लाडलों की उपेक्षा से सिसकता बुढ़ापा

punjabkesari.in Monday, Jan 29, 2024 - 07:08 AM (IST)

कहते हैं कि जब बच्चा रोता है तो पूरी बिल्डिंग को पता चलता है मगर जब मां-बाप रोते हैं तो साथ वालों को भी पता नहीं चलता। यह जिंदगी का कड़वा सच है। हजारों मुश्किलें सहकर मां-बाप अपने बच्चों को कामयाब करते हैं और एक दिन वो ही कामयाब बच्चे अपने मां-बाप को तन्हा छोड़कर चले जाते हैं। 

यह भी देखा गया है कि कुछ बच्चे तो मां-बाप के मरने पर भी नहीं पहुंचते तथा कई प्रकार के बहाने-जैसे कि बच्चों की परीक्षाएं चल रही हैं या फिर बच्चा अभी बहुत छोटा है, इत्यादि कह कर दाह-संस्कार पर भी नहीं पहुंचते विशेष कर विदेशों में रहने वाले बच्चे। सैंकड़ों में कुछ ही पुत्र-वधुएं होंगी जो अपने सास-ससुर का मन से सम्मान करती हैं अन्यथा अधिकतर तो उन्हें बोझ ही समझती हैं। कभी उन्होंने सोचा कि जिस मां-बाप ने अपना सब कुछ उनके लिए न्यौछावर कर दिया आज वह रोटी के लिए भी मोहताज हैं। कई बदनसीब तो वृद्ध आश्रमों में रह कर अपनी अंतिम सांसें गिन रहे होते हैं और अन्य कई तो घर में अपने लाडलों का अंतिम सांसों तक इंतजार करते-करते अपना दम तोड़ देते हैं। 

सरकार ने माता-पिता एवम् वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण व कल्याण के लिए वर्ष 2007 में एक अधिनियम भी बनाया जिसमें समय-समय पर संशोधन भी किए गए हैं। इसके अंतर्गत बुजुर्गों के शोषण को रोकने के लिए विशेष ट्रिब्यूनल (अधिकरण) बनाए गए हैं। इस एक्ट के अंतर्गत 60  व 80 वर्ष के ऊपर वाले वरिष्ठ नागरिकों व माता-पिता के शोषण के विरुद्ध क्रमश: 90 दिन व 60 दिन के अन्तर्गत अधिकरणों को संज्ञान लेकर फैसला करना होगा। दोषी संतानों को न केवल जुर्माना बल्कि एक मास तक सजा दिए जाने का प्रावधान भी है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक पुलिस स्टेशन में विशेष पुलिस यूनिट का गठन करना भी आवश्यक है तथा राज्यों को इस संबंध में हैल्प लाइन बनाने के लिए भी निर्देश दिए गए हैं। 

मगर ऐसे संवेदनशील मामलों को सुलझाने के लिए ऐसे एक्ट कोई ज्यादा कारगर सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि बूढ़े मां-बाप अपने विचलित व कत्र्तव्य विमुख बच्चों के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं करवाना चाहते। यहां पर निम्न उक्ति का उल्लेख करना सारगर्भित होगा। एक बार एक प्रेमिका ने अपने प्रेमी से शादी करने के लिए शर्त लगा दी कि वह उसके साथ शादी तभी करेगी जब वह अपनी मां का कलेजा निकालकर लाए। प्रेमी ने अपनी प्रेमिका की संतुष्टि के लिए अपनी मां का कलेजा निकाला और ले जाते समय उसे ठोकर लगी और चोटिल हो गया। मां की ममता की आवाज उसके कानों में यही शब्द कहती हुई पाई गई ‘‘बेटा उठ कहीं चोट तो नहीं लगी।’’

मां-बाप की बच्चों के प्रति सहानुभूति लाड़-प्यार व मां की ममता की कोई तुलना नहीं की जा सकती। वे तो बच्चों के लिए अपनी जान भी कुर्बान करने के लिए तैयार रहते हैं मगर कृतघ्नता की पराकाष्ठा को लांघते हुए आजकल के बहुत से युवा-लाडले अपने आदरणीय माता पिता की अवहेलना व तिरस्कार करते हुए पाए जा रहे हैं। 
इन अटूट व संवेदनशील संबंधों को सुदृढ़ बनाने के लिए बच्चों व माता-पिता/बुजुर्गों को निम्नलिखित आचरण पर चलने की सलाह दी जाती है:- 

1) बच्चों को अधिक से अधिक समय अपने माता पिता के साथ व्यतीत करना चाहिए तथा उनके अहसानों को कभी भी नहीं भूलना चाहिए। जो व्यक्ति आपके मल-मूत्र को साफ करते थे उनके प्रति जिम्मेदारियां समझनी चाहिएं।
2) उनकी आत्मा व हृदय को मन, वचन, कर्म और धर्म से किसी भी प्रकार की चोट नहीं पहुंचानी चाहिए।
3) उनसे ऊंची आवाज में बात न करें तथा उनकी कभी भी बुराई नहीं करनी चाहिए और न ही किसी अन्य सदस्य को करने दें।
4) अपने मन को नियंत्रण में रखते हुए उनकी हर अच्छी व बुरी आदत का सत्कार करें।
5) न ही अपनी पत्नी को अपने माता-पिता के सामने और न ही माता पिता को पत्नी 
के सामने डांटें। 

6) पत्नी व माता-पिता में समन्वय बनाने 
की कोशिश करें और अपना रोल एक जानदार व्यक्ति के रूप में निभाएं।
7) उनके अनुभव और दुनियादारी की समझ की सीख को दबाव नहीं समझना चाहिए।
8) चाणक्य की इस उक्ति को कभी मत भूलें कि पृथ्वी से भारी तथा आसमान से ऊंचा माता एवम् पिता की ममता व स्नेह होता है। 
यहां एक तरफ बच्चों के अपने माता-पिता के प्रति कुछ कत्र्तव्य हैं वहीं दूसरी तरफ मां-
बाप को भी अपने बच्चों के प्रति अपनी परपक्व जिम्मेदारी समझनी चाहिए। 

1) जब तक जिन्दा हैं आत्मनिर्भर रहने का प्रयास करें तथा किसी पर निर्भर रहने की 
आदत को कम करें।
2) बच्चों से ज्यादा उम्मीद न लगाएं क्योंकि वे अपनी जिन्दगी में बच्चों के कारण वैसे ही बहुत व्यस्त होते हैं। बिना वजह की दखलअंदाजी न करें। हां जहां आवश्यक हो वहां पुत्र व पुत्रवधू को अच्छी नसीहत दें।
3) इच्छा रहित बनें तथा लोभ लिप्सा व वासना से दूर रहें।
4) अधिकार की प्रकृति को कम करें 
तथा किसी बिना वजह से निंदा न करें। 

पैसा कमाते कमाते बुढ़ापा भी गुजर जाएगा तथा आखिर में समझ आएगा कि जो कमाया वह किसी भी काम का नहीं है। जो पुण्य किया उसी का लाभ होगा। बुढ़ापे में चिन्ता मुक्त होकर अपनी इच्छाओं पर नियन्त्रण करें। गीता में लिखा है कि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित है तथा पुनर्जन्म भी निश्चित होता है इसलिए दिल-दिमाग को चुस्त दुरुस्त रखते हुए एक स्वस्थ जीवन व्यतीत करें। हमारा जीवन विधाता की दी हुई एक अनमोल भेंट है। कहते हैं कि 84 लाख योनियों में मानव शरीर सबसे बड़ी उपलब्धि है तथा हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम इस जीवन को भरपूर आनंद के साथ जिएं।  

एक-एक पल बीतता जा रहा है तथा जरूरी है कि हम अपने जीवन का सदुपयोग करें। न जाने जीवन की डोर कब टूट जाए तथा कटी हुई पतंग नीचे गिर जाए। बुढ़ापे में कोई किसी का नहीं होता है। आपका साथी आप खुद हैं तथा मत भूलें कि आपका स्वस्थ जीवन ही सच्चा साथी होगा तथा एक बार बीमार होकर चारपाई पर पड़ गए तो सभी सगे संबंधी आपसे विमुख होते चले जाएंगे। बच्चों व माता-पिता को एक दूसरे की संवेदनशीलताओं को समझना चाहिए तथा परिवार में रहते हुए ही स्वर्ग जैसा आनंद लेना चाहिए।-राजेन्द्र मोहन शर्मा डी.आई.जी. (रिटायर्ड)
 


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