‘आप्रेशन विजय-कारगिल युद्ध’ : भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय

punjabkesari.in Friday, Sep 04, 2020 - 02:40 AM (IST)

युगों-युगों से यही हमारी बनी हुई परिपाटी है
खून दिया है, मगर नहीं दी, कभी देश की माटी है 

जब भी पाकिस्तान के साथ भारत का युद्ध हुआ, चाहे पाकिस्तान का 1948 में कश्मीर पर हमला हो या1965 या 1971 का युद्ध, हमारे देश के वीर जवानों ने अपना बलिदान देकर मुंह तोड़ जवाब दिया और युद्ध जीता। कारगिल युद्ध जिसे ‘आप्रेशन विजय’ के नाम से जाना जाता है, 3 मई 1999 को शुरू हुआ और 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ था। कश्मीरी उग्रवादी पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर कारगिल पर कब्जा करना चाहते थे। इस युद्ध में लगभग 5000 घुसपैठिए शामिल थे। 

विश्वासघाती पाकिस्तान : जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी दोनों देशों के संबंध सुधारने के लिए लाहौर बस यात्रा में व्यस्त थे और देश की सुरक्षा एजैंसियां वातावरण को शांत करने का प्रयास कर रही थीं, उस समय पाकिस्तान उग्रवादियों को कारगिल में, पहाड़ों की चोटियों पर पक्के मोर्चे बनाने, हथियार और रसद पहुंचाने में व्यस्त था। वह कश्मीर को लेह-लद्दाख से अलग करना चाहता था। जब वाजपेयी जी ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से कारगिल के युद्ध के बारे बात की तो उन्होंने कहा कि मुझे कारगिल युद्ध की जानकारी वाजपेयी से मिली है। 

लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल : भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के विरुद्ध मिग-27 और मिग-29 का इस्तेमाल किया। इसके बाद जहां भी पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहां बम गिराए गए। इसके अतिरिक्त मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया। इस युद्ध में बड़ी संख्या में राकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया। इस दौरान लगभग 2.50 लाख  गोले दागे गए थे। 

दुर्गम क्षेत्र और हमारे बहादुर जनरल : कारगिल लगभग 150 किलोमीटर में फैला हुआ है। यह विश्व का सबसे दुर्गम क्षेत्र है। सियाचिन में युद्ध लडऩा इतना कठिन नहीं है जितना उससे कम ऊंचाई वाली पहाडिय़ों से सटे इस कारगिल क्षेत्र में। हमारे वीर जवानों ने अपने जीवन की परवाह न करते हुए पेट के बल रेंगते हुए 18 हजार फुट की ऊंचाई पर कारगिल की जंग लड़ी और युद्ध में विजय प्राप्त की थी। इस युद्ध में 527 से अधिक सैनिक शहीद हुए और 1300 से अधिक घायल हुए थे। जंग में 2700 पाकिस्तानी मारे गए थे और 250 सैनिक युद्ध छोड़ कर भाग गए थे। 

कारगिल में प्रमुख चोटियां, जहां युद्ध लड़ा गया था, तोतोलिंग (4500 फुट) टाइगर हिल द्रास, बटालिक सैक्टर, लौलाम घाटी तुतर्क पहाड़ी (5203 फुट), जब्बार हिल्स मुशकोह घाटी, राकीनाव, ककसार प्वाइंट 5060 फुट। कारगिल युद्ध के हमारे  मुख्य सेनापति थे जनरल वी.पी. मलिक और इनके साथ थे लै. जनरल कृष्ण लाल। इनके अतिरिक्त ब्रिगेडियर अशोक दुग्गल, मेजर जनरल महिन्द्रपुरी आदि। इस सबके नेतृत्व में कारगिल का युद्ध जीता गया था। 

क्लिंटन के कहने पर अमरीका नहीं गए थे अटल जी : जब कारगिल का युद्ध चल रहा था तो उस समय अमरीका के राष्ट्रपति बिल किं्लटन ने अटल जी को अमरीका में बुलाया और कहा कि बैठ कर पाकिस्तान से बात कर लेते हैं। उसी समय अटल जी ने कहा, ‘‘अभी मेरे पास समय नहीं है। मैं पाकिस्तान के साथ बात नहीं करूंगा जब तक एक भी घुसपैठिया कारगिल में है।’’ ऐसे थे हमारे प्रधानमंत्री अटल जी। 52 वर्षों में पहली बार भारत की डिप्लोमैटिक जीत हुई थी वह भी अटल जी के समय। अमरीका, इंगलैंड, फ्रांस, रूस एवं चीन ने हमारा साथ दिया।  यहां तक कि किसी भी मुस्लिम मुल्क ने पाकिस्तान का साथ नहीं दिया। 

हिंद समाचार ग्रुप का योगदान : जब भी देश पर संकट आया, चाहे आतंकवाद का समय, भूकंप, चाहे साइक्लोन, बाढ़, सूखा पड़ा हो, युद्ध के शहीद हों, हर समय श्री विजय चोपड़ा जी ङ्क्षहद समाचार ग्रुप ऑफ पेपर्स की ओर से पीड़ितों की सहायता करते रहे हैं और कर भी रहे हैं। जब विजय चोपड़ा जी ने प्रधानमंत्री रिलीफ फंड इकट्ठा करना शुरू किया तो अपने सामने एक ही लक्ष्य रखा कि पंजाब में उचित स्थान पर ‘परमाणु मिसाइल’ लगाई जाए ताकि पाकिस्तान के मन में हमारा भय बना रहे। उन्होंने साढ़े 10 करोड़ रुपए प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में जमा कराए। 

मेरा पंजाब के गांवों में प्रवास : मैं उस समय पंजाब सरकार में डिप्टी स्पीकर था। मैंने 21 तथा 22 जून को कारगिल में हुए शहीदों के गांव में, शहीदों के मां-बाप से मिलने का कार्यक्रम बनाया। मैं मानिकपुर, चीमा, बाबा बकाला तथा पंजाब के अन्य स्थानों पर भी गया जहां के जवान तथा ऑफिसर कारगिल में शहीद हुए थे। 

मानिकपुर-शहीद पूरन सिंह : शहीद पूरन सिंह के पिता बी.एस.एफ. में सॢवस कर चुके थे। जब मैं उनको मिला तो उनके चेहरे पर कोई मलाल नहीं था। उन्होंने कहा मेरे बेटे ने अपने देश के लिए बलिदान दिया है। पूरन सिंह की माता को इस बात का दुख था कि उसने कहा था ‘‘मैं युद्ध जीत कर आऊंगा, मंगनी भी करवाऊंगा।’’ लेकिन वह युद्ध जीतने से पहले ही शहीद हो गया। 

चीमा गांव-सतनाम सिंह : सतनाम सिंह अपने 6 साथियों सहित बटालिक की पहाडिय़ों में आगे बढ़ रहे थे। उसके साथियों ने कहा गोलीबारी थमने दो, फिर आगे बढ़ते हैं। सतनाम सिंह ने कहा हमें कुछ हासिल करना चाहिए। वह एक क्षण भी नहीं रुका और आगे बढ़ता गया परन्तु दुश्मनों की गोलीबारी की चपेट में आ गया और वीरगति को प्राप्त हो गया। उस समय उसकी नन्ही भांजी कह रही थी,‘‘मेरे मामा जब फौज से वापस आएंगे तो मैं उनके साथ ‘चोर सिपाही’ खेलूंगी।’’ 

बाबा बकाला का शहीद अमरजीत सिंह : शहीद अमरजीत सिंह मां-बाप का इकलौता बेटा था। उसके पिता इंद्र सिंह से जब बेटे का शोक प्रकट किया तो तीन युद्धों में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले इंद्र सिंह ने भावुक होकर कहा, ‘‘देश पर पुत्र कुर्बान करके उसने कोई एहसान नहीं किया है। यह हमारा देश के प्रति कत्र्तव्य है जो मेरे बेटे ने बखूबी  निभाया है। मेरे दोनों पौत्रे बड़े होकर सेना में भर्ती होंगे।’’ जब मेरी भेंट अमरजीत की विधवा सुखविंद्र कौर से हुई, जिसकी गोद में दो नन्हे बच्चे थे-साहिबजीत सिंह व गुरप्रीत सिंह, बड़े दुखी मन से कहने लगी, ‘‘मैं इन दोनों बच्चों को जब बड़े हो जाएंगे तो फौज में भर्ती करवाऊंगी।’’ 

बाबा बकाला के नौजवानों से भेेंट : जब मैं बाबा बकाला के नौजवानों के साथ बातचीत कर रहा था तो गांववासियों में अधिकतर रिटायर फौजी थे।  उन सबका कहना था, ‘‘आप हमें हथियार दिलाओ हम सब कारगिल के युद्ध में जाना चाहते हैं। हमारी यह बात अटल जी, अडवानी जी तथा रक्षा मंत्री जार्ज साहब तक पहुंचा दो।’’ 

प्रधानमंत्री अटल जी, अडवानी जी तथा जार्ज साहब से मेरी भेंट : मैं और मेरे कुछ साथी 1.7.99 सायं 6 बजे प्रधानमंत्री अटल जी, फिर अडवानी जी तथा रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस को रात 8 बजे मिले। सभी लोगों की भावनाओं से अवगत करवाया। ‘‘लोग पाकिस्तान के साथ आर-पार की लड़ाई चाहते हैं और पी.ओ.के.  को भारत में मिलाना चाहते हैं।’’ सभी ने हमारी बात को ध्यानपूर्वक सुना।
पाकिस्तान कहता है :-पाकिस्तान कश्मीर के बिना अधूरा है।
भारत का कहना है- ‘भारत पाकिस्तान के बिना अधूरा है,
हमें अखंड भारत का नारा लगाना चाहिए।’ जय भारत-बलदेव राज चावला (पूर्व स्वास्थ्य मंत्री, पंजाब)
 


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