ऑनलाइन गेम्स पर अंकुश आज की जरूरत

punjabkesari.in Wednesday, Dec 08, 2021 - 05:01 AM (IST)

स्कूली दिनों में हम सभी ने एक विषय पर निबंध जरूर लिखा और पढ़ा होगा कि ‘विज्ञान वरदान या अभिशाप’। विज्ञान की देन ही प्रौद्योगिकी है तो उसी प्रौद्योगिकी के नवाचार का एक रूप है मोबाइल-फोन। लेकिन शायद तकनीक में मशगूल होकर हम यह भूलते जा रहे हैं कि इससे हम अपनी अमिट पुरातन विरासत को तो क्षीण कर ही रहे हैं, साथ ही साथ बाल मन और युवावस्था भी पथभ्रष्ट हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि जो उम्र मैदानी खेल खेलने, वीर, प्रतापी महापुरुषों की कहानियां अपने बुजुर्गों से सुनने की होती है और जिस उम्र में किताबें हाथ में होनी चाहिएं, उस उम्र में हमारे युवा और बच्चे ऑनलाइन गेम की तरफ बढ़ गए हैं। 

वैसे ऑनलाइन गेम के प्रति युवाओं और बच्चों का झुकाव सिर्फ भारत के लिए समस्या नहीं, बीते कुछ वर्षों में दुनिया भर के बच्चों में ऑनलाइन गेम्स की दीवानगी पनपी है, जो अब लत बनती जा रही है। ऐसे में कोई दो राय नहीं कि इससे बच्चों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है और शायद यही वजह है कि बीते कुछ महीने पहले चीन ने अपने यहां बच्चों के लिए नया नियम बनाया है कि अब वे हफ्ते में 3 घंटे ही ऑनलाइन गेम खेल सकेंगे। गौरतलब हो कि नए नियमों के अनुसार ऑनलाइन गेम्स कंपनियां अब बच्चों को चीन में सिर्फ शुक्रवार, शनिवार और रविवार को ही 1-1 घंटे के लिए ऑनलाइन गेम की सुविधा दे पाएंगी। 

साल 2015 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन और ऑनलाइन गेम्स से 50 करोड़ चीनी नागरिकों की आंखों की रोशनी प्रभावित हुई। अब आप सोच सकते हैं कि ऑनलाइन गेम्स आपके बच्चों को किस तरफ ढकेल रही हैं। परन्तु भारत की स्थिति क्या है, यह हम सबको पता है। यहां तो 1-2 साल के बच्चों को भी मोबाइल थमा दिया जाता है और वे बड़े चाव से मोबाइल देखते-देखते बड़े होते हैं। 

गौरतलब हो कि इसी साल जुलाई में चीन की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी ‘टेन्सेंट’ ने घोषणा की थी कि वह रात 10 बजे से सुबह 8 बजे के बीच गेम खेलने वाले बच्चों को रोकने के लिए फेशियल रिकग्निशन (चेहरे की पहचान) शुरू कर रही है और यह कदम इस आशंका के बाद उठाया गया था कि बच्चे नियमों को दरकिनार करने के लिए एडल्ट आई.डी. का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

इतना ही नहीं, चीन में अब 18 साल से कम उम्र के बच्चे एक तय समय और दिन में ही वीडियो गेम खेल सकेंगे। वहीं गेमिंग कंपनियों को भी निर्देश दिया गया है कि इस समय-सीमा से इतर बच्चों को वीडियो गेम खेलने से रोकें और एक सरकारी मीडिया आऊटलैट ने तो ऑनलाइन गेम को ‘आध्यात्मिक अफीम’ तक कह दिया है। अब आप समझ सकते हैं कि ऑनलाइन गेम की लत किस हद तक बच्चों को प्रभावित कर रही है। 

भारत की बात करें तो यहां आए दिन ऑनलाइन गेम की लत के कारण बच्चों की होने वाली मौतों की खबरें हम सुनते-पढ़ते रहते हैं। इतना ही नहीं कई बच्चे इसके इतने आदी हो जाते हैं कि खाना-पीना तक छोड़कर दिन-रात उसी में लगे रहते हैं और उनकी नींद कम हो जाती है और खेलने से मना किया जाए तो चिड़चिड़ेपन का शिकार होने लगते हैं। 

इसके अलावा कोरोना काल में पढ़ाई के ऑनलाइन हो जाने के कारण बच्चों में ऑनलाइन गेम की लत का खतरा और भी बढ़ गया। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में करीब 30 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं और 2022 तक यह संख्या बढ़कर 55 करोड़ हो जाने की आशंका है। एक अन्य आंकड़े के मुताबिक अपने देश में ऑनलाइन गेमिंग का बाजार करीब 7 से 10 हजार करोड़ रुपए के बीच है, जो अगले एक साल में 29 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की उम्मीद है। 

इन आंकड़ों से ही स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है, लेकिन इसे लेकर न हमारी रहनुमाई व्यवस्था सचेत नजर आती है और न ही परिजनों के पास इतना समय होता कि वे हर पल बच्चों पर नजर रख सकें। दूसरी ओर बच्चों का मस्तिष्क इतना भी विकसित नहीं होता कि वे ऑनलाइन गेम की लत से खुद को बचा सकें। इसलिए अभिभावकों और सरकार का दायित्व बन जाता है कि वे बच्चों के हित में कदम उठाएं, लेकिन अभी इस दिशा में भी प्रयासों की बेहद कमी दिखाई पड़ती है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी गेम खेलने की लत (गेमिंग डिसऑर्डर) को मानसिक अस्वस्थता की स्थिति माना है। डब्ल्यू.एच.ओ. का कहना है कि गेमिंग कोकीन और जुआ के समान लगने वाली लत हो सकती है। कोरोना काल के दौरान बच्चों की ऑनलाइन गेमिंग 41 फीसदी तक बढ़ी है और ऑनलाइन गेम का चस्का एकल परिवार के बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। 

यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि ऑनलाइन गेम्स में पड़ कर बच्चे आक्रामक और हिंसक बन रहे हैं। यही खेल उन्हें अवसाद की तरफ भी धकेलने का काम करता है। भारत में ब्लू व्हेल जैसी गेम के चलते कई बच्चों की जान चली गई और इन खबरों को लगभग सभी ने सुना और पढ़ा, फिर भी ऑनलाइन गेम्स धड़ल्ले से हमारे देश में चल रही हैं, वह भी बिना किसी नियम और शर्तों के। ऐसे में ऑनलाइन गेम्स पर अंकुश आज की जरूरत है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि यह मामला बच्चों से जुड़ा है और बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। ऐसे में भारत में भी ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों पर चीन जैसा दबाव बनाए जाने और नियमन की जरूरत है।-महेश तिवारी
 


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