान भी कोरोना की लड़ाई में अपना योगदान कर रहे हैं। बंगाल की चुनावी सभाओं और कुंभ के मेले पर सरकार ने जो ढिलाई दिखाई है, उसी का नतीजा है कि 56 इंच का सीना सिकुड़ कर  अब 6 इंच का दिखाई पड़ रहा है। अब भारत को दूसरे देशों के सामने दवाइयों के लिए झोली पसारनी पड़ रही है। यदि महामारी इसी तरह बढ़ती रही तो कोई आश्चर्य नहीं कि अर्थव्यवस्था का भी भट्ठा बैठ जाएगा और करोड़ों बेरोजगार लोगों के दाना-पानी के इंतजाम के लिए भी संपन्न राष्ट्रों के आगे हमें गिड़गिड़ाना पड़ेगा। चीन ने तो हमें दवाइयां दान करने की पहल कर ही दी है। 

इस नाजुक मौके पर यह जरूरी है कि हमारे विभिन्न राजनीतिक दल आपस में सहयोग करें और केंद्र तथा राज्यों की विपक्षी सरकारें भी सांझी रणनीति बनाएं। एक-दूसरे की टांग खींचना बंद करें। किसान नेताओं के प्रति पूर्ण सहानुभूति रखते हुए भी उनसे अनुरोध है कि फिलहाल वे अपने धरने स्थगित करें। राजनीतिक दलों के करोड़ों कार्यकत्र्ता मैदान में आएं और आफत में फंसे लोगों की मदद करें। यह काल आपातकाल से भी बड़ी आफत का काल है। आपातकाल में सिर्फ विपक्षी नेता तंग थे लेकिन इस आफतकाल में हर भारतीय सांसत में है।

-डा. वेदप्रताप वैदिक


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