हे प्रभु! तेरा शुक्रिया, तेरा अभिनंदन

punjabkesari.in Friday, Feb 10, 2023 - 05:46 AM (IST)

पता नहीं ईश्वर, प्रभु, भगवान, अल्ला है या नहीं? अगर ईश्वर है तो उसका रंग, रूप, आकार कैसा है किसी को पता नहीं। इसका भी पता नहीं कि उस ईश्वर की सत्ता कैसी है? सब ‘नेता-नेती’ कह आगे बढ़ जाते हैं। इस ईश्वरीय सत्ता के गर्भ में क्या छिपा है, इसका भी किसी को ज्ञान नहीं। 

अध्यात्म का विषय है यह। क्या यह ईश्वर प्रकृति है या व्यवस्था है? कौन जाने? रहस्य है यह सब कुछ और यह रहस्य मानव उत्पत्ति से ही शुरू हो गया था कि इस सारी कायनात को चलाने वाला कौन है? इस सारी कायनात के पीछे कौन-सी अद्भुत शक्ति है? इस सारी कायनात, सारी प्रकृति, सारी व्यवस्था में सम्पूर्ण संतुलन बना हुआ है तो कैसे? इस प्राकृतिक व्यवस्था में संतुलन ऐसा कि वर्षा हो रही है, सूखा पड़ रहा है कहीं आज उत्तर भारत ठंड से ठिठुर रहा है जबकि दूसरी ओर दक्षिण भारत कड़ाके की गर्मी से परेशान है। सूर्य समय पर उग रहा है और समय पर डूब रहा है। 

कहीं गर्मी, कहीं सर्दी, कहीं बरसात, कहीं बर्फ, कहीं पतझड़ सब एक व्यवस्था में चलायमान है। क्या इस सारे चलायमान जगत के पीछे एक ईश्वर है? है तो वह ईश्वर कैसा है? उसका रूप, रंग, वेषभूषा, कद-काठ और आकार कैसा है? कौन बताएगा? कोई नहीं। हां, इस रहस्य को ईश्वर कह दिया गया है। इस ईश्वरीय सत्ता का एक भय मनुष्य के मन में अपयश है। 

इस डर ने मनुष्य को ‘इन विदवीन दा लाइन्ज’ में चलना सिखाया है। उस ईश्वरीय सत्ता के आगे मनुष्य एक याचक-सा बना हुआ  है। उस अज्ञात सत्ता के डर ने मनुष्य को उच्छंखल, निरंकुश या उन्मुक्त नहीं बनने दिया। उस सत्ता का डर भी एक रहस्य है कि पता नहीं उस सत्ता के आगे सिर न झुका कर चला तो क्या हो जाएगा। यह डर इस व्यवस्थित कायनात को चलाए रखने के लिए जरूरी भी है। अगर यह डर मिट गया तो मनुष्य उस व्यवस्थित-कायनात को भी खा जाएगा। अच्छा है कि मनुष्य उस ईश्वरीय सत्ता के आगे भीरू है, सिर झुका कर चलता है। पर इससे अच्छा हो उस ईश्वरीय सत्ता से हमेशा मांगते रहने के स्थान पर यह मानव उस अज्ञात सत्ता का धन्यवाद करे। उस परम पिता परमात्मा की सत्ता का अभिनंदन करे। मांगते रहने वाले की ईश्वर क्यों सहायता करेगा? एक भिखारी की लोगों के मन में इज्जत ही क्या है? इसलिए हे मानव तू उस परम सत्ता का हमेशा सत्कार कर। 

उस व्यवस्था के आगे सिर झुका कर चल। जिस सत्ता का तुझे ज्ञान नहीं उस सत्ता का सदा अभिनंदन कर। ईश्वर से हमेशा मांगते रहने की बनिस्बत जो कुछ उस ईश्वर ने दिया है उसका अभिनंदन करना सीख। अभिनंदन करने से वह ईश्वरीय, सत्ता तेरा सम्मान करेगी। उससे मांग मत। ‘वल्र्ड फूड प्रोग्राम’ की मानें तो दुनिया में 4.8 करोड़ लोग ऐसे हैं जो खाना न मिलने के कारण मौत के कगार तक पहुंच चुके हैं। ईश्वर का करोड़ों बार धन्यवाद कि उसने हमारे भोजन का पर्याप्त इंतजाम किया है। वरन हम भी भूखे मर जाते। यूनीसेफ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में 15.3 करोड़ बच्चे अनाथ हैं, 16.8 करोड़ से ज्यादा बच्चों को मजदूरी करके अपना पेट पालना पड़ता है। 

वाह प्रभु वाह, आपने हमें भरपेट और स्वादिष्ट भोजन देने की कृपा की। आपका अभिनंदन। यूनेस्को की रिपोर्ट हैरान करने वाली है कि आज के माडर्न युग में भी 26 करोड़ बच्चों को स्कूल की पढ़ाई नसीब नहीं हुई। इसकी वजह है ‘आर्थिक तंगी’ तो क्यों न हम ईश्वर का धन्यवाद करें कि हम पढ़े-लिखे हैं और आज हमारे बच्चे अच्छे से अच्छे स्कूलों-कालेजों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। प्रकृति की सबसे अद्भुत देन पानी है जिसे जिंदगी के लिए अमृत माना गया है। 

डब्ल्यू.एच.ओ. की रिपोर्ट मुताबिक आज भी 200 करोड़ लोगों को पीने योग्य शुद्ध साफ, स्वच्छ पानी उपलब्ध नहीं। दूसरी ओर हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें स्वच्छ पीने का पानी मिल रहा है। घरों में ‘एक्वागार्ड’ लगाकर शुद्ध और पर्याप्त पानी पीने को मिल जाता है 1200 करोड़ संख्या देखने को थोड़ी नहीं जिन्हें पीने का पानी उपलब्ध नहीं। वल्र्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 60 करोड़ लोगों के पास एक जोड़ी जूते नहीं। इनमें से 30 करोड़ नंगे पांव चलने वाले बच्चे हैं। इसके अतिरिक्त अनेकों ऐसे एहसान उस परम सत्ता के हैं कि उसने हमें सुंदर, स्वस्थ शरीर दिया। मां-बाप का पवित्र आशीर्वाद, अच्छी-खासी नौकरी, बढिय़ा, सुंदर मकान, खुला आसमान, विस्तृत धरती, समुद्र में चलते जलयान ईश्वर ने सुख-सुविधा के लिए प्रदान किए। 

प्रभु आप की कृपाओं का कोई अंत नहीं। फिर भी जब भी मनुष्य उस परम सत्ता के आगे झुकता है तो साइकिल वाला मोटरसाइकिल, मोटर साइकिल वाला जहाज मांगेगा। लखपति करोड़पति और करोड़पति अरब पति बनने के सपने देखेगा। संतोष तो इंसान के मन में है ही नहीं। दूसरी तरफ उस अज्ञात सत्ता ने अमूल्य और जीवनोपयोगी चीजें मनुष्य को बिना मूल्य के प्रदान की हैं। क्या कोई प्राणी बिना हवा, पानी और रोशनी के जिंदा रह सकता है? बिल्कुल नहीं। पानी, हवा, सूरज की रोशनी, चलने-फिरने को धरती का आंचल उस ईश्वर की मनुष्य को नि:शुल्क देन है। ईश्वर की नेमतों का तो कोई व्याखान ही नहीं। मनुष्य तो सांस-सांस उस परम पिता का ऋणी रहे तो भी कम है।-मा.मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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