राजनीतिक आकाओं के तलवे चाटने में व्यस्त ‘अफसरशाही’
punjabkesari.in Wednesday, Feb 26, 2020 - 04:28 AM (IST)

संविधान -सभा में अनुच्छेद 311 पर चर्चा के दौरान कुछ सदस्यों ने आपत्ति की कि अफसरशाही को संवैधानिक सुरक्षा का कवच नहीं दिया जाना चाहिए। इस पर इस अनुच्छेद के समर्थन में बोलते हुए सरदार पटेल ने कहा था ‘यह कवच इसलिए दिया जा रहा है कि अफसर मंत्री के सामने तन कर अपनी बात कह सके’। आज वही अफसर राजनीतिक आकाओं के तलवे चाटने में इतना व्यस्त है कि उसे वह शपथ भी याद नहीं जो नौकरी ज्वाइन करने के पहले उसने ली थी। पिछली सरकारों में रमजान पर रोजा-इफ्तार देने से लेकर वर्तमान में ‘कांवडिय़ों पर हैलीकाप्टर से फूल बरसाने तक’ रीढ़विहीन और भ्रष्ट अफसरशाही ने पटेल का ही नहीं भारतवासियों का विश्वास तोड़ा।
जहां एक ओर देश में नौकरशाही के राजनीतिकरण का नंगा नाच चल रहा है तो दूसरी ओर राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के संकट पर देश के प्रजातंत्र के सबसे बड़े मंदिर-संसद ने पिछले 7 दशकों में भी संज्ञान नहीं लिया तो सुप्रीम कोर्ट को यह नागवार गुजरा। हालांकि भाजपा के नए अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा इस स्थिति से उबरने की कुछ हल्की कवायद कर रहे हैं पर क्या अन्य शीर्ष नेताओं की राय के आगे वह खड़े हो पाएंगे? पिछले सप्ताह नड्डा ने बिहार से आने वाले एक केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को कड़ी फटकार लगाई और उन्हें सांप्रदायिक कटुता पैदा करने वाले बयानों से बचने को कहा। मंत्री महोदय हर पखवाड़े देश के अल्पसंख्यकों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देते रहे हैं। पार्टी अध्यक्ष के अलावा पूर्व अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने भी माना है कि सांप्रदायिक बयानों से पार्टी को दिल्ली चुनाव में नुक्सान हुआ लेकिन ताजा जानकारी के अनुसार आगामी बिहार चुनाव में इससे सीख लेने के बजाय पार्टी नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) को ही प्रमुख मुद्दा रखेगी।
जनता ने ‘गुड गवर्नैंस’ का पूरा मौका दिया
देश की जनता ने तो एक बार ही नहीं दो बार (सन 2014 और 2019 के आम चुनावों में) अपना पूरा प्रेम और विश्वास बैलेट बॉक्स में उंडेल कर वर्तमान सत्तापक्ष... प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को निद्र्वंद्व बना दिया। एक सम्यक और समग्र विकास के लिए और क्या चाहिए? न तो विपक्ष खासकर वर्तमान कांग्रेस में टकराने वाला सामथ्र्य या ‘राजनीतिक जिजीविषा’ है, न ही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के जमाने वाला ‘24 पार्टियों के गठबंधन’ का दबाव? फिर पूरे देश में सांप्रदायिक भय का वातावरण कौन, क्यों और कैसे बना रहा है? आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भुखमरी और भ्रष्टाचार के सूचकांक पर हम दुनिया में और पीछे होते जा रहे हैं। फिर प्राथमिकताएं इस किस्म के ‘दुरुत्साह’ पैदा करने की क्यों? यह ठीक है कि जिसने ‘ये ले अपनी आजादी’ कह कर गोली चला एक आंदोलनकारी युवक को घायल किया वह ‘दुरुत्साह’ के उन्माद में रोजगार नहीं मांगेगा और वैसे ही करोड़ों युवा शायद इसी उत्साह के नशे में बेरोजगारी का दंश भूल जाएं, पर क्या इससे देश में विकास का वातावरण अगले कई दशकों में भी तैयार हो सकेगा? और फिर क्या प्रतिक्रिया में ऐसा ही ‘दुरुत्साह’ दूसरे पक्ष में नहीं पैदा होगा?
ताजा रिपोर्ट के अनुसार मोदी सरकार बाहर से लोगों को (सरकार ने उन्हें विशेषज्ञ के तौर पर सीधे उच्च पदों पर लाने की नीति बनाई) ज्वाइंट सैक्रेटरी और ऊपर के पदों पर ला रही है जबकि केन्द्र के हर पद के लिए 18 समर्थ अधिकारी राज्यों से आने को तैयार हैं। माना जा रहा है कि बाहर से वही लोग लाए जा रहे हैं जो पार्टी और संघ की नीतियों के प्रति आस्था रखते हैं। एक अन्य ताजा घटना में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की बैठक में एक वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी ने भरी मीटिंग में नागरिक सुरक्षा जनपदों में प्रखंड बढ़ाने के प्रस्ताव को खारिज करने की वकालत की क्योंकि उनके अनुसार इसका लाभ उस वर्ग को मिलेगा जिसकी आबादी ज्यादा बड़ी है। मीटिंग में बैठे एक अन्य पुलिस अधिकारी, जो इस विभाग का प्रभारी था, ने उस बड़े अधिकारी के गैर-कानूनी और अनुचित तर्क के खिलाफ मुख्यमंत्री को पत्र लिखा और मीडिया को बताया।
शाहीन बाग और दिल्ली पुलिस
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के चर्चित शाहीनबाग में भीड़ पर गोली चला कर एक छात्र को घायल करने वाले युवक को पुलिस पहले तो मूकदर्शक बन देखती रही, फिर बड़े सहज भाव में उससे पिस्तौल लेकर गिरफ्तार कर लिया। वीडियो देखकर लगा जैसे पुलिस वाले किसी दोस्त को ‘गुस्सा थूकने’ की बांझ सलाह दे रहे हों। अगले कुछ घंटों में डी.सी.पी. ने घोषणा की कि वह युवक ‘आप’ पार्टी का था। आई.पी.सी. या सी.आर.पी.सी. में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि गोली चलाने वाले का राजनीतिक रुझान घोषित किया जाए। यह अलग बात है कि अधिकारी की यह घोषणा नितांत गलत निकली। इसी दौरान चुनाव-मंच से उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक वर्ग विशेष के मतदाताओं को रिझाने के लिए बताया कि कैसे उन्होंने अफसरों को आदेश दिया कि ‘शिव-भक्त कांवडिय़ों पर हैलीकाप्टर से फूल बरसाएं’। गाजियाबाद के डी.एम. और एस.पी. ने फूल तो बरसाए ही एक जिले के उत्साही एस.पी. ने होड़ में पीछे न होने के लिए कांवडिय़ों के पैर धोए और इस वीडियो को मीडिया में और मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचाया।
हाल के दिल्ली चुनाव में ही एक मंत्री नारा लगाता है ‘देश के गद्दारों को’ और श्रोताओं को अगली लाइन ‘गोली मारो सा.... को’ पूरी करने के लिए उकसाता है तो उस पर सरकार की पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करती, लेकिन एक डॉक्टर अलीगढ़ में एक जन-संबोधन में मात्र यह कहता है कि ‘सी.ए.ए. मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बना देगी और ‘मोटा भाई’ हिन्दू, मुसलमान में बांटता है’ तो उसे पहले देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है और फिर जब अदालत उसे जमानत देती है तो अलीगढ़ के डी.एम. और एस.पी. उस पर रासुका लगा देते हैं ताकि वह जेल से बाहर न निकल सके।
दिल्ली में जो डी.सी.पी. आन्दोलनकारी भीड़ पर गोली चलाने वाले को घंटों में ‘आप’ पार्टी का घोषित करती है उसे ‘मंत्री के गोली मारने’ के नारे में कोई हिंसा भड़काना नहीं दिखता। प्रजातंत्र की सफलता और जनोपादेयता का आधार सरकार की निष्पक्षता पर टिका होता है। संभव है कि सत्ता में बने रहने के लिए अफसरों काराजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण तथा दोनों के जरिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण जरूरी हो लेकिन इससे मानव विकास सूचकांक बेहतर होने की जगह बदतर होता जाएगा।-एन.के. सिंह