ऑपरेशन सिंदूर : सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे संकट की पुनरावृत्ति न हो
punjabkesari.in Wednesday, May 14, 2025 - 05:36 AM (IST)

अरस्तु ने कहा था, प्रत्येक त्रासदी के दो भाग होते हैं। अंजाम और उसके समाधान के बाद जटिलता पैदा होती है। 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को एक सबक मिला है। इस हमले में 26 पर्यटकों की हत्या की गई थी। इस युद्ध में प्रधानमंत्री मोदी विजेता के रूप में उभरे हैं। उन्होंने न केवल पहलगाम हमले का बदला लिया, अपितु पाकिस्तान के साथ संबंधों की शर्तों को भी बदला और कहा ‘‘पानी और खून साथ साथ नहीं बह सकता’’ और विश्व को यह भी बताया कि ‘जो कहा वह किया’ के न्याय की अखंड प्रतिज्ञा है। केवल 25 मिनट के आपरेशन सिंदूर में भारत ने एक नया मानदंड स्थापित किया है।
भारत ने पाकिस्तान को यह स्पष्ट कर दिया कि आतंकवादी घटनाओं को न तो नजरंदाज किया जाएगा और न ही सहा जाएगा। आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरैंस की नीति अपनाई गई और यह स्पष्ट किया कि वह उस कार्य को करने के लिए तैयार है, जो पाकिस्तान करना नहीं चाहता या कर नहीं सकता अर्थात आतंकवादियों का खात्मा। भारत ने 3 स्पष्ट संदेश दिए हैं। कश्मीर अब दो पड़ोसी देशों के बीच एक द्विपक्षीय मुद्दा नहीं है, अपितु यह मुद्दा ही नहीं है। असली मुद्दा केवल पाक अधिकृत कश्मीर है।
दूसरा, नियंत्रण रेखा पार करने और लश्कर-ए-तैयबा तथा जैश-ए-मोहम्मद के अड्डों पर हमला करने में उसे कोई हिचक नहीं है। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान के 12 सैन्य ठिकानों पर हमला कर उन्हें नष्ट किया और इस बात पर बल दिया कि आतंकवाद की प्रत्येक कार्रवाई को युद्ध माना जाएगा और उसका उसी की तरह प्रत्युत्तर दिया जाएगा। भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि सिंधु जल संधि और व्यापार पर प्रतिबंध जारी रहेगा। पाकिस्तान आगे कुआं, पीछे खाई वाली स्थिति में फंस गया है। पाकिस्तानी सेना और नागरिक अवसंरचना पर राजनीतिक-आर्थिक हिंसा करता रहा है, किंतु उसे कोई लाभ नहीं हुआ। उसे क्या मिला? सऊदी अरब हो, अमरीका या कतर, उसने संपूर्ण विश्व को बता दिया है कि वह आतंकवाद का मूल है।
पाकिस्तान यह नहीं समझ पाया कि आतंकवाद और उसको बढ़ावा देने के लिए धनराशि चाहिए होती है। इसीलिए पाकिस्तान वैश्विक मनी लांड्रिंग और आतंकवाद वित्त पोषण पर निगरानी रखने वाली संस्था फाइनांशियल एक्शन टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट में शामिल है। दोनों पक्षों ने अपनी बातें स्पष्ट की हैं। दोनों ने एक दूसरे के संकल्प और उनकी रक्षा प्रणाली की शक्ति और कमजोरियों का पता लगाने के लिए सैन्य शक्ति का इस्तेमाल किया और दोनों को यह महसूस हुआ कि दुश्मन का बिना भारी विनाश किए बिना वे युद्ध में विजयी नहीं हो सकते। वस्तुत: वर्ष 2019 के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध नाजुक बने हुए हैं। दोनों देशों के बीच कोई कूटनयिक संवाद नहीं हुआ और दोनों देश हथियारों के बल पर एक-दूसरे से आगे बढऩे और एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने की होड़ में हैं।
वर्ष 2014 के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच 3 सैनिक संकट पैदा हुए। 2016 में उरी, 2019 में बालाकोट और अब पहलगाम। यह पाकिस्तान के प्रति भारत की नीति में बदलाव को रेखांकित करता है। भारत का स्पष्ट रुख है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों के निर्धारण में पाकिस्तान और उसकी आतंकवादी सेना का सामना करने के लिए पूर्वोदाहरण बाध्यकारी नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जाता है कि भारत की कार्रवाई का अमरीका ने पूर्ण समर्थन किया, हालांकि अब राष्ट्रपति ट्रम्प युद्धविराम का श्रेय ले रहे हैं।
भारत द्वारा इस सैनिक कार्रवाई में बढ़त हासिल करने के बावजूद कुछ लोग इस बात से असंतुष्ट हैं कि वह युद्ध विराम के लिए सहमत हुआ और उनका कहना है कि इस समय पाकिस्तान को नहीं छोड़ा जाना चाहिए था। यह बात समझ में आती है, किंतु स्थिति का गहन विश्लेषण करने से पता चलता है कि भारत ने अपनी कार्रवाई से पाकिस्तान को भारी नुकसान पहुंचाकर अपने लक्ष्य प्राप्त कर लिए हैं। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के कारण यह युद्धविराम अल्पकालिक रहेगा और फिर से हमला शुरू करने के लिए दोनों अपनी स्थिति मजबूत करेंगे। चिंता की बात यह है कि इस टकराव के कारण दीर्घकालिक अस्थिरता पैदा हो गई है। पहलगाम जैसे किसी और हमले का मतलब है दोनों देशों के बीच पूर्ण युद्ध।
नि:संदेह युद्धविराम के बाद पिछले 25 वर्षों में भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़े सैनिक टकराव पर विराम लग गया है, किंतु पाकिस्तान के साथ संबंध चुनौतीपूर्ण बने रहेंगे और इससे स्थायी शांति स्थापित नहीं होगी, विशेषकर जब तक पाकिस्तान आतंकवाद पर अंकुश न लगाए। भारत पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय प्रासंगिकता के हाशिए पर लाने में सफल हुआ है। पाकिस्तान का लक्ष्य था कि भारत को संघर्ष में उलझाए, ताकि विश्व उन्हें एक जैसा मानने लगे, किंतु हमारे लक्ष्य बड़े थे। भारत एक आॢथक शक्ति और आत्मनिर्भर है। हम असावधानी नहीं बरत सकते क्योंकि घायल पाकिस्तान अपने घावों को चाट रहा है, जबकि वह एक और युद्ध की तैयारी कर रहा होगा। यह सच है कि एक बड़ा सैनिक टकराव दोनों देशों के हित या शांति या स्थिरता के हित में नहीं है। एक रक्षा रणनीतिकार के अनुसार, भारत एक साथ दो देशों पाकिस्तान और चीन के साथ कठिन संबंधों का सामना कर रहा है। इस संघर्ष ने भारत के लिए दो मोर्चों पर समस्या पैदा कर दी है।
आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से दिवालिया पाकिस्तान के पास खोने के लिए कुछ नहीं है। वह लाभ ही प्राप्त करेगा। भारत समझता है कि भविष्य में उस पर अंकुश रखने के लिए सतही कार्रवाई के बजाय बड़ी कार्रवाई करनी पड़ेगी। भारत को पाकिस्तान को अपने यहां आतंकवादी अवसरंचना समाप्त करने के लिए बाध्य करना होगा और आतंकवादियों के वित्त पोषण पर अंकुश लगाना होगा। वर्तमान में दोनों देशों की सेनाएं सतर्क हैं, किंतु ड्रोन कार्रवाई या तोप के गोलों विशेषकर नियंत्रण रेखा के आसपास के क्षेत्रों में ऐसी कार्रवाई से टकराव बढऩे का जोखिम है। भारत द्वारा सिंधु नदी जल संधि को स्थगित करने के फैसले का पाकिस्तान विरोध करेगा। अगला कदम क्या हो? भारत को एक नई शक्ति के साथ आगे बढऩे, विवेक और संयम का इस्तेमाल और यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थिति भारत-पाकिस्तान मुद्दे तक ही बनी रहे क्योंकि बड़े युद्ध के जोखिम के बिना दोनों के पास एक-दूसरे पर टकराव की लागत थोपने के सीमित विकल्प हैं।
भारत सरकार जानती है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध से उसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। भारत वर्तमान में विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। वर्ष 1945 में हिरोशिमा के बाद यह बात सुनिश्चित हो गई है कि परमाणु हथियार मात्र एक प्रतिरोधक है और एक धुव्रीय विश्व में परमाणु युद्ध की बातें करना निरर्थक है। इसलिए आवश्यकता है कि इस बात को कूटनयिक और राजनीतिक दृष्टि से आगे बढ़ाया जाए। देखना यह है कि क्या इस संकट से पाकिस्तानी सेना के जनरल मुनीर की सत्ता पर पकड़ मजबूत हुई है या असैनिक नेताओं की स्थिति, जिन्होंने सेनाध्यक्ष के कठोर रुख के बावजूद युद्धविराम की पहल की? आशा की जाती है कि पाकिस्तान अपनी गंभीर स्थिति का आत्मावलोकन करते समय युद्ध के खतरे और उसके परिणामों का आकलन करे।
कुल मिलाकर यह सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है कि भविष्य में इस तरह के संकट की पुनरावृत्ति न हो। दोनों देशों के बीच दीर्घकालीन अविश्वास को दूर करने के लिए बहुत कदम उठाने होंगे। एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में ऐसे संकटों से भारत को नुकसान होगा और इस युद्ध को आगे बढ़ाकर उसे बहुत चीजों का प्रबंधन करना होगा। आगामी कुछ वर्ष बताएंगे कि स्थिति क्या रहेगी।-पूनम आई. कौशिश