सिर्फ मोदी ही ‘अविश्वास’ के माहौल को समाप्त कर सकते हैं

Friday, Mar 06, 2020 - 03:43 AM (IST)

अच्छी राजनीति हमेशा अच्छी अर्थव्यवस्था कायम नहीं कर सकती और न ही अच्छी अर्थव्यवस्था अच्छी राजनीति कायम कर सकती है। राजनीतिक तथा आॢथक समय सारिणी आपस में मेल नहीं खाती। हालांकि आज के जैसा बेहतर समय कभी नहीं आया, जबकि दोनों को आपस में मिला दिया जाए। कोरोना वायरस के चलते इससे महत्वपूर्ण सैक्टर जैसे टैलीकॉम, विद्युत, रियल एस्टेट तथा नॉन बैंक वित्तीय रूप से प्रभावित हुए हैं। जिस तरह से इन परेशानियों से निपटा गया है यह स्पष्ट संकेत देता है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था पर 100 प्रतिशत ध्यान केन्द्रित करना होगा तथा इसे खाई से बाहर निकालना होगा। 

यदि राजनीतिक माहौल बिगड़ गया तब अर्थव्यवस्था के पुनर्जागृत होने में समय लगेगा
आप अपनी राजनीति के उत्थान के बिना अर्थव्यवस्था को ऊपर नहीं उठा सकते। यदि राजनीतिक माहौल बिगड़ गया तब अर्थव्यवस्था के पुनर्जागृत होने में समय लगेगा। दिल्ली के दंगों के बाद ऐसी चीजों को देखा गया। नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के खिलाफ हुए प्रदर्शनों ने आग में और घी डाल दिया। इसने समुदाय विशेष के विश्वास को तोड़ा है। राजनीतिक तापमान उछाल पर है। यहां पर ऐसा एक ही व्यक्ति है जो इस सारे घटनाक्रम से अकेले ही निपट सकता है और वह हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी। 

मई, 2019 के बाद मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह को केन्द्र ङ्क्षबदू बना डाला। जिन्होंने अनुच्छेद 370, तीन तलाक तथा सी.ए.ए. में अहम भूमिका निभाई। मोदी ने वित्त मंत्री को साथ लेकर अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित किया। अपने पहले कार्यकाल में व्यावसायिक समुदाय में व्याप्त अविश्वास को पीछे छोड़कर मोदी ने हाल ही में धनवान लोगों तथा उद्यमियों को अपना समर्थन देने पर जोर दिया जोकि एक अच्छा प्रयास है। हालांकि यहां पर एक तत्व गायब है। राजनीतिक संदेश तथा कार्रवाई में एक दरार है। विश्वास कायम करने की प्रक्रिया के साथ 2020-21 के बजट में विवाद से विश्वास स्कीम लांच की गई। विभिन्न अदालतों में प्रत्यक्ष कर के लंबित पड़े मामलों को वास्तविक कर मांग पर ब्याज तथा पैनल्टियां हटाकर उनका समाधान किया जाएगा। 

राजनीति हो या फिर भारत के साथ समझौते हों मोदी के लिए पहली प्राथमिकता लोगों में व्याप्त अविश्वास को हटाने की है। यदि प्रधानमंत्री वित्त मंत्री के साथ विभिन्न व्यावसायिक समूहों तथा संकट में पड़े सैक्टरों के प्रतिनिधियों से मुलाकात करते हैं तब यह जरूर सहयोग करने वाली बात होगी। उन्हें लघु तथा मध्यम उद्यमियों, बड़े कारोबारियों से माह में एक बार जरूर मिलना चाहिए। उनकी परेशानियों को सुनना चाहिए जोकि वह झेल रहे हैं। उन्हें समाधान के लिए जरूरी राजनीतिक निर्देश उपलब्ध करवाए जाने चाहिएं। सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक है। राज्यों के उत्थान के बिना कृषि तथा उत्पादन मार्कीट में सुधार सम्भव नहीं। विपक्ष भाजपा के साथ तालमेल नहीं बना पा रहा। प्रधानमंत्री को अविश्वास के इस चक्र को रोकना होगा। मिसाल के तौर पर मोदी को राज्यों के समक्ष एक डील का प्रस्ताव रखना होगा ताकि वह सी.ए.ए. पर अपने विरोध खत्म करें तथा उसके बदले में एन.पी.आर. तथा एन.आर.सी. पर उनके प्रस्तावों को स्वीकार करें। 

शक्तियों तथा स्रोतों के हस्तांतरण में राज्य तथा लोकल बाडीज को शामिल किया जाए
सबसे महत्वपूर्ण डील यह होगी कि वह शक्तियों तथा स्रोतों के हस्तांतरण में राज्य तथा लोकल बाडीज को शामिल करें। मोदी को मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलानी चाहिए तथा एक संवैधानिक कमेटी का गठन करना चाहिए जो समवर्ती सूची की फिर से समीक्षा करे ताकि ज्यादा से ज्यादा विषय राज्यों तथा शहरों को दे दिए जाएं। उन्हें वित्तीय संसाधनों को भी वापस दे दिया जाए। कोई भी राज्य इसका विरोध नहीं करेगा, यदि गैर भाजपा शासित राज्यों में से उठ रही आवाजों को सुन लिया जाए। 
केन्द्र को एक बात और करनी होगी वह यह कि राज्यों को ज्यादा से ज्यादा फूड तथा फॢटलाइजर सबसिडियां स्थानांतरण कर दी जाएं। 

राज्यों के लिए राजकोषीय मदद 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.25 या फिर 3.5 प्रतिशत कर दी जाए। केन्द्र राज्य में व्याप्त अविश्वास को मिटाने के लिए यह जरूरी है कि अप्रैंटिसिज एक्ट तथा फिक्स्ड टर्म लेबर कांट्रैक्ट में बदलाव लाया जाए। राज्यों ने इन सुधारों की तरफ कोई भी कदम नहीं उठाया है। ज्यादातर माइक्रो, लघु तथा मध्यम उद्यमी यह नहीं जानते कि वह कम लागत पर अप्रैंटिसिज को किराए पर रख सकते हैं या फिर कर्मचारियों को फिक्स्ड टर्म अनुबंध दे सकते हैं। वास्तविकता यह है कि सरकारी खर्चे का 58 से 60 प्रतिशत व्यय राज्य स्तर पर किया जाता है। इसलिए अर्थव्यवस्था के बढ़ावे के लिए राज्यों को सशक्त होना लाजिमी है। केन्द्र तथा राज्यों में, सरकार तथा व्यापारियों में, कर आकलन तथा इसे निर्धारित करने वालों के बीच फैले अविश्वास को खत्म करना होगा और इसकी शुरूआत शिखर से होनी चाहिए।-आर.जगन्नाथ     

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