हमारा आदर्श भाई कन्हैया का

punjabkesari.in Sunday, Feb 12, 2023 - 05:14 AM (IST)

किसी व्यक्ति या देश के संकटग्रस्त होने पर उसकी सहायता और सहयोग मानव धर्म है एवं इस कार्य का न तो किसी अनुग्रह के रूप में या प्रचार के लिए उपयोग अपेक्षित होता है। हाल ही में आए भूकंप में तुर्की एवं सीरिया में भयंकर ध्वंस हुआ। हजारों स्त्री, पुरुष, बच्चे अकाल काल के ग्रास बने। उनकी दारुण स्थिति, कष्ट एवं वेदना का उल्लेख करते हुए संसद में प्रधानमंत्री मोदी का गला रुंध गया, आंखें नम हो गईं। भारत उन प्रथम देशों में भी अग्रणी था जिन्होंने तुर्की और सीरिया की सहायता के लिए दवाएं, राहत सामग्री एवं आपदा में सहायता पहुंचाने वाले देवता स्वरूप आपदा प्रबंधन के वीर सैनिकों को भेजा। यह हमारा कत्र्तव्य था, हमारा धर्म था। 

हमारा आदर्श भाई कन्हैया का है जिस सिख महायोद्धा ने मुगलों से लड़ते हुए शाम के बाद युद्ध थमा तो घायल मुस्लिम सैनिकों को भी पानी पिलाया था। किसी के दुख में दुश्मनी निकालना तो गिद्धों का काम होता है, मनुष्यों का नहीं। विश्व के अनेक देशों ने भी सहायता भेजी। ट्विटर पर एक मुस्लिम विद्वान ने ट्वीट किया कि तुर्की के अतिरेकी इस्लामी रवैये के बावजूद गैर मुस्लिम हिंदुस्तान ने बड़ी मात्रा में सहायता भेजी। अब मुस्लिम देशों ने प्रार्थनाएं भेजीं। भारत भी सिर्फ प्रार्थना कर सकता था और तुर्की के राष्ट्रपति श्री एर्दोगन से भारत के राष्ट्रप्रमुख फोन पर बातचीत करके संपूर्ण देश की ओर से संवेदना व्यक्त करके बात पूरी कर सकते थे। पर हमने ऐसा नहीं किया क्योंकि भले ही तुर्की हर कदम और हर मुद्दे पर शत्रुतापूर्ण रवैया अपनाता रहा हो, उसने भारत के हर आंतरिक कदम का भी मुस्लिम नजरिए से तर्कहीन विरोध किया हो, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर की तथाकथित आजादी का विरोध किया हो, वे सभी मुद्दे अपनी जगह पर टिके रहेंगे। लेकिन मानवता के मानदंड पर इन मुद्दों का राहत कार्य से कोई संबंध नहीं है।

यह विचारधारा बहुत बड़ी है और विश्व में भारत को अन्य सभी ईसाई और मुस्लिम देशों से आगे प्रतिष्ठित करते हैं। भारत में अनेक राजनीतिक तूफानों में तुर्की की बड़ी उपस्थिति रही है। जब तुर्की में खिलाफत खत्म हो रही थी और कमाल अतातुर्क के नेतृत्व में तुर्की की कट्टर इस्लामी चरित्र के तीव्र पश्चिमीकरण का तुर्की में मुल्ला, मौलवी जितना विरोध कर रहे थे उससे ज्यादा विरोध भारतीय मुसलमानों द्वारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन द्वारा किया जा रहा था। गांधी जी ने मुसलमानों से दोस्ती के लालच में प्रगतिशील कमाल अतातुर्क का विरोध कर खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और कट्टर जेहादी इस्लामी अली बंधुओं का साथ दिया जिन्होंने हिंदुओं को कायर घोषित किया था। खिलाफत आंदोलन असफल हुआ। कमाल अतातुर्क ने तुर्की भाषा के लिए अरबी लिपि हटाकर रोमन लिपि को प्रचलित किया, कुरान रोमन लिपि में पढ़ाई जाने लगी। 

देश में पश्चिमीकरण के माध्यम से आधुनिकता की नई शुरूआत हुई और कालांतर में तुर्की ने यूरोपीय संघ का सदस्य बनने के लिए कोशिश शुरू कर दी। कमाल अतातुर्क भारत में भी लोकप्रिय हुए और कुछ समय पहले तक प्रधानमंत्री निवास वाले मार्ग का नाम कमाल अतातुर्क मार्ग ही था। अफगानिस्तान में तालिबान जिस प्रकार स्त्रियों को सार्वजनिक रूप से कोड़े मार रहे हैं, स्कूल, कालेजों में लड़कियों की पढ़ाई प्रतिबंधित कर रहे हैं, मुस्तफा कमाल अतातुर्क की आधुनिक क्रांति मुल्लाओं के दबाव में धूमिल होने लगी। 2002 के चुनावों में इस्लाम समर्थक पार्टी ए.के.पी. को 34 प्रतिशत वोट और 2007 के चुनाव में 46.6 प्रतिशत वोट मिले। 

कमालवादी लोग हाशिए पर छिटक गए और तुर्की पुन: खिलाफत के समय वाली कट्टर इस्लामी लहर में बह गया। बस यहीं से वह दौर शुरू होता है जब संयुक्त राष्ट्र संघ, आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक यूनियन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर तुर्की ने मोदी का तीव्र विरोध प्रारंभ किया, आरोप लगाया कि भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे हैं, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का उसे संघ शासित प्रदेश का दर्जा देकर लद्दाख को अलग करने का तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने विरोध किया और कश्मीर को भारत से अलग आजाद करने का समर्थन किया। 

अर्थात् जो पाकिस्तान भारत के विरुद्ध बोलता रहा, तुर्की ने उसे दोहराया। पाकिस्तान के आतंकवाद पर चुप्पी साधी तथा भारत के विरुद्ध पाकिस्तान का समर्थन किया। ऐसे देश को आप क्या कहेंगे? मित्र देश या शत्रु देश? वास्तव में आज विश्व राजनीति का सत्य यह है कि कोई भी दो मुस्लिम देश आपस में मित्र नहीं हैं। सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या मुसलमानों के आपसी युद्ध में ही मारी जा रही है। पाकिस्तान में शिया- सुन्नी हिंसक झगड़े, मस्जिदों में बम विस्फोट, अहमदिया मस्जिदों को खुलेआम तोड़ा जा रहा है, उनके बच्चों को मुस्लिम भी नहीं माना जाता। लेकिन जब प्रश्न हिंदुओं का आता है तो वे सब आपसी दुश्मनी भूलकर हिंदुओं के विरुद्ध एक हो जाते हैं। 

तुर्की का भी यही हाल है। उसका सऊदी अरब, सीरिया, लीबिया खाड़ी के किसी भी देश से अच्छे संबंध नहीं हैं। कट्टरवाद के कारण उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। दुख इस बात का है कि भारत के जो छद्म सैकुलर बात-बात पर मोदी सरकार पर हमला बोलते हैं, वे भी मोदी सरकार के मानवता भरे कदम पर खामोशी ओढ़े बैठे रहे। तो क्या? सूर्य को चमकने के लिए जुगनुओं से प्रमाण-पत्र की आवश्यकता भला कब हुई?-तरुण विजय


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